PATNA (Rajendra prasad never ate khaini in his life, married at the age of) : आज राजेंद्र बाबू की पुण्यतिथि है। राजेंद्र बाबू अर्थात देश के प्रथम राष्ट्रपति और संविधान सभा के अध्यक्ष डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद। बिहार के सिवान जिले में जीरादेई नामक एक स्थान है, जहां डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 को हुआ था तो वहीं 28 फरवरी 1963 को वे हम लोगों को हमेशा हमेशा के लिए छोड़ कर चले गए. देश आजाद होने के बाद उन्हें पहली बार राष्ट्रपति बनाया गया. बतौर राष्ट्रपति उनका कार्यकाल 26 जनवरी 1950 को शुरू हुआ और 13 मई 1962 तक चला।
डॉ राजेंद्र प्रसाद ने अपनी शिक्षा कलकत्ता विश्वविद्यालय से प्राप्त की, जहां वे एक मेधावी छात्र थे। उन्होंने शुरू में कानून के क्षेत्र में अपना कैरियर शुरू किया और अपनी प्रखर कानूनी सूझबूझ के लिए जाने जाते थे। हालाँकि, राष्ट्रीय स्वतंत्रता के आह्वान ने उन्हें आंदोलित किया और वे स्वतंत्रता संग्राम में गहराई से शामिल हो गये।
डॉ राजेंद्र प्रसाद महात्मा गांधी के करीबी सहयोगी थे और उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में प्रमुख भूमिका निभाई थी। 1906 में बिहारी छात्र सम्मेलन के गठन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी, जो भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था।
स्वतंत्रता के बाद, डॉ राजेंद्र प्रसाद को संविधान सभा का अध्यक्ष चुना गया जिसने भारत के संविधान का मसौदा तैयार किया। उन्होंने खाद्य एवं कृषि संबंधी संविधान सभा की समिति की अध्यक्षता भी की।
26 जनवरी 1950 को प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति चुने गये। उनका राष्ट्रपतित्व विनम्रता, निष्पक्षता और लोकतंत्र के सिद्धांतों के प्रति समर्पण से चिह्नित था। राष्ट्राध्यक्ष होने के बावजूद, वे अपनी साधारण जीवनशैली और सार्वजनिक कर्तव्यों के प्रति प्रतिबद्धता के लिए प्रसिद्ध थे।
प्रसाद दो कार्यकाल तक राष्ट्रपति रहे और फिर सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया तथा अपना शेष जीवन बिहार के पटना स्थित सदाकत आश्रम में बिताया। एक स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता और भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में राजेंद्र प्रसाद की विरासत आज भी प्रेरणा देती है। उनकी विनम्रता, समर्पण और लोकतंत्र के सिद्धांतों के प्रति गहन प्रतिबद्धता भारत में सार्वजनिक सेवा की कसौटी बनी हुई है।
डॉ राजेंद्र प्रसाद ने जीवन में कभी नहीं खाया खैनी
बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में उनकी पोती तारा सिन्हा ने उनके बारे में जानकारी देते हुए बताया था कि दादाजी को लेकर कई तरह के फेक न्यूज़ समाज में चल रहे हैं जो कि सरासर गलत है। उनका कहना है कि राजेंद्र बाबू को लेकर लोगों में आम धारणा है कि वह खैनी खाया करते थे और इसलिए तेजी बुद्धि वाले लोग थे। जबकि यह सरासर गलत है दादाजी ने जीवन में कभी खैनी नहीं खाया। दादा जी की शादी बस 13 साल की उम्र में हुई थी और दादी का नाम राजवंशी देवी था। जब दादाजी की शादी हुई तो वह स्कूल में पढ़ रहे थे। दादाजी हर एक दिन रात 8:00 बजे तक भोजन कर लिया करते थे। राष्ट्रपति का कार्यकाल पूरा होने के बाद अंतिम समय में दादाजी पटना लौट आए और उस समय उनको जीवन यापन करने के लिए मात्र 1100 रुपए की पेंशन सरकार द्वारा दी जाती थी। पटना स्थित सदाकत आश्रम में वे रहा करते थे। सदाकत आश्रम वर्तमान समय में बिहार कांग्रेस का मुख्यालय है।