सचिन पायलट में राजेश पायलट का खू’न है: वो कांग्रेस पार्टी कभी नहीं छोड़ सकते है

© प्रियांशु

मुझे नहीं मालूम कि आप सचिन पायलट की ओर जब देखते है, तो किन निगाहों से देखते है। अभी के परिदृश्य में सिंधिया से तुलना करके भले ही आप उन्हें दोयम दर्जे का राजनेता मान रहे हो लेकिन ये तुलना कतई ठीक नहीं। गैरत और गद्दारी में फर्क होता है। सिंधिया महत्वाकांक्षी थे और सबसे बड़ी बात उन्होंने अपनी परेशानियों के बारे में आलाकमान से बात करना भी जायज़ नहीं समझा था..! लेकिन पायलट.. वो निराश है, परेशान है, गहलोत सरकार द्वारा सताए जाने के बावजूद कल से ही दिल्ली में है, इंतेज़ार में है कि मैडम सोनिया गांधी मसले का हल निकालेगी..! पार्टी में डेमोक्रेसी है और उन्हें यकीन है उनकी बात सुनी जायेगी।

अभी टीवी चनेल्स के उन हवाबाजियों पर ध्यान देना उचित नहीं जो बीते दिन से ही पायलट का जेपी नड्डा से मीटिंग फिक्स करवाने में जुटे है। लोग शायद ये भूल रहे है कि सचिन पायलट में राजेश पायलट का खू’न है। वही राजेश पायलट जिसकी कांग्रेस से वफादारी कि किस्से इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। वही राजेश पायलट जिसने अपनी नौकरी से इस्तीफा केवल इसीलिए दे दिया ताकि इन्दिरा गांधी के सपनों के भारत को बनाने में वो भी उनका सहयोग कर सके। वही राजेश पायलट जिसने अपना नाम तक बदल लिया ताकि कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा जा सके।

1971 के भारत-पाकिस्तान यु/द्ध का अभिन्न हिस्सा रहे राजेश पायलट का असली नाम राजेश्वर प्रसाद विधुड़ी था। बात 1980 की है, राजेश पायलट कांग्रेस की ओर से लोकसभा चुनाव लड़ना चाह रहे थे और एक दिन टिकट मांगने सीधे इंदिरा गांधी के घर पहुंच गए।जब इन्दिरा से मुलाकात हुई तो बोले – मैं तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के खिलाफ यूपी के बागपत से चुनाव लड़ना चाहता हूं।

इंदिरा ने पहले ही मना कर दिया..! बोली: मैं आपको राजनीति में आने की सलाह नहीं दे सकती.. वायुसेना में आपका भविष्य उज्जवल है, आप वहीं से देश की सेवा कीजिए। तब राजेश पायलट ने कहा कि मैं इस्तीफा पहले ही दे चुका हूं। मैं तो आपका आशीर्वाद लेने आया हूं। इसपर इंदिरा गांधी ने कहा कि बागपत एक मुश्किल क्षेत्र है। वहां चुनाव में बहुत हिं/सा होती है। पायलट बोले- मैडम, मैंने इस देश के लिए हवाई जहाज से ब/म गिराए हैं, क्या मैं लाठियों का सामना नहीं कर सकता?

हालांकि इंदिरा ने तब कोई वादा नहीं किया, लोकसभा चुनावों के लिए आखिरी सूची निकल चुकी थी लेकिन उसमें राजेश पायलट का नाम नहीं था। पायलट निराश हो गए, कांग्रेस के लिए नौकरी पहले ही छोड़ चुके थे, टिकटधारियों की सूची में उनका नाम नहीं था.. बहरहाल खेतों में काम करने लगे..!

कुछ दिन बीते तो पता चला कि इन्दिरा जी सुबह 5:30 बजे हैदराबाद के लिए उड़ान भरने वाली है. राजेश पायलट अपनी पत्नी के साथ स्कूटर पर सवार होकर एयरपोर्ट पहुंच गए. कांग्रेस अध्यक्ष को विदाई देने के लिए लंबी कतार थी. राजेश पायलट अपनी पत्नी रमा पायलट के साथ सबसे आखिरी में जाकर खड़े हो गए ..! इंदिरा सबसे मिलती हुई आखिर में राजेश के पास पहुंचीं. नमस्कार करते हुए मुस्कुराई और प्लेन की तरफ बढ़ चलीं.

इन्दिरा की वो मुस्कान राजेश पायलट के नए जीवन की शुरआत थी।इसके कुछ ही दिनों बाद पायलट के पास फोन आया.. फोन में कहा गया, संजय गांधी ने उन्हें बुलाया हैं। जब वे कांग्रेस कार्यालय पहुंचे तो संजय ने बताया कि आपको भरतपुर से चुनाव लड़ना है। फिर पायलट भरतपुर पहुंचे.. लेकिन भरतपुर के लोगों ने उन्हें पहचानने से इनकार कर दिया। लोग कहने लगे कि हमें तो बताया गया है था कि कोई पायलट पर्चा दाखिल करने आ रहा है। बात संजय तक पहुंची तो उन्होंने राजेश पायलट को फोन किया, बोले कि सबसे पहले कचहरी जाओ और अपना नाम राजेश्वर प्रसाद विधूड़ी से राजेश पायलट करवाओ। फिर विधुड़ी जी कचहरी गए, हलफनामा दिया, नाम बदलवा कर राजेश पायलट किया और भरतपुर से चुनाव जीत गए।

भरतपुर जीतकर पायलट नई दिल्ली आ गए थे, आते ही इंदिरा से मुलाकात की. इंदिरा अब वापस प्रधानमंत्री बन हो चुकी थीं. अफसरशाही फिर उनकी खातिर में खड़ी थी. उन्होंने राजेश से पूछा, रहने के लिए कोई व्यवस्था हुई? राजेश पायलट ने ना में सिर हिलाया… इन्दिरा बोलीं, तुम्हारे लिए ‘3 सफदरजंग रोड का बंगला खाली है।

इसके बाद अगले 20 सालों में राजेश पायलट छे बार लोकसभा का चुनाव जीते. पहला भरतपुर से, फिर पांच बार दौसा लोकसभा क्षेत्र से. राजीव गांधी और नरसिम्हा राव की सरकार में मंत्री रहे. राजेश उन चुनिंदा नेताओं में शामिल रहे, जो इन्दिरा-संजय-राजीव और नरसिम्हा राव के अलावे सोनिया गांधी के भी करीबी थे।

सचिन पायलट उसी राजेश पायलट का खून है। सचिन को अपनी सीमाएं पता है.. उन्हें इस बात का पूरा अंदाजा है कि राजस्थान कांग्रेस उनके अनुपस्थिति में शून्य के बराबर है। उन्हें ये मालूम है कि उनके नेतृत्व में ही कांग्रेस ने राजस्थान फतह किया है। और ये बात अशोक गहलोत के साथ कांग्रेस हाई कमान को को भी अच्छे से मालूम है.. इसलिए सब डरे हुए है।

सचिन के संबध पार्टी के हर बड़े नेताओं से है. कांग्रेस के बहुत सारे कद्दावर नेताओं के लिए वो आज भी अपने बच्चे के समान है..! उनके संबंध अहमद पटेल से उतने ही मीठे है जितना मोतीलाल वोरा और सोनिया गांधी से है..! राहुल गांधी तो उनके बचपन के मित्र है। जब राजेश की मृ/त्य हुई थी तब सचिन कि उम्र छोटी थी.. सोनिया गांधी ने ही उन्हें और उनके परिवार को संभाला था।

खैर, दशकों का बना ये संबध टूट भी सकता है..! इससे पहले कि बहुत देर हो जाए.. दोनों पक्षों को इसपर संवाद स्थापित करके बिगड़े हुए पहलुओं को सुलझा लेना चाहिए! सोनिया गांधी को खुद इस मसले का हल निकालना चाहिए! और हां, राजस्थान की गद्दी संभालने के लिए सचिन पायलट के भीतर वो सारी योग्यताएं है जो किसी राज्य के मुख्यमंत्री में होनी चाहिए..!

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