11 को नहीं 12 अगस्त को मनेगा भाई-बहन का पर्व रक्षाबंधन, दिनभर रहेगा शुभ समय…

PATNAउदयगामिनी तिथि में रक्षाबंधन 12 को मनेगा बहनें दिनभर भाई को बांध सकती हैं राखी : श्रावण शुक्ल पूर्णिमा शुक्रवार 12 अगस्त को सौभाग्य योग में मनेगा रक्षाबंधन का त्योहार। कुछ पंचांगों को छोड़ काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से प्रकाशित विश्व पंचांग एवं बिहार के संस्कृत विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित विश्वविद्यालय पंचांगकारों ने 12 अगस्त को रक्षाबंधन मनाने का निर्णय लिया है। जबकि कुछ पंचांगों में 11 अगस्त को रक्षाबंधन मनाने का जिक्र रहने से जनमानस में ऊहापोह की स्थिति बन गई है।

ज्योतिर्वेद विज्ञान केंद्र के निदेशक डॉ. राजनाथ झा के अनुसार 11 अगस्त की सुबह 9.43 बजे के बाद पूर्णिमा तिथि आरंभ हो रही है और उसके तुरंत बाद ही भद्रा का आरंभ हो रहा है, जो रात में 8.34 बजे तक रहेगा। ऐसे में 12 अगस्त की सुबह उदयगामिनी तिथि में रक्षाबंधन मनाना शास्त्रोचित है। ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश झा ने हृषिकेश पंचांग के हवाले से बताया कि 11 अगस्त दिन गुरुवार की रात्रि 8:25 बजे भद्रा की समाप्ति के बाद राखी बांधी जा सकती है। बनारसी पंचांग के अनुसार 11 अगस्त की रात करीब 8.30 बजे भद्रा खत्म होने से लेकर अगले दिन शुक्रवार की सुबह 7.16 बजे तक पूर्णिमा तिथि की उपस्थिति में रक्षाबंधन होगा।

भद्रा काल में राखी बांधना अशुभ
लेकिन, मिथिला पंचांग के आधार पर 12 अगस्त दिन शुक्रवार को दिनभर बहनें अपने भाई को राखी बांध सकती हैं। शास्त्रीय मान्यता के अनुसार भद्रा रहित पूर्णिमा में दिन-रात किसी भी समय रक्षाबंधन किया जा सकता है। इस दिन गंगा स्नान, दान, भगवान हयग्रीव का अवतरण दिवस और संस्कृत दिवस भी मनाया जाएगा। भारतीय सनातन धर्म शास्त्रीय ऋषियों का वचन है कि भद्रायां द्वे न कर्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी तथा, श्रावणी नृपति हन्ति ग्रामम दहति फाल्गुनी…यानी भद्रा में रक्षाबंधन करना राजा, राज्य व राष्ट्र के लिए अशुभ माना जाता है। जबकि फागुन के समय भद्रा काल मंें संवत जलाना यानी होलिकादहन नहीं करना चाहिए। इससे अग्निभय यानी गांव जलने का खतरा रहता है। भद्रा काल में राखी बांधना अशुभ माना जाता है। इसके अलावा अन्य कोई भी शुभ या मांगलिक कार्य भद्रा में करना वर्जित है। इससे अशुभ फल की प्राप्ति होती है। पौराणिक कथा के अनुसार भद्रा भगवान सूर्य देव की पुत्री और शनिदेव की बहन है। जिस तरह से शनि का स्वभाव क्रोधी है, उसी प्रकार से भद्रा का भी है। भद्रा के उग्र स्वभाव के कारण ब्रह्मां जी ने इन्हें पंचांग के एक प्रमुख अंग करण में स्थान दिया। दिन विशेष पर भद्रा करण लगने से शुभ कार्यों को करना निषेध माना गया है।

{तुला: फिरोजी या जमुनी रंग की राखी
{ वृश्चिक: लाल रंग की राखी
{धनु: पीले रंग की राखी
{मकर: गहरे लाल रंग की राखी
{कुंभ: रुद्राक्ष से निर्मित राखी
{मीन: पीला या सफेद रंग की राखी
{मेष: लाल, केसरिया, पीला रंग की राखी
{वृष: नीले रंग या चांदी की राखी
{मिथुन: हरे रंग की राखी
{कर्क: सफेद धागे या मोती से निर्मित राखी
{सिंह: गुलाबी, लाल, केसरिया रंग की राखी
{कन्या: सफेद या हरे रंग की राखी
राशि के अनुसार ही बांधे राखी

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