रामायण के ‘राम’ अरुण गोविल बोले- देश से बड़ा कुछ नहीं, भारतीयता के हक में आएगा फैसला

सुप्रीम कोर्ट का जो भी फैसला आएगा, वो भारतीयता के हक़ में होगा। उन्होंने ये अपील भी की, निर्णय चाहे जिसके पक्ष मे आए, सबको जाति, धर्म, भाषा और प्रदेश के खांचों से ऊपर हटकर स्वागत करना चाहिए। इस समस्या की वजह से देश में क्या-क्या नहीं हुआ! अशांति रही, दंगे-फसाद हुए, वैचारिक वैमनस्य बढ़ा, धार्मिक सद्भाव की नींव कमज़ोर हो गई। चूंकि एक समाधान निकलने जा रहा है तो मैं सबसे अपील करना चाहता हूं कि सर्वोच्च न्यायालय का फैसला जिसके भी पक्ष में आए, मुकदमे के पक्षकारों के साथ सभी लोग इसका एक भारतीय के रूप में स्वागत करें।

206 साल पहले उठा मुद्दा, ब्रिटिश से लेकर आजाद भारत की अदालतों में गूंजता रहा : साल 1813 में पहली बार हिंदू संगठनों ने विवादित जमीन पर दावा िकया। उन्होंने कहा कि 1528 में बाबर ने राम जन्मभूमि पर जानबूझकर मस्जिद बनवाई। दस्तावेजों के मुताबिक हिंदू पहले से यहां पूजा करते थे। विहिप ने मस्जिद के ताले खोलने और मंदिर निर्माण के लिए मुहिम शुरू की। दो साल बाद फैजाबाद जिला अदालत ने पूजा की इजाजत दी। ताले खुले। मुस्लिमों ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी गठित की।

अयोध्या विवाद 1813 में शुरू हुआ था। यह मामला ब्रिटिश काल की अदालतों से लेकर आजाद भारत की अदालतों तक में चला। कई पड़ाव आए। इसे धार्मिक संगठनों से लेकर राजनीतिक दलों ने मुद्दा बनाया। आखिर में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर 40 दिन तक नियमित सुनवाई की। अब शनिवार को इस पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आएगा।

विवादित क्षेत्र पर िहंसा के बाद 1859 में ब्रिटिश सरकार ने विवादित जगह पर तार की बाड़ बनवाई। साल 1885 में पहली बार महंत रघुबर दास ने ब्रिटिश अदालत से मंदिर बनाने की अनुमति मांगी। 6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों ने ढांचा ढहा दिया। इससे जगह-जगह हिंसा हुई। हिंदू पक्ष ने विवादित जमीन पर अस्थायी राम मंदिर बनाया। इसके बाद लिब्रहान आयोग का गठन किया गया।

पहली बार विवादित हिस्सा तोड़ा गया। िब्रटिश सरकार ने मरम्मत करवाई। साल 1949 में हिंदुओं ने केंद्रीय स्थल पर रामलला की मूर्ति रखकर पूजा शुरू की। तब मुस्लिम पक्ष यहां नमाज पढ़ना बंद कर कोर्ट चला गया। विवादित स्थल पर हक को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई शुरू हुई। 2003 में कोर्ट के निर्देश पर पुरातत्व विभाग ने खुदाई की। विभाग का दावा है कि मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष होने के प्रमाण मिले हैं।

मुस्लिम समुदायों शिया-सुन्नी के बीच मस्जिद पर हक के लिए विवाद हुआ। शिया पक्ष ने कहा कि बाबर के आदेश पर उसके गर्वनर मीर बाकी ने मस्जिद बनवाई थी। मीर शिया था। इसलिए मस्जिद शियाओं की हुई। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जमीन रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा, सुन्नी वक्फ बोर्ड को बराबर 3 हिस्सों में बांटने का फैसला दिया। फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती। मई 2011 में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू।

गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद अदालत से रामलला की पूजा-अर्चना की विशेष अनुुमति मांगी। 1959 में निर्मोही अखाड़ा ने जमीन हस्तांतरित करने तो 1961 में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने मस्जिद के लिए केस दायर किया।दस्तावेजों का अनुवाद न होने से मामला टलता रहा। सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता की पेशकश की, जो विफल रही। सुप्रीम कोर्ट ने 6 अगस्त से 16 अक्टूबर 2019 तक मामले की नियमित सुनवाई की।

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