आज निकलेगा भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा, खिचड़ी का लगाया जाएगा भोग, जानिए इतिहास

भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा 12 जुलाई को हो रही है। इस दिन ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा रथ में बैठकर जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर जाते हैं। ये उनकी मौसी का घर है। परंपरा के मुताबिक, तीनों यहां एक हफ्ते तक ठहरते हैं। रथयात्रा का यह उत्सव हर साल आषाढ़ महीने में शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को आयोजित किया जाता है। इस रथयात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ को पुरी में नगर भ्रमण कराया जाता है। रथयात्रा इसलिए भी खास है क्योंकि यूनेस्को ने पुरी शहर को विश्व धरोहर सूची में शामिल किया है।

रथयात्रा एक नजर में
इस दिन सूर्योदय से पहले ही रथयात्रा की तैयारियां शुरू हो जाती है। जिसमें भगवान को खिचड़ी भोग के बाद रथ प्रतिष्ठा और अन्य विधियां होती हैं। फिर सेवादार भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा की मूर्तियों को रस्सियों के जरिये रथों तक लाते हैं। ये रस्सियां सालभर भगवान के पहने हुए कपड़ों से बनती हैं। फिर रथों की पूजा की जाती है और प्रतिमाओं का श्रृंगार होता है। इसके बाद स्थानीय राजघराने के महाराज “छोरा पोहरा’ की परंपरा पूरी करते हैं। इसमें सोने के झाड़ू से रथों को बुहारा जाता है। ये रस्म करीब 40 मिनट की होती है।

फिर रथों की सीढ़ियों को खोला जाता है और भगवान बलभद्र के रथ से काले, बहन सुभद्रा के रथ से भूरे और भगवान जगन्नाथ के रथ से सफेद घोड़े जोड़े जाते हैं। सबसे आगे भगवान बलभद्र का रथ, बीच में बहन सुभद्रा और आखिरी में भगवान जगन्नाथ का रथ होता है। इस दिन सूरज डूबने से पहले तीनों रथ गुंडिचा मंदिर यानी मौसी बाड़ी पहुंचते हैं। भगवान यहां 7 दिन तक रहते हैं। यूं तो ये अवधि नौ दिन की है। इसमें 2 दिन आने-जाने के हैं। इसके बाद देवशयनी एकादशी को घुरती यात्रा होती है।

नीम और नारियल की लकड़ी से बनते हैं रथ
रथ बनाने के लिए लकड़ी का इंतजाम ओडिशा सरकार की ओर किया जाता है। इसे तैयार करने के लिए ओडिशा के दस्पल्ला के जंगलों से लकड़ियां लाई जाती हैं। रथ बनाने में लकड़ी के करीब 4000 टुकड़ों की जरूरत पड़ती है। राज्य में लकड़ी और पेड़ों की संख्या कम न हो इसके लिए सरकार ने 1999 ने पौधरोपण कार्यक्रम शुरू किया था।

भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के रथ नारियल की लकड़ी से बनाए जाते हैं। क्योंकि ये वजन में भी अन्य लकड़ियों से हल्की होती हैं और इसे आसानी से खींचा जा सकता है। भगवान जगन्नाथ के रथ का रंग लाल और पीला होता है और ये दूसरे रथों से आकार में भी बड़ा होता है। ये तीनों रथों में सबसे आखिरी में होता है।

भगवान जगन्नाथ का रथ: इनके रथ को गरुड़ध्वज, कपिध्वज और नंदीघोष भी कहते हैं। ये 16 पहियों का और तकरीबन 13 मीटर ऊंचा होता है। इसमें सफेद घोड़े होते हैं। जिनके नाम शंख, बलाहक, श्वेत और हरिदाश्व है। रथ के सारथी का नाम दारुक है। रथ पर हनुमानजी और नरसिंह देव की प्रतिक मूर्ति होती है। रथ पर रक्षा का प्रतीक सुदर्शन स्तंभ भी होता है। इस रथ की रक्षा करने वाले गरुड़ हैं। रथ के झंडे को त्रिलोक्यवाहिनी और रस्सी को शंखचूड़ कहते हैं। इसे सजाने में लगभग 1100 मीटर कपड़ा लगता है।

बलभद्र का रथ: इनके रथ का नाम तालध्वज है। जिस पर भगवान शिव की प्रतिक मूर्ति होती है। इस रथ की सुरक्षा करने वालों में वासुदेव और सारथी मातलि होते हैं। रथ के झंडे को उनानी कहते हैं। इसके घोड़ों का नाम त्रिब्रा, घोरा, दीर्घशर्मा और स्वर्णनावा है। ये सभी नीले रंग के होते हैं। ये रथ लगभग 13.2 मीटर ऊंचा और 14 पहियों वाला होता है। जो कि लाल, हरे रंग के कपड़े और लकड़ी के 763 टुकड़ों से बना होता है।

सुभद्रा का रथ: इनके रथ का नाम देवदलन है। रथ पर देवी दुर्गा की प्रतीक मूर्ति भी बनाई जाती है। इसकी रक्षक जयदुर्गा और सारथी अर्जुन हैं। रथ के झंडे का नाम नदंबिक होता है। इसमें रोचिक, मोचिक, जीता और अपराजिता नाम के घोड़े होते हैं। घोड़ों का रंग हल्का भूरा होता है। इसे खींचने वाली रस्सी को स्वर्णचूड़ा कहते हैं। ये रथ करीब 12.9 मीटर ऊंचा और 12 पहियों वाला होता है। जो कि लाल, काले कपड़े के साथ लकड़ी के 593 टुकड़ों से बनता है।

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