ऐतिहासिक है पटना का दुर्गा पूजा, पाकिस्तान से आए लाेगाें ने शुरू किया था रावण व’ध

पटना के गांधी मैदान में दशहरे के दिन रावण वध में लाखाें लाेगाें की भीड़ जुटती है। इसकी शुरुआत आज से 64 साल पहले 1955 में हुई। 1947 में देश के बंटवारे के बाद लाखाें लाेग भारत से पाकिस्तान और पाकिस्तान से भारत आए। तब पटना में भी लाहाैर सहित अन्य इलाकाें से 350 परिवार यहां आकर बसे। उन्हाेंने देखा कि दुर्गा पूजा में बड़ी संख्या में देवी दर्शन के लिए आते हैं। तब लाहाैर से आए लाेगाें ने पहली बार 1955 में गांधी मैदान में रावण वध का कार्यक्रम रखा। रामलीला तब बिहार के गांवाें में हाेती थी, लेकिन पटना शहर में ज्यादा नहीं हाेती थी। पंजाब से ही ढाेल-नगाड़े बजानेवाले और रामलीला की टीम बुलाई गई। बाद में लाेग जुड़ते गए और कार्यक्रम पहले से भव्य हाेता गया। 23 साल पहले बक्सर के प्रसिद्ध संत श्रीमन नारायण जी (मामाजी) संस्था से जुड़े और तबसे भरत मिलाप और रामलीला की टीम वहीं से आती है। इन 64 सालाें में रावण की लंबाई भी दाेगुनी हाे गई। पहली बार 35 फुट का रावण था, इस साल बढ़कर उसकी ऊंचाई 75 फीट हाे गई है।

देश बंटवारे के बाद लाहौर से खाली हाथ आए लाेगाें ने मेहनत के दम पर अपनी पहचान बनाई। फिर पंजाब की संस्कृति काे आगे बढ़ाने के लिए रावण वध कार्यक्रम की शुरुआत की, जाे मुख्यत: विभिन्न धर्माें में प्रेम बढ़ाने के लिए था। 1955 में पहली बार 14 लाेगाें की कमेटी बनी, जिसके सदस्य थे बख्शीराम गांधी, जाे पहले लाहाैर दशहरा कमेटी के अध्यक्ष थे। उनके लड़के तिलकराज गांधी आज भी कमेटी से जुड़े हैं। दूसरे सदस्य थे माेहनलाल गांधी। ओमप्रकाश काेचर, जिनका चाणक्या हाेटल है। पुरुषाेत्तम काेचर। बिशनदास सचदेवा, मल्हाेत्रा ट्रैक्टरवाले राधाकृष्ण मल्हाेत्रा, बिहार के पहले कांट्रैक्टर टीआर मेहता, ओमप्रकाश बाहरी, राजभवन में पीआरओ आरएस गाैरी, रामनाथ सहनी, जवाहर लाल पासी, पटना किराना स्टाेर वाले प्रेमनाथ अराेड़ा, डी लाल के पार्टनर संताेषचंद्र बजाज और वैद्यनाथ भवन के मालिक।

रावण वध करानेवाली दशहरा कमेटी काे 2005 में रजिस्टर्ड कराते हुए ट्रस्ट की स्थापना हुई। पहले चेयरमैन बने सुशील चंद्र श्रीवास्तव और सचिव बने तिलक राज गांधी। संस्थापक सचिव गांधी आज भी ट्रस्ट और रावण वध के कार्यक्रम से सक्रियतापूर्वक जुड़े हुए हैं। वर्तमान में ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं कमल नाेपानी, सचिव हैं अरुण कुमार और काेषाध्यक्ष हैं राजेश बजाज। 1990 से पहले रावण वध के कार्यक्रम में राज्यपाल ही आते थे। 1990 में पहली बार लालू प्रसाद मुख्यमंत्री बने, ताे वे कार्यक्रम में आए। कार्यक्रम के दाैरान ट्रैक्टर पर से उतरने के दाैरान उनके पैर में चाेट लगी। फ्रैक्चर हाे गया। तभी उन्हाेंने पटना की तत्कालीन डीएम राजबाला वर्मा काे बुलाया और पूरे कार्यक्रम की व्यवस्था सरकार द्वारा करने का आदेश दिया। उसके बाद से सरकार ही बैरिकेडिंग सहित अन्य व्यवस्था करने लगी।
रामभाव

रावण वध दाे साल नहीं हुआ। 1962 में जब, भारत- चीन युद्ध हुआ तब प्रधानमंत्री नेहरू ने अवाम से सहयाेग मांगा। महिलाओं ने अपने गहने तक दे दिए। तब दशहरा कमेटी ने भी बड़ा निर्णय लिया और रावण वध का कार्यक्रम स्थगित कर दिया। जाे चंदा आया, उसे युद्ध के लिए जाते सैनिकाें पर खर्च करने का निर्णय लिया। तब पटना जंक्शन में तीन ही प्लेटफाॅर्म होते थे। एक नंबर प्लेटफाॅर्म पर दशहरा कमेटी से जुड़े लाेगाें के घर की महिलाओं ने सामूहिक राेटी-पूरी-सब्जी बनानी शुरू की। पुरुषाें का काम था माेर्चे पर जानेवाले जवानाें काे ये खाना देना। सैनिकाें में हिंदू-मुस्लिम सभी थे। सबकाे भाेजन देने का क्रम हफ्ताें चला। तिलकराज गांधी ये वाकया सुनाते हुए गर्व महसूस कर रहे थे। फिर रावण वध का कार्यक्रम 1975 में नहीं हुआ, तब पटना में भीषण बाढ़ आई थी। कमेटी ने चंदे की राशि मुख्यमंत्री राहत काेष में दे दी।

गया के रहनेवाले माेहम्मद जमाल पटना आकर रावण का पुतला बनाते थे। उन्हाेंने लगातार 17 वर्षाें तक प तला बनाया। एक बार कार्यक्रम में राज्यपाल एआर किदवई आए थे। कमेटी ने कहा कि जमाल इतने वर्षाें से रावण का पुतला बना रहे हैं। हिंदू-मुस्लिम भाईचारे काे बढ़ा रहे हैं। इन्हें हज करवा दीजिए। किदवई साहब ने हां कहा और हज के लिए दाे बार भेजा। वे माेहम्मद जमाल से हाजी जमाल हाे गए। उनके बाद उनका बेटा जफर और पाेता गाेल्डेन पिछले 10 साल से रावण का पुतला बना रहे हैं। इस साल भी जफर ने हनुमान जी की पूजा करके रावण का पुतला बनाना शुरू किया। पहले पंजाब से हर साल ढाेल बजाने के लिए चरण दास आते थे। उन्हाेंने बाॅलीवुड की कई फिल्माें में ढाेल बजाए हैं। उन्हाेंने ही पटना के शम्शुद्दीन काे खास तरह से ढाेल बजाना सिखाया। और अब पिछले 30 वर्षाें से वे ढाेल बजा रहे हैं।

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