मैं दीपक चौरसिया के साथ हुए दु’र्व्यवहार की निंदा करता हूं, आप चैनल मत देखिए, लेकिन पत्रकारों को काम करने दीजिए

शाहीन बाग़ को ही इम्तहान देना है। इसलिए मीडिया हो या कोई और हो उसके साथ किसी तरह की ध/क्का मु/क्की या हिं/सा नहीं होनी चाहिए। पत्रकार भले वो स्टुडियो से हिं/सा की भाषा बोलते रहें। जो आंदोलन की ज़मीन पर उतरता है उसे ही अपने भीतर आत्म बल विकसित करना होता है। उसे ही संयम रखना होता है। इसलिए मेरी राय में उत्तम तो यही होगा कि दीपक चौरसिया के साथ हुई घटना की मंच से निंदा की जाए। इससे एक काम यह होगा कि वहाँ मौजूद सभी लोगों में अ/हिंसा के अनुशासन का संदेश जाएगा। जब शाहीन बाग़ कश्मीरी पंडितों पर चर्चा कर सकता है और उनके साथ खड़े होने का एलान कर सकता है तो मुझे उम्मीद है कि यह भी करेगा। पत्रकार के साथ हिंसा हो यह अच्छी बात नहीं। मैं अगर या मगर लगा कर, तब और अब लगा कर यह बात नहीं कहना चाहता।

साथ में मीडिया का अध्ययन करने वाले विनीत कुमार का पोस्ट साझा कर रहा हूँ –

“ शाहीनबाग में दीपक चौरसिया के साथ जो हुआ गलत हुआ. हम इसकी निंदा करते हैं.

कारोबारी मीडिया को पता है कि हम चाहे लोकतंत्र और नागरिकों के खिलाफ कितने खड़े हो जाएं, कॉर्पोरेट की बैलेंस शीट दुरूस्त रखने और अपनी कुंठा की दूकान चलाने के लिए चाहे जिस हद तक गिर जाएं, समाज का संवेदनशील और तरक्कीपसंद तबका ये हम पर हुए हमले, हिं/सा की जरूर आवोचना करेगा. उसे खुद को मानवीय दिखने के लिए ऐसा करना जरूरी होगा.

यही कारण है कि सालभर तक जिस कारोबारी मीडिया की कारगुजारियों को जो लोग सिर झुकाकर झेलते हैं या फिर जमकर आलोचना करते हैं, दोनों एक स्वर में ऐसे मीडियाकर्मियों पर हुए ह/मले की निंदा करते हैं. कोई विकल्प भी नहीं है उनके पास.

राजदीप सरदेसाई को विदेश में जिस तरह जलील करते हैं, ह/मले करते हैं, एक तबका इस पर जश्न मनाता है और दीपक चौरसिया या फिर जी न्यूज के मीडियाकर्मी पर हुए ह/मले की निंदा करता है. ऐसा क्यों है ?

यदि आप मानवीय संवेदना के पक्षधर हैं तो आपको समान रूप से सबका विरोध करना चाहिए. लेकिन नहीं. आप ऐसा नहीं कर सकते. अब किसी भी मीडियाकर्मी पर ह/मला एक राजनीतिक गुट के प्रतिनिधि पर ह/मला है और आपको उस हिसाब से विरोध या जश्न के साथ होना होता है. बाकी संवेदनशीलता का फायदा तो उन्हें मिलता ही है.

इससे पहले कि आप मुझे इस हमले का समर्थक मान लें, मैं आपसे बस एक सवाल पूछना चाहता हूं कि दीपक चौरसिया ने पिछले एक साल-दो साल- तीन साल…में ऐसी कौन सी रिपोर्टिंग की है जो जनतंत्र को मजबूत करता है ?

अपील : इस ह/मले का विरोध करते हुए मेरी अपील होगी कि कारोबारी मीडिया के मीडियाकर्मियों को मा/रिए नहीं, ह/मले मत कीजिए. आपको लगे कि वो नागरिक के खिलाफ काम कर रहा है, नाम लेना बंद कर दीजिए. एक पब्लिक फेस, मीडियाकर्मी के लिए गुमनामी से बड़ी मौत कुछ नहीं. शाहीनबाग में उन पर ह/मला करके एक मरे चुके ज़मीर के मीडिया कारोबारी को ह/मलावरों ने लोगों की निगाह में जिं/दा कर दिया जो कि गलत हुआ।”

RAVISH KUMAR

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