अफसोस, लोकसभा में मुजफ्फरपुर में मासूमों की मौ-त के मसले को उठाने के लिए बिहार का कोई MP नहीं है
PATNA : अफसोस है कि नए लोकसभा में बिहार के मुजफ्फरपुर में मासूमों की मौ-त के मसले को उठाने के लिए राज्य का कोई सांसद नहीं है। मैं अपनी पार्टी को धन्यवाद देती हूं कि लोकसभा में कांग्रेस के नेता माननीय Adhir Ranjan Chowdhury जी ने बड़ी ही संजीदगी से तथ्यात्मक तरीके-से इस मसले को उठाया। बिहार से नहीं होने के बावजूद अधीर दा ने इस मुद्दे को बहुत ही संवेदनशीलता के साथ रखा। दुःखद बात यह है कि बिहार का कोई ऐसा सांसद नहीं था जो बच्चों की मौ-त के मामले को मज़बूती से उठाता, वहां स्वास्थ्य महकमे में फैले भ्रष्टाचार, दलाली, सरकार और प्रशासन के भ्रष्ट रवैये, जानलेवा लापरवाही को उजागर करता।
हालांकि, बीजेपी के वरिष्ठ सांसद राजीव प्रताप रूडी ने इस मसले पर सदन में मुंह तो खोला, लेकिन उनके भाषण में दो सौ मासूमों की मौ-त का दुःख कम लीची की चिंता ज्यादा थी। उन्हें बच्चों की मौत के बजाय लीची का व्यापार प्रभावित होने की पीड़ा अधिक थी। उनका यह कहना कि इसमें निश्चित तौर पर चीन की साजिश है कि स्थानीय लीची न बिके, शर्मनाक है! अफसोस है कि हम ऐसे लोगों को जीता कर संसद भेजते हैं, जिन्हें लीची की चिंता तो है, लेकिन दो सौ मासूम मर जाएं तो उनके लिए सदन में चिंता तक नहीं व्यक्त कर सकते हैं।
आज मैं अपने दिल की बात कर रही हूं, मुझे आज सदन की बहुत याद आयी। अभी चुनाव से चंद महीने पहले इसी मुजफ्फरपुर के बालिका गृह कांड के मुद्दे को मैंने और मधेपुरा के तत्कालीन सांसद पप्पू यादव जी ने सदन में पुरजोर तरीके-से उठाया था, जिसके बाद ही सीबीआई जांच शुरू हुई। सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में कार्रवाई चल रही है, चार्जशीट हुई, आरोपी जेल में हैं। आज एक बार फिर से सरकार की विफलताओं, मुजफ्फरपुर बाल नरसंहार के मसले को मज़बूती से रखने की जरूरत थी। लेकिन ऐसा लगता है कि जदयू-भाजपा के एक भी सांसद को बिहार की, बच्चों की चिंता न होकर, उनकी अपनी पार्टी का हित और जीतने का जश्न ज्यादा जरूरी था।
लेखक : रंजीता रंजन, पूर्व एमपी, सुपौल
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