कोरोना की दवाई ‘रेमडेसिविर’ को लेकर भारत में खेल शुरू, 6 डोज की कीमत लगभग 32000 होगी

कोरोना की एकमात्र उपलब्ध दवाई ‘रेमडेसिविर’ को लेकर भारत मे ऐसे ऐसे खेल खेले गए है कि पढ़ पढ़ कर आश्चर्य से आंखे चौड़ी हो जाती है.. ….. कोरोना मरीज को रेमडेसिविर की 6 डोज की अनुमानित कीमत लगभग 32 हजार रु होगी यह आपको बतला चुका हूँ इस दवाई का पूरा इतिहास भी पिछली कई पोस्ट में लिख चुका हूँ ………

आज एक मित्र ने उस पोस्ट पर एक फ़ोटो के रूप में कमेन्ट किया जिसमे रेमडेसिविर के बारे में एक अनोखी बात पता चली है कि भारत का सीडीएससीओ बिना पूरी ट्रायल प्रक्रिया के कोरोना मरीजो को रेमडेसिविर को देने की सिफारिश करने जा रहा है, यह सीडीएससीओ की एक्सपर्ट कमेटी का फैसला है!…..

दरसअल सीडीएससीओ का अर्थ है ‘सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन’…… यह एक ऐसी संस्था है जो देश मे दवा को अनुमति देने का कार्य करती है …….तो ऐसी संस्था बिना तीन चरणों के ट्रायल प्रक्रिया के पूरे न होने के बावजूद भी कैसे कोरोना मरीजो के लिए इस दवा के इस्तेमाल की अनुमति दे रही है?

जब इस बात की खोजबीन करने की कोशिश की तो एक बहुत ही आश्चर्यजनक जानकारी मिली कि मार्च 2019 के स्वास्थ्य विभाग ने नोटिफिकेशन जारी किया था कि किसी दवा को लेकर किसी भी देश में शोध और क्लीनिकल ट्रायल चल रहा हो, तो ट्रायल के दौरान ही वह दवा भारत लाई जा सकती है। अगर भारत सरकार को लगता है कि वह दवा यहां मरीजों के लिए बहुत जरूरी है और उसका कोई विकल्प उपलब्ध नहीं है तो बिना क्लीनिकल ट्रायल पूरे हुए ही उसे भारत में बनाने और मरीज को खिलाने की इजाजत दी जा सकेगी। यह दैनिक भास्कर की 29 मार्च 2019 की खबर है लिंक उपलब्ध है इसमें लिखा है ‘न्यू ड्रग्स एंड क्लीनिकल ट्रायल रूल्स के नए नियम के मुताबिक किसी नई दवा का यदि दो चरणाें का क्लीनिकल ट्रायल सफल रहा हो और तीसरे चरण का ट्रायल चल रहा हो, ताे उस दौरान दवा का इस्तेमाल हो सकता है। यदि मरीज किसी अस्पताल में भर्ती है और इलाज करने वाले डॉक्टर कहते हैं कि इस बीमारी के इलाज के लिए कोई दवा किसी देश में तैयार हो रही है और दो चरण का क्लीनिकल ट्रायल सफल रहा है तो उसी समय वह दवा भारत में बनाने की इजाजत सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (सीडीएससीओ) दे सकता है।

इस से पहले यह नियम था कि नई दवा का तीन चरण का क्लीनिकल ट्रायल पूरा होने के बाद दवा बनाने वाली कंपनी उस दवा को बाजार में उतारती थी,

कमाल की बात है कि नए नियम बनाने के लगभग एक साल के बाद रेमडेसिविर के लिए संभवतः पहली बार यह नियम इस्तेमाल किया जा रहा है , यह भी गौर करने लायक बात है कि भारत सरकार ने रेमडेसिविर के लिए अमेरिकी कम्पनी गिलियड साइंस 20 फरवरी 2020 को ही पेटेंट प्रदान किया है………..

साफ दिख रहा है कि भारत सरकार अमेरिकन फार्मा कंपनियों के दबाव में बेहद महंगी दवाई को अनुमति देने जा रही है …….सारे बुध्दिजीवीयो, सारे डॉक्टरों को रेमडीसीवीयर किसलिए बनी थी? क्यो ओर कैसे इसका इस्तेमाल इस कोरोना बीमारी में किया जा रहा है? बड़े बड़े मेडिकल जर्नल में इसके बारे में क्या लिखा है?………..सब खेल मालूम है लेकिन वह कभी भी इन फार्मा लॉबी के खिलाफ मुँह नही खोलेंगे बल्कि यह खेल बताने वाले ओर समझाने वाले को ही कांस्पिरेसी थ्योरिस्ट बता देंगे….

Girish Malviya

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