10 रुपया में भरपेट भोजन, गरीबों के मसीहा किरण को सलाम, आर्थिक दान के लिए आपकी जरूरत है

कोई आम सा दिन था. एक लड़का अपने दफ्तर में बैठा था. फोन आया. दूसरी तरफ से किसी ने कहा कि हो सके तो फलां अस्पताल में पहुंच जाओ.. एक ज़रूरतमंद को खून देना है. वो लड़का उठा. खून दिया. सोचा कि जिसके लिए खून दिया है उसका हालचाल लिया जाए.

टहलते हुए मरीज़ के बिस्तर पर गया. देखा कि फटेहाल औरत बैठी है. उसके ही पति को खून की ज़रूरत थी. जिसने फोन किया था वो खून का इंतज़ाम किया करता था. उस लड़के ने बातचीत की तो मालूम चला कि जो खून उसने “दान” दिया है उसकी क़ीमत फोन करनेवाले ने इस गरीब परिवार से वसूली है. लड़के को छला हुआ महसूस हुआ. वो खून लेने देने के धंधे का शिकार हुआ था. लड़के ने पर्स निकाला. उस महिला को उतने पैसे दिए जितने महिला ने खून के लिए चुकाए थे.

फिर वो लड़का अस्पताल वालों से लड़ने पहुंचा. हंगामा खड़ा हो गया. अस्पताल के कुछ सयाने लोगों ने समझाया कि जो तुम्हें बहुत बड़ा लग रहा है वो आम घटना है. उस लड़के को बात समझ आ रही थी मगर बुरा भी लग रहा था. उसने पूछा कि इस मामले का हल क्या है? किसी ने बताया कि खून देनेवाले कम हैं, लेनेवाले ज़्यादा इसलिए खून बेचने का धंधा चल रहा है.

यदि लेने देने का अनुपात बराबर हो जाए तो बात बन जाएगी. बस लड़के ने तय कर लिया कि वो रक्तदान के लिए लोगों को मनाएगा. उसने नौकरी वगैरह छोड़ दी. जितना पैसा पास था सब अभियान में झोंक दिया. भारत भर की यात्रा पैदल पैदल की. अभी भी उसका मिशन पूरा नहीं हुआ कि लॉकडाउन हो गया. भूखे घूमते लोग उसे देखना बर्दाश्त नहीं हुआ तो उसने एक और मोर्चे पर लड़ाई छेड़ दी.

तस्वीरों में देखकर समझ लीजिए कि कैसे लड़ रहा है. मैं उसकी इस लड़ाई में साथ रहूंगा. आप रह सकें तो और बढ़िया. लड़के का नाम किरण है. उम्मीदों की किरण. कमेंटबॉक्स में मदद करने का तरीका लिख रहा हूं. बाक़ी लाइक मार के कतरा कर निकलने का विकल्प तो है ही.

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-नितीन ठाकुर

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