मोदीजी देश के सभी MP करोड़पति हैं, फिर संसद में सस्ता खाना क्यों, प्लीज कैंटीन बंद करिए ना…

17वीं लोकसभा में 475 सांसद करोड़पति हैं. 88 फ़ीसदी सांसद. एवरेज निकाले तो प्रति सांसद 20 करोड़ रुपए. फिर कैंटीन में सस्ता खाना क्यों? फिर सैलरी इतनी ज़्यादा क्यों? फिर गाड़ी-पेट्रोल का खर्च फ़्री क्यों? ये लोग अमीर होकर देश की नीतियों पर, ग़रीबों पर बात कर सकते हैं लेकिन अच्छे कपड़े पहन कर, चश्मा लगा कर कोई छात्र या नौकरीपेशा अपने देश के शिक्षा मुद्दों पर बात क्यों नहीं कर सकता?

जेएनयू में फ़ीस बढ़ोतरी पर प्रदर्शन हुए तो एक से एक ढपोरशंख आए ये साबित करने कि फ़ीस बढ़ना सही है. मतलब हद पार करने वाली एक टिप्पणी तो ये देखी कि ‘इन ग़रीबों ने इतने बच्चे पैदा किए क्यों अगर फ़ीस नहीं भर सकते तो.’

मतलब फ़ीस बढ़ना जायज़ है, आप बाक़ी खर्चे कम कर दो जैसे ‘पिज़्ज़ा’ और ‘फ़िल्म’. ये पिज़्ज़ा और फ़िल्म इनका फ़ेवरेट है. पहले सैनिक लगाते हैं और वो काम ना करे तो पिज़्ज़ा और फ़िल्म तो है ही.

आधा लीटर दूध 21 रुपए से 27 रुपए का हो गया है पिछले 4 साल में. यानी हर रोज़ आप एक लीटर दूध ख़रीदो तो 12 रुपए ज़्यादा और महीने में 360 रुपए ज़्यादा. यानी महीने में दूध का खर्चा ही 1620 रुपए है. ये कॉमेंट करने वाले भूल जाते हैं कि इंसान को खाना, पहनना और छत के नीचे रहना भी होता है और उसके खर्चे अलग हैं. जो लोग रोज़ ख़रीददारी करते हैं, उन्हें पता है और वे सोशल मीडिया पर लिखते नहीं हैं. वरना आपको पता चल जाएगा कि किस महंगाई में लोग रह रहे हैं. मैंने 2 रुपए महंगी सब्ज़ी होने पर लोगों को अगले ठेले पर बढ़ जाते देखा है.

किसी सर्विस वाली जगह कार्ड से भुगतान करो तो दुकानदार कहता है कि सर्विस टैक्स लगेगा. कैश दोगे तो नहीं लगेगा. अगर किसी का बिल 3000 का आया और उस पर 450 रुपए अतिरिक्त देना पड़े तो कौन है इन कॉमेंटबाजों में जो कैश नहीं, कार्ड से भुगतान करेगा? ये ब्लैक मनी गया दुकानदार के पास. ये लाएँगे जीएसटी और लड़ेंगे काले धन से.

अब इनको कहें कि प्राइवेट स्कूलों की फ़ीस बहुत ज़्यादा है तो बोलेंगे कि सरकारी में पढ़वा लो. सरकारी स्कूलों को बेहतर करने की बात करेंगे तो फिर पिज़्ज़ा बर्गर और सैनिक आ जाएगा. जो पत्रकार आपको ये बताए कि फ़ीस बढ़ना, रेल का किराया बढ़ना और मेट्रो का किराया महिलाओं के लिए मुफ़्त नहीं होना जायज़ है तो वो पत्रकार आपकी साइड में कभी नहीं है. वो किसी पार्टी का भी नहीं है. जब जिसकी सत्ता होगी, उसका होगा क्योंकि उसको तो उसकी सेवाओं के बदले बिल्डर सस्ता घर भी दे देते हैं, उसके बच्चों का एडमिशन मंत्री जी करवा देते हैं, रेलवे का रेज़र्वेशन भी हो जाता है और एम्स अस्पताल में बिना लाइन में लगे डॉक्टर को दिखा भी लेते हैं.

बात ये है कि बेहतर सुविधा मत चाहो, सस्ते में और कम में काम चलाओ, जितने में गुज़ारा चल जाए वैसी नौकरी करो, दो वक़्त का खाना और 4 जोड़ी कपड़े काफ़ी हैं. ग़ज़ब बात है कि कैपिटलिस्ट सरकार तुमको कॉम्युनिस्ट बनाने पर तुली है.

-sarvpriya sangwan, bbc

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