1920 में आज ही के दिन बिहार बना था पूर्ण राज्य, सौ साल का हुआ बिहार विधानसभा

पटना. वर्ष 1920 बिहार और बिहार की विधायिका के इतिहास में खास मायने रखता है। इसी वर्ष ‘बिहार एवं उड़ीसा’ को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला एवं राज्यपाल की नियुक्ति हुई। यही नहीं इसी साल बिहार विधानमंडल के मुख्य भवन का निर्माण कार्य भी पूरा हुआ। इस दृष्टि से आज बिहार को पूर्ण राज्य बने 100 साल हो गए, जब इसे गवर्नर्स स्टेट का दर्जा मिला। उप राज्यपाल की जगह राज्यपाल की नियुक्ति की गई और लॉर्ड सत्येन्द्र प्रसन्नाे सिन्हा बिहार के पहले राज्यपाल बने। उन्होंने 7 फरवरी 1921 को सर वाल्ट मोरे की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई नवगठित बिहार एवं उड़ीसा प्रांतीय परिषद की पहली बैठक को इसी नए भवन में संबोधित किया। इसके पहले 18 वीं शताब्दी के मध्य में अंग्रेजी शासन के दौरान बिहार का भू-भाग बंगाल प्रेसीडेंसी का अंग बना। लेकिन, बिहार के लोग अपनी सक्रियता व कर्मठता के बल पर अलग पहचान बनाए रखने में सफल रहे। इस दौरान बिहार को बंगाल से अलग करने की मांग लगातार उठती रही। इस दिशा में सबसे महत्वपूर्ण दिन 12 दिसंबर 1911 था, जब ब्रिटिश सम्राट जार्ज पंचम ने दिल्ली दरबार में बिहार और उड़ीसा को मिलाकर बंगाल से अलग एक राज्य बनाने की घोषणा की। इस तरह 22 मार्च 1912 को बंगाल से अलग होकर ‘बिहार एवं उड़ीसा’ राज्य अस्तित्व में आया और सर चा‌र्ल्स स्टुअर्ट बेली इस के पहले उप राज्यपाल बने।

22 मार्च 1912 को ‘बिहार एवं उड़ीसा’ राज्य के अस्तित्व में अाने के बाद नये राज्य की विधायिका के रूप में 43 सदस्यीय विधायी परिषद का भी गठन किया गया। इसमें 24 सदस्य निर्वाचित थे और 19 सदस्य उप राज्यपाल द्वारा मनोनीत थे। यही परिषद आज बिहार विधानसभा के रूप में विद्यमान है। इसकी पहली बैठक 20 जनवरी 1913 को पटना में हुई। बाद में सदस्य संख्या 103 हो गई। भारत सरकार अधिनियम 1935’के तहत विधानसभा अाैर विधान परिषद के गठन के बाद विधानसभा के सदस्यों की संख्या 152 कर दी गई। 1952 में पहले आम चुनाव हुए। इसमें 330 सदस्यों का प्रत्यक्ष निर्वाचन हुआ, जबकि एक सदस्य मनोनीत किये गये। वर्ष 1977 में जनसंख्या वृद्धि के अनुपात में संख्या 324 हो गई और एक मनोनीत सदस्य पूर्ववत बने रहे। वर्ष 2000 के बाद झारखंड राज्य बनने पर विधानसभा में सदस्याें की संख्या 324 से घटकर 243 रह गई। 81 सदस्य व एक मनोनीत सदस्य झारखंड विधानसभा के सदस्य हो गए।

‘भारत सरकार अधिनियम 1935’ पारित किया गया। इसके तहत बिहार और उड़ीसा अलग-अलग स्वतंत्र प्रदेश बने। इधर, प्रांतों में द्विसदनीय विधायिका की शुरुआत हुई जिसमें बिहार में पूर्व से कार्यरत विधायी परिषद का नामाकरण बिहार विधानसभा के रूप में किया गया, जबकि एक अलग उच्च व समीक्षात्मक सदन के रूप में बिहार विधानपरिषद का गठन किया गया। इस प्रकार विधान परिषद अस्तित्व में आया। विधानसभा कक्ष के उत्तर में उसी भवन में निर्मित नये सदन कक्ष में 30 सदस्यीय विधानपरिषद की पहली बैठक राजीव रंजन प्रसाद की अध्यक्षता में 22 जुलाई 1936 को सम्पन्न हुई। आज भी विधान परिषद की बैठकें उसी कक्ष में होती आ रही हैं। संविधान लागू होने के बाद परिषद में सदस्याें की संख्या 72 कर दी गई। वर्ष 1958 में यह बढ़कर 96 हो गई। वहीं बिहार के बंटवारे के बाद वर्ष 2000 में सदस्यों की संख्या घटकर 75 रह गई।

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‘ शिक्षा का अर्थ अंग्रेजी कम और फ्रेंच, जर्मन तथा जापानी ज्ञान अधिक है। देश को हमारा आमंत्रण है कि वह चर्खा अपनाए क्योंकि यह राष्ट्रीय उद्योगों के विकास का ऐसा साधन है, जिस पर सर्वाधिक विश्वास किया जा सकता है। साथ ही शराबबंदी के द्वारा समाज सुधार के प्रयासों को भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। मैं यह भी नहीं मान सकता कि आप शराब की लत प्रतिबंधित करने के लिए अल्कोहलवाली शराब या फिर नशीली दवाओं के निर्माण, भंडारण या फिर उनकी बिक्री पर नियंत्रण के लिए सुचिंतित उत्पाद नीति के बजाय अन्य उपायों का सहारा लेंगे। इन सभी मामलों के नियंत्रण के लिए ऐसी नीति बनायी जानी चाहिए जो आपकी इच्छाओं के साथ-साथ जनता की आकांक्षाओं का उचित सम्मान भी करती हो।’

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