जयंती : बिहार के महान गीतकार शैलेन्द्र को शत-शत नमन, आज भी इनके गीत लोगों को याद है

आज बिहार के महान गीतकार शैलेन्द्र की जयंती है है। शैलेन्द्र अर्थात वह गायक जो दुनिया छोड़कर कब का जा चुका हैं, लेकिन उनके गीत आज भी लोगों को याद है…

एक कवि से ज्यादा गीतकार के रूप में हिंदी सिनेमा में पहचान बनाने वाले उस गीतकार की कहानी जिसने सिनेमा को आंखों तक ना रहने दिया उसे अपने गीतों से हर वर्ग के लोगों के होठों तक पहुंचाया,फिर वह लोग चाहे फुटपाथ पर सोने वाले हो,कंधे पर गमछा डाले मजदूरी करने वाले हो या फिर इसके उलट सूट बूट टाई पहनने वाले वह लोग हों जो बीसवीं सदी के अंधकार में डूबे उस समय में इंद्रधनुषी दुनिया में जीते थे।उन गीतों ने न सिर्फ लोगों के होठों पर जगह बनाई साथ ही वो उनके दिलों में भी बस गए। ऐसे गीतकार का नाम है शंकरदास केसरी लाल शैलेंद्र। इन्हें फिल्मी दुनिया से लेकर आमजन गीतों के जादूगर के नाम से जानता है, आज इसी जादूगर का 96वां जन्मदिन है।

शैलेंद्र के वर्षों पहले लिखे गीत जो कभी बैलगाड़ी पर बैठकर सुने जाते थे वो आज के समय और पीढ़ी के साथ इतने जुड़े हुए हैं कि वही गीत हर उम्र के लोग आज मैट्रो में चलते हुए सुनते हैं।

अपने गीतों के दम पर अमर हो जाने वाले शैलेंद्र 1923 को पाकिस्तान के रावलपिंडी में जन्में लेकिन पिता के कारोबार के डूब जाने से पूरे परिवार के साथ उत्तर प्रदेश के मथुरा में आ गये और यहीं से उन्होंने मुंबई तक का सफर तय किया और सबके दिलों पर छा गए। लेकिन ये सफर इतना आसान नहीं था।जिस दुनिया ने इन्हें दौलत और शोहरत से नवाज़ा उसी दुनिया ने एक समय जब शैलेंद्र किशोर थे और हॉकी खेल रहे थे तब इनकी गरीबी पर तंज कसते हुए कहा था “घर में खाने के लिए पैसे नहीं हैं और तुम यहां रोज आकर हॉकी खेलते हो।” ये बात शैलेंद्र को इतने गहरे चुभी कि उन्होंने हॉकी को उसी वक्त तोड़ दिया और दुबारा हाथ नहीं लगाया और उसी वक्त से कमाने का फैसला कर लिया।नौकरी की तलाश में वो मुंबई आ गए लेकिन मुंबई ने उन्हें अपना बनाने के लिए खूब तरसाया। यहां सिनेमाइ दुनिया से जुड़ने की बजाए उन्हें रेलवे में वेल्डर की नौकरी मिली।इस बीच उन्होंने अपनी डफली की धुन और शब्दों के जादू को सजीव बनाए रखा और इप्टा(Indian people theatre association)से जुड़ गए। यहां उनके बोल क्रांतिकारी और वामपंथी तेवर में ढले गीत लिखे जो मजदूर वंचितों की आवाज और कई आन्दोलनों की रणभेरी बने–

“तू जिंदा है तो जिंदगी की जीत पर यकीन कर
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला जमीन पर “
“हर जोर जुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है…”

अब वो एक कवि के रूप में लोगों के बीच प्रशिद्धि पा चुके थे, आए दिन उनके कवि सम्मेलन होने लगे। एक दिन ऐसे ही किसी कवि सम्मेलन में जब वो कविता सुना रहे थे उनकी मुलाकात पृथ्वीराज कपूर से हुई जो कि वहां अपने बेटे राजकपूर के साथ कविता सुनने आए हुए थे। राजकपूर ने शैलेंद्र को पास बुलाकर उनसे कहा क्या तुम मेरी फिल्म आग के लिए गाने लिखोगे…?इस पर शैलेंद्र ने उनसे कहा मैं पैसों के लिए नहीं लिखता लेकिन उनकी वैल्डर की नौकरी उनकी जरुरतें पूरी नहीं कर सकी और राजकपूर का दिया वो आॉफर उन्होंने स्वीकार कर लिया। गीत लिखने का ये सिलसिला बरसात फिल्म से शुरू हुआ और “बरसात में हमसे मिले तुम सजन” गाने को फिल्म का सुपरहिट गाना शैलेंद्र ने लिखा।

फिर इसके बाद उन्होंने मुड़-मुड़ के ना देखा और आवारा, अनाड़ी, श्री 420 के सुपरहिट गीत लिखे। शैलेंद्र ने अपने गीतों के दम पर दिल ही नहीं जीते बल्कि 3 बार सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्मफेयर अवार्ड भी अपने नाम किया।

शैलेंद्र के गीतों में ऐसा क्या था जो सिनेमा के लिए लिखे बोल आम लोगों की रोज़मर्रा की जिंदगी का एक हिस्सा बन गए…?इसके पीछे थी उनकी सरल सपाट भाषा,इस भाषा को जब भी वो अपने बोलों में ढ़ाल देते तो कानों के रास्ते उनके यह बोल सीधे दिल तक उतर जाते…

शैलेंद्र ने फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी पर जब ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म का बतौर निर्देषक जब निर्माण शुरू किया था, तब उनकी आर्थिक मुश्किलों का दौर शुरू हुआ। फ़िल्मी कारोबार से उनका वास्ता पहली बार पड़ा था, वे क़र्ज़ में डूब गए और फ़िल्म की नाकामी ने उन्हें बुरी तरह तोड़ दिया. ये भी कहा जाता है कि इस फ़िल्म की नाकामी के चलते ही उनकी मृत्यु हुई।
ये भी दिलचस्प संयोग है कि शैलेंद्र का निधन उसी दिन हुआ जिस दिन राजकपूर का जन्मदिन मनाया जाता है। राजकपूर ने अपने दोस्त के निधन के बाद कहा था, “मेरे दोस्त ने जाने के लिए कौन सा दिन चुना, किसी का जन्म, किसी का मरण,कवि था ना! इस बात को ख़ूब समझता था।”

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *