PATNA (Son refuses to pay mother expenses after taking 50 bighas of land, High Court says— should be ashamed) : सुनने में भले आश्चर्य लगे लेकिन यह सच है। एक माता-पिता जो बच्चों का पालन पोषण करने के लिए जीवन भर संघर्ष करते हैं, उन्हें पढ़ाते लिखाते हैं उनके हर बात का ख्याल रखते हैं लेकिन वही बच्चा जब बड़ा होता है तो माता-पिता की जिम्मेदारी उठाने से इनकार कर देता है। ऐसा ही एक मामला पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के सामने आया है। मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के जज ने कहा यह मामला काफी दुर्भाग्यपूर्ण है और इसने कोर्ट की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है।
जस्टिस जसगुरप्रीत सिंह पुरी ने फैसला देते हुए कहा कि बेटा-पिता की संपत्ति का उत्तराधिकारी है, वह मां को ₹5000 महीना गुजारा भत्ता इसलिए नहीं देना चाहता क्योंकि वह शादीशुदा बेटी के घर रहती है। यह तर्क समझ से पड़े हैं, इसका कोई आधार नहीं है, इसलिए कोर्ट याचिका खारिज करती है, डिसमिस । इतना ही नहीं कोर्ट ने इतना तक कह दिया कि यह मामला कलयुग का उत्कृष्ट उदाहरण है। बेटे के ऊपर ₹50000 का जुर्माना और 3 महीने के अंदर मां के नाम पर पैसा जमा करने का आदेश दिया गया है।
इससे पहले इस मामले की सुनवाई करते हुए फैमिली कोर्ट ने आदेश दिया था कि मां द्वारा जो मांग की जा रही है वह एकदम सही है ₹5000 वर्तमान समय में कोई बड़ी राशि नहीं है और पिता के मौत के बाद जब बेटा अपने माता-पिता की पूरी संपत्ति ले चुका है तो ₹5000 तो देना बनता ही है।
बताते चलें कि 77 साल की महिला के पति का निधन 32 साल पहले हो गया था। उनके परिवार में एक बेटा और एक बेटी है। दो बेटों में से एक बेटे की मौत हो चुकी है। पति के निधन के बाद महिला के हिस्से में 50 बीघा जमीन आया, जिसे उसने अपने बेटे और पोतों में बांट दिया। साल 1993 में उस महिला को रहने और खाने-पीने के लिए ₹100000 की राशि दी गई थी, जिसके बाद वह महिला अपनी बेटी के साथ रहने लगी। इस दौरान फैमिली कोर्ट ने महिला को ₹5000 देने का बेटे को आदेश दिया। लेकिन बेटे ने मां को हर महीने ₹5000 देने से इसलिए इनकार कर दिया क्योंकि उसका कहना था की मां हमारे साथ नहीं रहती है, बल्कि वह बेटी के साथ रहती है। मां की ओर से एक वकील ने हाईकोर्ट में कहा कि हमारे पास आमदनी का कोई सोर्स नहीं है इसलिए भरण पोषण के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था होनी चाहिए।
हाई कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि जब फैमिली कोर्ट ने यह फैसला दे दिया तो बेटा इसके विरोध में हाईकोर्ट तक आया है यह एक बेहद दुर्भाग्यपूर्ण मामला है।