सेना में तीस साल की नौकरी, एनआरसी और डिटेंशन कैंप

सेना में तीस साल की नौकरी, एनआरसी और डिटेंशन कैंप

सनाउल्लाह भारतीय सेना के रिटायर्ड जवान हैं. 30 साल तक सेना में सेवा दी है. वे भारतीय सेना के इलेक्ट्रॉनिक्स और मैकेनिकल इंजीनियर्स विंग में बतौर सूबेदार तैनात थे. वे अपने कार्यकाल के दौरान जोधपुर, दिल्ली, जम्मू कश्मीर, सिकंदराबाद, गुवहाटी, पंजाब, मणिपुर जैसी जगहों पर सेवाएं देकर 2017 में रिटायर हुए.

असम में एनआरसी की फाइनल सूची आई तो 52 साल के सनाउल्लाह का नाम सूची में नहीं आया. उन्होंने अपनी नागरिकता से जुड़े कई दस्तावेज़ दाखिल भी किए लेकिन उन्हें नहीं माना गया. फॉरेन ट्रिब्यूनल ने 23 मई को सनाउल्लाह को विदेशी घोषित कर दिया और उन्हें गिरफ्तार करके डिटेंशन सेंटर भेज दिया गया.

रिपोर्ट के मुताबिक, 2008-09 में सनाउल्लाह की नागरिकता की जांच की गई थी, जिसके बारे में उन्हें कुछ पता नहीं था. उस समय वे मणिपुर में तैनात थे. इस कथित जांच के दौरान उनके अंगूठे का निशान लिया गया था और उन्हें एक अवैध प्रवासी मज़दूर बताया गया था.

जब सनाउल्लाह पर यह कार्रवाई हुई, उस समय वे असम पुलिस की बॉर्डर शाखा में बतौर सब-इंस्पेक्टर तैनात थे, जिसका काम राज्य में अवैध प्रवासियों का पता लगाना था. उसी बॉर्डर पुलिस ने सनाउल्लाह को ही गिरफ्तार किया.

सनाउल्लाह की गिरफ्तारी के बाद उनके भाई फ़ैज़ुल हक़ ने कहा, ‘जो व्यक्ति 30 साल तक सेना में रहा हो और पाकिस्तान के ख़िलाफ़ करगिल युद्ध लड़ा हो उसे कोई विदेशी नागरिक कैसे घोषित कर सकता है. 2015 में जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों के साथ लड़ते हुए सनाउल्लाह को पैर में गोली लगी थी. हमने कभी नहीं सोचा कि हमारे भाई को विदेशी घोषित कर डिटेंशन में बंद कर दिया जाएगा.’

सनाउल्लाह के परिवार का नाम 1966, 1970 और 1977 की मतदाता सूची में भी था. उनका खुद का मैट्रिकुलेशन प्रमाण पत्र और पिता के नाम भूमि के दस्तावेज़ भी हैं.

सनाउल्लाह का कहना था कि “फौज में भर्ती के वक़्त गहरी छानबीन की जाती है, लेकिन अब इतने साल बाद उनकी नागरिकता पर किसी तरह का कोई शक क्यों पैदा किया जा रहा है? सेना में भर्ती के समय नागरिकता सर्टिफिकेट और दूसरे दस्तावेज़ मांगे जाते हैं. सेना उसे राज्य प्रशासन को भेजकर उसका रीवेरिफिकेशन करवाती है. ऐसे में ये सवाल तो उठने ही नहीं चाहिए.”

हालांकि, सनाउल्लाह को हाईकोर्ट ने 11 दिन बाद अंतरिम जमानत दी. वे जमानत पर छूट गए, लेकिन मुकदमा चलता रहेगा.

जेल से छूटकर सनाउल्लाह ने कहा, “29 मई की वो रात मेरे जीवन की सबसे काली रात थी. पुलिस मुझे देर शाम क़रीब 8 बजे ग्वालपाड़ा डिटेंशन सेंटर लेकर पहुंची थी. जेल के अंदर क़दम रखते ही मेरा बदन कांपने लगा था. मैं फ़ौजी हूं लेकिन मेरे सामने जो हालात थे उससे मैं टूट चुका था…मेरी आंखों के सामने फ़ौज में गर्व से काटे वो दिन बार-बार याद आ रहे थे. मैं सोच नहीं पा रहा था मैंने क्या ग़लती कर दी और मुझे जेल में डाल दिया गया. मेरा ब्‍लड प्रेशर हाई हो गया था. मैं उस रात बहुत रोया.”

सनाउल्लाह ने कहा, “मैंने 30 साल तक देश की सेवा की और मुझे ऐसे दिन देखने पड़ रहे थे…दो दिन तक मैंने जेल में किसी से कोई बात नहीं की. दो-तीन दिनों में मेरा शरीर काफ़ी कमज़ोर हो गया था. मेडिकल चेकअप भी करवाया. मैंने फ़ौज के दिनों को याद किया और उससे मुझे ताक़त मिली. सेना में हमें हर मुसीबत का सामना करना सिखाया जाता है. मैंने सीमा पर बहादुरी से खड़े होकर अपने देश का बचाव किया है. इसलिए हार नहीं मानूंगा. मैं भारतीय हूं और अपने देश में ही रहूंगा. वहां 40 फीट के कमरे में 45 लोग रह रहे थे.”

सनाउल्लाह की मानें तो जेल के अंदर लोगों की “तकलीफ़ सुनकर मैं अपना ग़म भूल गया. ऐसे लोग हैं जो 10 सालों से जेल में बंद हैं. अब उनसे कोई मिलने नहीं आता. घर-परिवार, बच्चे सब बर्बाद हो गए हैं. कुछ क़ैदियों को तो यह भी मालूम नहीं है कि आगे उनकी ज़िंदगी में क्या होगा. मुझसे सुझाव मांग रहे थे कि कैसे जेल से रिहा होंगे. अधिकतर क़ैदी न तो पढ़े लिखे हैं और न ही उनके पास कोर्ट में केस लड़ने के पैसे हैं. उनके दुख देखकर मैं अपने दुख भूल गया.”

खैर, सनाउल्लाह जेल में थे, उसी दौरान मामला मीडिया में उछला. पता चला कि जिन गवाहों के आधार पर उनके खिलाफ मामला दर्ज किया था, उन्होंने कहा कि उन्होंने तो कभी गवाही ही नहीं दी है. फिर सनाउल्लाह के खिलाफ जांच करने वाले अधिकारी के खिलाफ मामला दर्ज किया गया. बाद में सनाउल्लाह को जमानत मिल गई.

असम में सनाउल्लाह अकेले नहीं हैं जो एनआरसी का शिकार बने. उनके जैसे तमाम सैनिक और पूर्व सैनिकों से कहा गया कि वे अपनी नागरिकता साबित करें.

असम में इस कवायद से लोगों में डर पैदा हुआ. एक मानवाधिकार संगठन सिटीजन फार जस्टिस का आंकड़ा है कि एनआरसी के कारण अलग अलग वजहों से 100 लोगों की मौत हो चुकी है. 29 लोग डेटेंशन सेंटर में मरे, बाकियों ने आत्महत्या की, कुछ की प्रदर्शन आदि में भी मौत हुई होगी.

असम में सैकड़ों करोड़ रुपये फूंके गए. राज्य को अस्थिर किया गया. 19 लाख लोग छांटे गए. इनमें से 13 लाख हिंदू थे ​जो कागजात के अभाव में या सरकारी लापरवाही से अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाए. अंतत: नतीजा क्या निकला? ​नतीजा यही निकला कि राज्य में हुई एनआरसी नहीं मानी जाएगी. थू कच्ची. अब पूरे देश में होगी.

अभी तमाम सनाउल्लाओं की प्रताड़ना की दास्तान लिखी जानी बाकी है.

Krishnakant

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