सात दिन अनशन किया, तब पिता ने इंजीनियरिंग कराई…गरीब का बेटा बना वैज्ञानिक

चंद्रयान-2 के विक्रम (लैंडर) का पता चल गया है। वह लैंडिंग के वक्त गिर गया था। शनिवार तड़के चांद की सतह पर उतरने से पहले 2.1 किमी की ऊंचाई पर उससे संपर्क टूट गया था। इसराे प्रमुख के. सिवन ने बताया कि- ‘चांद का चक्कर लगा रहे अाॅर्बिटर के कैमराें ने िवक्रम का पता लगाया है। कुछ तस्वीरें भी भेजी हैं। प्रज्ञान (रोवर) विक्रम के अंदर ही है। वह बाहर नहीं आ पाया है।’ क्या हार्ड लैंडिंग से िवक्रम अाैर प्रज्ञान टूट चुके हैं? इस पर सिवन ने कहा कि- ‘यह जानकारी नहीं है। हम विक्रम से संपर्क करने की काेशिश कर रहे हैं। यह कहना अभी जल्दबाजी हाेगी कि
विक्रम से संपर्क हाे जाएगा।’

सात दिन अनशन किया, तब पिता ने इंजीनियरिंग कराई : तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले के नागरकोईल कस्बे में जन्मे के. सिवन की पढ़ाई तमिल मीडियम सरकारी स्कूल में हुई है। स्कूल में छुट्‌टी के दिन वह पिता के साथ खेत में काम करते थे। नंगे पैर ही स्कूल जाते थे और लुंगी पहनते थे। 12वीं में उन्होंने गणित में 100% अंक लिए। उसके बाद इंजीनियरिंग करना चाहते थे, लेकिन पिता ने कहा कि पास के कॉलेज से बीएससी कर लो, ताकि खेत में भी काम कर सको। सिवन अड़ गए और पसंद के कॉलेज जाने के लिए पिता के खिलाफ ही सात दिन के अनशन पर बैठ गए। फिर भी पिता नहीं माने तो बीएससी में ही दाखिला ले लिया। तभी पिता को सिवन की प्रतिभा का अहसास हुआ और उन्होंने सिवन को इंजीनियरिंग करने के लिए चेन्नई भेज दिया। इसके लिए उन्हें खेत बेचने पड़े। सिवन ने मद्रास इंस्टी‌ट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से बीई किया। यहीं उन्होंने पहली बार सैंडल और पैंट पहनी। सिवन 37 साल से इसरो में काम कर रहे हैं।

रातभर आॅफिस का काम, ताकि बच्चों को समय मिले : चंद्रयान-2 की मिशन डायरेक्टर ऋतु कारिधाल लखनऊ के एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार से आई हैं। स्कूल में फिजिक्स टीचर से इतनी प्रभावित हुईं कि फिजिक्स में ग्रेजुएशन किया। फिर एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की। ऋतु मंगल ऑर्बिटर मिशन में डिप्टी डायरेक्टर रह चुकी हैं। इसी दौरान उन्होंने ऑटोनॉमी सॉफ्टवेयर तैयार किया। इसरो में उनकी मुख्य भूमिका मिशन डिजाइन करने की है। ऋतु ने ही तय किया कि चंद्रयान-2 के लक्ष्य क्या होंगे और कैसे हासिल हाेंगे? वे बताती हैं- ‘2012 में बेटा नौ और बेटी चार साल की थी। तब घर पर होना भी बहुत जरूरी होता था। इसलिए मैंने काम का शेड्यूल बदल लिया। मैं रात-रात भर ऑफिस का काम करतीं और दिन में बच्चों को पूरा समय देती। इसी शेड्यूल के दौरान ही मंगल और चंद्रयान लॉन्च किए। कई बार इतना वक्त भी नहीं होता कि बीमार बच्चों को अस्पताल ले जा सकूं। बार-बार फोन पर टेंप्रेचर पूछती रहती थी।’

टीचर ने सूर्यकांत को चंद्रकांत बनाया, अब चंद्रयान पहचान : पश्चिम बंगाल के हुबली जिले मेंे शिवपुर गांव मेंे किसान परिवार में जन्म हुआ। पिता मधुसूदन और मां असीमा ने इनका नाम सूर्यकांत रखा था, लेकिन जब स्कूल में भर्ती कराने गए तो शिक्षक ने कहा- चंद्रकांत नाम अच्छा रहेगा। नाम बदलना सार्थक रहा और आज वही चंद्रकांत चंद्रयान अभियान का अहम हिस्सा हैं। परिवार तंगहाल था। गांव की झोपड़ी में पले-बढ़े चंद्रकांत रोज 10 किमी साइकिल चलाकर स्कूल जाते थे। उन दिनों अंतरमुखी और दोस्तों से भी कम बात करने वाले चंद्रकांत पिछले दो दशकों से इसरो में सैटेलाइट कम्यूनिकेशन में अहम जिम्मेदारी निभा रहे हैं। ग्राउंड स्टेशन से सैटेलाइट से वार्तालाप रेडियो फ्रीक्वेंसी सिग्नल के जरिए होता है। चंद्रकात के पास यही जिम्मेदारी है। चंद्रयान-2 और उससे संपर्क साधने वाले ग्राउंड स्टेशन का एंटीना सिस्टम चंद्रकांत ने ही डिजाइन किया है। यही काम उन्होंने चंद्रयान-1 के लिए भी किया था।

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