बिहार के बिना अधूरे हैं महानायक अमिताभ बच्चन, दिया जाएगा 2018 का दादा साहब फाल्के अवार्ड

PATNA : बॉलीवुड सुपर स्टार अमिताभ बच्चन को 2018 का दादा साहब फाल्के अवार्ड दिया जाएगा। इस बात की जानकारी केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने ट्वीट के जरिए साझा की। ‘दादा साहेब फाल्के’ पुरस्कार को बॉलीवुड इंड्स्ट्री का सबसे बड़ा सम्मान माना जाता है।

एक ‘बिहारी’ के रूप में शुरू हुआ था अमिताभ बच्चन का फिल्मी सफर : अमिताभ बच्चन की निजी जिंदगी से बिहार का बड़ा गहरा नाता है। अमिताभ बच्चन के फिल्मी जिंदगी की शुरुआत एक बिहारी किरदार के साथ हुई थी। अमिताभ ने अपनी पहली फिल्म ‘सात हिंदुस्तानी’ में एक बिहारी शायर अनवर अली का किरदार निभाया था। इस फिल्म के लिए अमिताभ बच्चन को बेस्ट न्यूकमर एक्टर का अवार्ड मिला था।

ये फिल्म भले फ्लॉप हो गयी थी लेकिन इसमें अमिताभ बच्चन के अभिनय की तारीफ हुई थी। मीना कुमारी जैसी दिग्गज अभिनेत्री ने अमिताभ बच्चन की एक्टिंग को सराहा था।मशहूर पत्रकार और लेखक ख्वाजा अहमद अब्बास 1969 में फिल्म ‘सात हिन्दुस्तानी’ बना रहे थे। ये फिल्म गोवा के मुक्ति संग्राम पर आधारित थी। 1947 में भारत आजाद हो गया था लेकिन पुर्गालियों ने गोवा पर कब्जा नहीं छोड़ा था। गोवा की आजादी के लिए 14 साल तक संघर्ष चला। तब जा कर 1961 में गोवा भारत का हिस्सा बना। ख्वाजा अहमद अब्बास राजकपूर के लिए कई फिल्में लिख कर बहुत मशहूर हो चुके थे।

अब्बास साहब फिल्म सात हिन्दुस्तानी के लिए एक्टर की तलाश में थे। इस फिल्म में सात लोगों की कहनी है जो भारत के अलग अलग प्रांतों के रहने वाले हैं लेकिन धर्म और क्षेत्र की बात को दरकिनार कर गोवा की आजादी के लिए संघर्ष करते हैं। एक दिन अब्बास साहब को उनके कास्ट डायरेक्टर ने एक लंबे युवक की तस्वीर दिखायी। अब्बास साहब ने उसे ऑडिशन के लिए मुम्बई बुलाया। ये लंबे शख्स अमिताभ बच्चन थे। उस समय अमिताभ बच्चन कलकत्ता में 1600 रुपये महीने की तनख्वाह पर एक निजी कंपनी में नौकरी कर रहे थे। फरवरी 1969 में अमिताभ नौकरी से इस्तीफा दे कर मुम्बई आये। 15 फरवरी को उनका ऑडिशन हुआ। ख्वाजा अहमद अब्बास ने अपनी आत्मकथा ‘आई एम नॉट एन आईलैंड’ में अमिताभ बच्चन के इस ऑडिशन के बारे में विस्तार से लिखा है। ख्वाजा अहमद अब्बास ने पूछा, तुम्हारा नाम क्या है ? जवाब मिला, अमिताभ । आप ने पहले कभी फिल्म में काम किया है ? अमिताभ ने जवाब दिया, अभी तक किसी ने मुझे अपनी फिल्म में नहीं लिया है। फिर सवाल उछला, क्या वजह हो सकती है ? अमिताभ ने कहा, मेरी लंबाई को हीरोइनों के लिए मुनासिब नहीं बताया जाता है।

अब्बास साहब ने कहा, मेरी फिल्म में हीरोइन नहीं है इस लिए ऐसी कोई नौबत नहीं आएगी। अमिताभ को ये फिल्म मिल गयी और उन्हें बिहार के रहने वाले शायर अनवर अली की भूमिका मिली। शर्त तय हुई कि ये फिल्म छह महीने में बने या एक साल में अमिताभ को कुल पांच हजार रुपये ही मिलेंगे। जब कॉन्ट्रैक्ट साइन होने लगा तो अमिताभ को अपने पिता का नाम बताना पड़ा। हरिवंश राय बच्चन का नाम सुनते ही अब्बास साहब उछल गये। साहित्यकार होने के नाते वे हरिवंश राय बच्चन को बहुत करीब से जानते थे। उन्होंने कहा कि मुझे तुम्हारे पिता की इजाजत लेनी पड़ेगी, दो दिन और इंतजार करो।

जब ये सहमति मिल गयी तो अमिताभ बच्चन इस फिल्म का हिस्सा बन गये। इस फिल्म में उत्पल दत्त, एके हंगल, जलाल आगा जैसे कलाकार थे। अमिताभ एक बिहारी शायर हैं जो लड़ाई झगड़े से दूर रहना पसंद करते हैं। लेकिन बहुत समझाने के बाद एक बड़े मकसद के लिए वह गोवा मुक्ति संग्राम में शामिल हो जाते हैं। यानी एक बिहारी के रूप में ही अमिताभ का फिल्मी सफर शुरू हुआ था।

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