PATNA : चुनाव नजदीक आते देरी आपने बीजेपी हो कांग्रेस, जदयू हो या राजद, जनसुराज हो या आप या आप यूं कहे तो सभी राजनीतिक दल के नेता लोगों को लुभाने के लिए एक से एक वादे करते हैं। कोई कहता है कि महिलाओं के खाते में हर महीने पांच हजार दिया जाएगा तो कोई कहता है होली और दिवाली पर फ्री गैस सिलेंडर दिया जाएगा। अब इस परिपाटी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सभी राजनीतिक दल के नेताओं से सवाल करते हुए कड़ी फटकार लगाई है।
ताजा अपडेट के अनुसार उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को चुनावों से पहले मुफ्त उपहारों की घोषणा करने वाली सरकारों और राजनीतिक दलों को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि इससे लोग काम करने से हतोत्साहित हो रहे हैं और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में श्रम शक्ति सूख रही है।
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह की पीठ बेघर लोगों के लिए आश्रय गृहों के संबंध में एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जब एक वकील ने दलील दी कि ये नीतियां केवल अमीरों के लिए बनाई गई हैं। “मुख्य पीड़ित गरीब, बेघर और वंचित लोग हैं। दुर्भाग्यवश, बेघर होने के कारण पर ध्यान नहीं दिया गया है। इस देश में यह सबसे कम प्राथमिकता है। वकील ने कहा, “मुझे यह कहते हुए दुख हो रहा है कि करुणा केवल अमीरों के लिए है, गरीबों के लिए नहीं।”
न्यायमूर्ति गवई ने इस दलील पर आपत्ति जताई कि करुणा केवल अमीरों के लिए है, और उन्होंने उन्हें राजनीतिक भाषण न देने की चेतावनी दी। उन्होंने कहा, ‘‘इस अदालत में रामलीला मैदान जैसा भाषण मत दीजिए। अदालत में अपने आप को बहस तक ही सीमित रखें। यदि आप किसी के हित का समर्थन कर रहे हैं तो उसे उसी तक सीमित रखें। अनावश्यक आरोप न लगायें। यहां कोई राजनीतिक भाषण मत दीजिए. न्यायमूर्ति गवई ने कहा, ‘‘हम अपने न्यायालय कक्ष को राजनीतिक मंच में तब्दील नहीं होने देंगे।’’
वकील ने कहा, “मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था।” मेरा यह मतलब नहीं था।” न्यायमूर्ति गवई ने तब वकील से पूछा, “आप कैसे कह सकते हैं कि दया केवल अमीरों के लिए दिखाई जाती है?”
अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया कि वकील ने दलील दी थी कि क्षेत्र के सौंदर्यीकरण के लिए कुछ आश्रय स्थलों को हटा दिया गया था।
हालांकि, अदालत ने कहा कि दिल्ली सरकार के वकील ने बताया था कि आश्रय गृह जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं। न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि मामले में दायर हलफनामे में प्रदान की जा रही सुविधाओं के बारे में बताया गया है और टिप्पणी की, “तो, राष्ट्र के विकास में योगदान देकर उन्हें समाज की मुख्यधारा का हिस्सा बनने के लिए प्रोत्साहित करने के बजाय, क्या हम परजीवियों का एक वर्ग नहीं बना रहे हैं?”
न्यायमूर्ति गवई ने कहा, ‘‘दुर्भाग्यवश, चुनाव के समय मिलने वाली इन मुफ्त सुविधाओं…कुछ लाडली बहन और कुछ अन्य योजनाओं के कारण लोग काम करने को तैयार नहीं हैं। उन्हें मुफ्त राशन मिल रहा है, उन्हें बिना किसी काम के पैसे मिल रहे हैं, वे काम क्यों करें!”
जब भूषण ने हस्तक्षेप करने की कोशिश की तो न्यायमूर्ति गवई ने कहा, “हम उनके प्रति आपकी चिंता की सराहना करते हैं, लेकिन क्या उन्हें समाज की मुख्यधारा का हिस्सा बनाने और राष्ट्र के विकास में योगदान देने का कोई बेहतर तरीका नहीं होगा?” मैं आपको व्यावहारिक अनुभव बता रहा हूं, इन मुफ्त चीजों के कारण, फ्री राशन देने के कारण… लोग काम नहीं करना चाहते हैं”।
भूषण ने कहा, ‘‘इस देश में शायद ही कोई ऐसा होगा जो काम मिलने पर काम नहीं करना चाहेगा।’’ उन्होंने कहा कि लोगों के शहरों की ओर आने का मुख्य कारण यह है कि उनके गांवों में उनके पास कोई काम नहीं है।