KBC विजेता सुशील कुमार की दर्दभरी कहानी, कहा- करोड़पति बनने के बाद आया सबसे बुरा समय

KBC जीतकर करोड़पति बने थे सुशील कुमार, सेलेब्रिटी बनने के बाद आया सबसे बुरा समय, खुद सुनाई पूरी कहानी

मुंबई. हम कई बार एक इंसान की संघर्षों से विजय तक पहुंचने की कहानी सुनते हैं लेकिन आज हमारे सामने विजेता बनने के बाद एक शख्स के संघर्ष की कहानी आई है. ये शख्स हैं सुशील कुमार, जिन्होंने अमिताभ बच्चन द्वारा होस्ट किया जाने वाला मशहूर क्विज शो ‘कौन बनेगा करोड़पति’ जीता था. केबीसी सीजन 5 (KBC 5 Winner) के विजेता सुशील कुमार (Sushil Kumar) 2011 में करोड़पति बने थे, उन्होंने 5 करोड़ का जैकपॉट जीता था. इस जीत के बाद उन्हें देश भर से तारीफें और मीडिया की जबरदस्त अटेंशन मिली थी. वहीं अब एक बार फिर से सुशील कुमार का नाम चर्चा में आ गया है, जिसकी वजह जानकर आप हैरान रह जाएंगे. सुशील कुमार का कहना है कि केबीसी जीतने और सेलेब्रिटी बनने के बाद उनकी जिंदगी में सबसे बुरा समय आया था.

दरअसल, सुशील कुमार ने अपने फेसबुक एकाउंट पर अपने संघर्षों की कहानी सुनाते हुए एक लंबा पोस्ट शेयर किया है. इस पोस्ट के जरिए उन्होंने बताया है कि सेलेब्रिटी बनने का सबसे डरावना सच क्या है. उन्होंने अपना पोस्ट शेयर करते हुए लिखा- ‘केबीसी जीतने के बाद का मेरे जीवन का सबसे बुरा समय’. उन्होंने बताया कि- ‘2015-2016 मेरे जीवन का सबसे चुनौती पूर्ण समय था कुछ बुझाइए नहीं रहा था क्या करें. लोकल सेलेब्रिटी होने के कारण महीने में दस से पंद्रह दिन बिहार में कहीं न कहीं कार्यक्रम लगा ही रहता था।इसलिए पढ़ाई लिखाई धीरे धीरे दूर जाती रही’.

जब सेलेब्रिटी बना तो…सुशील का कहना है कि ‘उस समय मीडिया को लेकर मैं बहुत ज्यादा सीरियस रहा करता था और मीडिया भी कुछ कुछ दिन पर पूछ देती थी कि आप क्या कर रहे हैं इसको लेकर मैं बिना अनुभव के कभी ये बिज़नेस कभी वो करता था ताकि मैं मीडिया में बता सकूं की मैं बेकार नहीं हूं. जिसका परिणाम ये होता था कि वो बिज़नेस कुछ दिन बाद डूब जाता था’.

उन्होंने आगे लिखा- ‘इसके साथ केबीसी के बाद मैं दानवीर बन गया था और गुप्त दान का चस्का लग गया था महीने में लगभग 50 हज़ार से ज्यादा ऐसे ही कार्यों में चला जाता था. इस कारण कुछ चालू टाइप के लोग भी जुड़ गए थे और हम गाहे-बगाहे खूब ठगा भी जाते थे जो दान करने के बहुत दिन बाद पता चलता था’.

पत्नी से खराब हुए रिश्ते-वहीं इसका असर उनके परिवार पर भी पड़ा, जिसके बारे में सुशील ने बताया कि- ‘पत्नी के साथ भी संबंध धीरे-धीरे खराब होते जा रहे थे. वो अक्सर कहा करती थी कि आपको सही गलत लोगों की पहचान नहीं है और भविष्य की कोई चिंता नही है. ये सब बात सुनकर हमको लगता था कि हमको नही समझ पा रही है इस बात पर खूब झड़गा हो जाया करता था’.

शुरू किया ये बिजनेस-उन्होंने ये भी माना कि- ‘इसके साथ कुछ अच्छी चीजें भी हो रही थी दिल्ली में मैंने कुछ कार ले कर अपने एक मित्र के साथ चलवाने लगा था जिसके कारण मुझे लगभग हर महीने कुछ दिनों दिल्ली आना पड़ता था. इसी क्रम में मेरा परिचय कुछ जामिया मिलिया में मीडिया की पढ़ाई कर रहे लड़कों से हुआ फिर आईआईएमसी में पढ़ाई कर रहे लड़के फिर उनके सीनियर, फिर जेएनयू में रिसर्च कर रहे लड़के,कुछ थियेटर आर्टिस्ट आदि से परिचय हुआ जब ये लोग किसी विषय पर बात करते थे तो लगता था कि अरे!मैं तो कुंए का मेढ़क हूं मैं तो बहुत चीजों के बारे में कुछ नही जानता. अब इन सब चीजों के साथ एक लत भी साथ जुड़ गया- शराब और सिगरेट ‘.

ऐसे लगी बुरी लतें- उन्होंने आगे लिखा- ‘जब इन लोगों के साथ बैठना ही होता था दारू और सिगरेट के साथ. एक समय ऐसा आया कि अगर सात दिन रुक गया तो सातों दिन इस तरह के सात ग्रुप के साथ अलग अलग बैठकी हो जाती थी. इन लोगों को सुनना बहुत अच्छा लगता था. चूंकि ये लोग जो भी बात करते थे मेरे लिए सब नया नया लगता था बाद, इन लोगों की संगति का ये असर हुआ कि मीडिया को लेकर जो मैं बहुत ज्यादा सीरियस रहा करता था वो सिरियस नेस धीरे धीरे कम हो गई’.

कैसे आई कंगाली-उन्होंने बताया कि- ‘कैसे आई कंगाली की खबर(ये थोड़ा फिल्मी लगेगा)’. सुशील ने लिखा- उस रात प्यासा फ़िल्म देख रहा था और उस फिल्म का क्लाइमेक्स चल रहा था जिसमें माला सिन्हा से गुरुदत्त साहब कर रहे हैं कि मैं वो विजय नही हूं वो विजय मर चुका. उसी वक्त पत्नी कमरे में आई और चिल्लाने लगी कि एक ही फ़िल्म बार बार देखने से आप पागल हो जाइएगा और और यही देखना है तो मेरे रूम में मत रहिये जाइये बाहर. इस बात से हमको दुःख इसलिए हुआ कि लगभग एक माह से बात चित बंद थी और बोला भी ऐसे की आगे भी बात करने की हिम्मत न रही और लैपटॉप को बंद किये और मुहल्ले में चुपचाप टहलने लगे’.

सुशील ने आगे लिखा- ‘अभी टहल ही रहे थे तभी एक अंग्रेजी अखबार के पत्रकार महोदय का फोन आया और कुछ देर तक मैंने ठीक ठाक बात की बाद में उन्होंने कुछ ऐसा पूछा जिससे मुझे चिढ़ हो गई और मैने कह दिया कि मेरे सभी पैसे खत्म हो गए और दो गाय पाले हुए हैं उसी का दूध बेंचकर गुजारा करते हैं उसके बाद जो उस न्यूज़ का असर हुआ उससे आप सभी तो वाकिफ होंगे ही. उस खबर ने अपना असर दिखाया जितने चालू टाइप के लोग थे वे अब कन्नी काटने लगे मुझे लोगों ने अब कार्यक्रमों में बुलाना बंद कर दिया और तब मुझे समय मिला की अब मुझे क्या करना चाहिए’.

पहुंच गए मुंबई-सुशील ने अपने फेसबुक पोस्ट में बताया कि ‘इसी बीच एक दिन पत्नी से खूब झगड़ा हो गया और वो अपने मायके चली गई बात तलाक लेने तक पहुंच गई. तब मुझे ये एहसास हुआ कि अगर रिश्ता बचाना है तो मुझे बाहर जाना होगा और फ़िल्म निदेशक बनने का सपना लेकर चुपचाप बिल्कुल नए परिचय के साथ मैं आ गया. अपने एक परिचित प्रोड्यूसर मित्र से बात करके जब मैंने अपनी बात कही तो उन्होंने फिल्म सम्बन्धी कुछ टेक्निकल बाते पूछी जिसको मैं नही बता पाया तो उन्होंने कहा कि कुछ दिन टी वी सीरियल में कर लीजिए बाद में हम किसी फ़िल्म डायरेक्टर के पास रखवा देंगे’.

मुंबई में कुछ ऐसा हुआ-‘एक बड़े प्रोडक्शन हाउस में आकर काम करने लगा वहां पर कहानी, स्क्रीन प्ले, डायलॉग कॉपी, प्रॉप कॉस्टयूम, कंटीन्यूटी और न जाने क्या करने देखने समझने का मौका मिला उसके बाद मेरा मन वहां से बेचैन होने लगा वहां पर बस तीन ही जगह आंगन, किचन, बेडरूम ज्यादातर शूट होता था और चाह कर भी मन नही लगा पाते थे. हम तो मुम्बई फ़िल्म निदेशन बनने का सपना लेकर आये थे और एक दिन वो भी छोड़ कर अपने एक परिचित गीतकार मित्र के साथ उसके रूम में रहने लगा और दिन भर लैपटॉप पर सिनेमा देखते देखते और दिल्ली पुस्तक मेला से जो एक सूटकेस भर के किताब लाये थे. उन किताबों को पढ़ते रहते. लगभग छः महीने लगातार यही करता रहा और दिन भर में एक डब्बा सिगरेट खत्म कर देते थे पूरा कमरा हमेशा धुंआ से भरा रहता था’.

दिन भर अकेले ही रहने से और पढ़ने-लिखने से मुझे खुद के अंदर निष्पक्षता से झांकने का मौका मिला और मुझे ये एहसास हुआ कि- मैं मुंबई में कोई डायरेक्टर बनने नहीं आया था. मैं एक भगोड़ा हूं जो सच्चाई से भाग रहा है. असली खुशी अपने मन का काम करने में है. घमंड को कभी शांत नही किया जा सकता. बड़े होने से हज़ार गुना ठीक है अच्छा इंसान होना. खुशियां छोटी-छोटी चीजों में छुपी होती हैं. जितना हो सके देश समाज का भला करना जिसकी शुरुआत अपने घर/गांव से की जानी चाहिए’.

लिखी तीन कहानियां-हालांकि इसी दौरान मैंने तीन कहानी लिखी जिमें से एक कहानी एक प्रोडक्शन हाउस को पसंद भी आई और उसके लिए मुझे लगभग 20 हज़ार रुपए भी मिले. (हालांकि पैसा देते वक्त मुझसे कहा गया कि इस फ़िल्म का आईडिया बहुत अच्छा है कहानी पर काफी काम करना पड़ेगा, क्लाइमेक्स भी ठीक नही है आदि आदि और इसके लिए आपको बहुत ज्यादा पैसा हम लोगों ने पे कर दिया है).

जब लौट आया घर-मैं मुम्बई से घर आ गया और टीचर की तैयारी की और पास भी हो गया. साथ ही अब पर्यावरण से संबंधित बहुत सारे कार्य करता हूं जिसके कारण मुझे एक अजीब तरह की शांति का एहसास होता है साथ ही अंतिम बार मैंने शराब मार्च 2016 में पी थी उसके बाद पिछले साल सिगरेट भी खुद ब खुद छूट गया. अब तो जीवन मे हमेशा एक नया उत्साह महसूस होता है और बस ईश्वर से प्रार्थना है कि जीवन भर मुझे ऐसे ही पर्यावरण की सेवा करने का मौका मिलता रहे इसी में मुझे जीवन का सच्चा आनंद मिलता है.

आखिर में सुशील ने लिखा- ‘बस यही सोचते हैं कि जीवन की जरूरतें जितनी कम हो सके रखनी चाहिए बस इतना ही कमाना है कि जो जरूरतें वो पूरी हो जाएं और बाकी बचे समय में पर्यावरण के लिए ऐसे ही छोटे स्तर पर कुछ कुछ करते रहना है’.

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