नीतीश सरकार की मुसीबतें बढ़ीं, नियोजित शिक्षकों ने फिर से किया आंदोलन का ऐलान

PATNA : बिहार के नियोजित शिक्षकों (Bihar Teachers) ने सरकार द्वारा दी गई सेवा शर्त के खिलाफ एक बार फिर से मोर्चा खोल दिया है. राज्य के नियोजित शिक्षकों ने सरकार पर न केवल धोखाधड़ी करने का आरोप लगाया है बल्कि पंचायत नगर और प्रारंभिक शिक्षकों ने आंदोलन (Teachers Strike) का भी ऐलान कर दिया है. शिक्षक नेता आनंद कौशल सिंह ने आंदोलन का ऐलान करते हुए कहा कि 5 सितंबर को पूरे राज्य में शिक्षक अपमान दिवस के तौर पर मनाएंगे. इस दौरान सभी शिक्षक काली पट्टी बांधकर स्कूल जाएंगे और शिक्षक दिवस समारोह का बहिष्कार करेंगे. उन्होंने बताया कि इसके बाद 12 सितंबर को राज्य के नियोजित शिक्षक सीएम, डिप्टी सीएम का सभी प्रखंडों में अर्थी जुलूस निकालेंगे वहीं 19 सितंबर को पूरे राज्य भर में मशाल जुलूस निकालकर विधानसभा और विधान परिषद चुनाव में एनडीए प्रत्याशियों को वोट नहीं देने का संकल्प लिया जाएगा. सरकार की इस घोषणा के बाद से ही राज्य भर के शिक्षक पिछले 5 दिनों से सेवा शर्त की प्रति जलाकर भी विरोध कर रहे हैं.

इस आंदोलन की घोषणा करने के साथ ही नियोजित शिक्षकों ने चुनाव में विधानसभा और विधान परिषद चुनाव में एनडीए के प्रत्याशियों का घेराव करने की भी घोषणा की है. मालूम हो कि सीएम नीतीश कुमार की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में राज्य सरकार ने नई सेवाशर्त नियमावली को मंजूरी दे दी है. इसका सीधा फायदा अब बिहार के साढे तीन लाख से अधिक शिक्षकों को होगा. शिक्षकों के मूल वेतन में जहां 15 फीसदी की वृद्धि होगी तो वहीं उनको अब कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) का लाभ भी मिलेगा. सरकार शिक्षकों को सितंबर, 2020 से ही ईपीएफ का लाभ देगी, जबकि मूल वेतन में 15 प्रतिशत की वृद्धि का लाभ 1 अप्रैल 2021 से मिलेगा. सरकार के इस फैसले को इसी साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले तोहफे के रूप में देखा जा रहा है. बिहार के शिक्षकों को ईपीएफ का लाभ दिए जाने पर राज्य सरकार पर सालाना 815 करोड़ का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा. वहीं, वेतन वृद्धि से सालाना 1950 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च करने होंगे. ऐसे में सरकार पर पड़ने वाला कुल अतिरिक्त बोझ 2765 करोड़ रुपए का होगा.

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