तेजस्‍वी में दिखा बचपना, पूरी ताकत मोदी को हराने के बदले नीतीश को नीचा दिखाने में लगाया

PATNA : राजद की हार अन्‍य दलों की हार से अलग है। राजद की हार में सबसे चिंताजनक जो बात है वो यह है कि तेजस्‍वी के नेतृत्‍व में बचपनापन था। वो अपनी पूरी ताकत मोदी को हराने के बदले नीतीश को नीचा दिखाने में लगा दिये। इतना ही नहीं पप्‍पू, कन्‍हैया और फातमी को औकात बताने में उनकी बची हुई ऊर्जा खर्च हो गयी। उन्‍हें यह तो बताना होगा कि मुकेश जैसे नेताओं पर इतना भरोसा करने के पीछे क्‍या आधार था। उपेंद्र और मांझी जब भाजपा के साथ मिलकर 2015 में कुछ कमाल नहीं कर पाये तो फिर 2019 में इतना भाव क्‍या देखकर दिया गया।

आखिर दो सांसदों और 27 विधायकों वाली कांग्रेस के बदले इन जनाधारहीन लोगों को इतनी तबज्‍जों केवल इसलिए कि इनके नाम पर कांग्रेस को 9 सीटों तक समेटा जा सके। सुपौल में रंजीता का विरोध तो समझ में आता है, लेकिन मधुबनी में फातमी और शकील के बदले मुकेश सहनी पर विश्‍वास करना एक मूर्खता से दो सीट (दरभंगा-मधुबनी) गवा देने जैसा है। एक नेतृत्‍वकर्ता एक रणनीतिकार के रूप में तेजस्‍वी मूर्ख ही नहीं कुंठित नजर आये हैं। तेजस्‍वी की नीति से दो बातों सामने आती हैं।

पहला कि वो राजनीति को समझने लायक नहीं हुए हैं और लालू के जनाधार को अपनी निजी संपत्ति समझ रहे हैं। दूसरा वो एक चतुर राजनीतिज्ञ की तरह शतरंज की चाल चल रहे हैं और विधानसभा के लिए खुद को सबसे बडा दावेदार बना रहे हैं। अगर ऐसा है तो फिर यह मानना होगा कि उन्‍होंने रालोसपा, वीआइपी और हम का उपयोग कांग्रेस को बिहार में रोकने के लिए किया है। बहरहाल, सबको हराने के चक्‍कर में तेजस्‍वी खुद हार गये। बेशक उन्‍होंने सुपौल में कांग्रेस को हरा दिया लेकिन तेजप्रताप फातमी ने उन्‍हें जहानाबाद और मिथिला में खाता तक नहीं खोलने दिया। दरभंगा के मुस्लिम बहुत इलाके बहादुरपर में भी राजद उम्‍मीदवार भाजपा से आधा मत पाये हैं। तेजस्‍वी बिहार में निजी खुन्‍नस निकालते रहे और उनकी पार्टी राजद खाता तक नहीं खोल पाया। तेजस्‍वी को अभी घर से लेकर गठबंधन तक हर जगह सवाल दर सवाल का जबाव देना होगा…
लेखक : कुमुद सिंह, ई समाद, संपादक

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