तेजस्वी-कन्हैया साथ आए तो ऐसे बदल जाएगी बिहार की सियासत

Patna: बिहार में तीन युवा चेहरे- कन्हैया कुमार, तेजस्वी यादव और चिराग पासवान (Kanhaiya Kumar, Tejashwi Yadav and Chirag Paswan) सियासत के मैदान में दिन-रात एक कर रहे हैं. जाहिर है इसे सूबे की सियासत के लिहाज से सकारात्मक नजर से देखा जा रहा है. इनमें से एक, चिराग पासवान एनडीए के साथ मजबूती के साथ हैं तो कन्हैया और तेजस्वी सत्ताधारी दल के विरोध में.

लेकिन, तेजस्वी और कन्हैया, दोनों ही युवा नेताओं के अकेले रहने से सीधा फायदा बिहार एनडीए (Bihar NDA) को ही होने वाला है. ऐसे में सवाल ये है कि अगर आने वाले समय में बिहार की सियासत करवट ले और कन्हैया कुमार और तेजस्वी यादव एक साथ आ गए तो बिहार का सियासी समीकरण क्या हो सकता है? इन दोनों ही चेहरों के एक साथ आने से क्या कुछ बदलेगा?

ऐसे में कुछ वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं कि कन्हैया और तेजस्वी के साथ आने की अभी तक कोई भी संभावना नहीं दिखती है, लेकिन राजनीति में कब क्या हो जाए कुछ नहीं कहा जा सकता है. अगर साथ आते हैं तो महागठबंधन में मजबूती आ सकती है और ये बिहार की राजनीति के लिए बेहद महत्वपूर्ण डेवलपमेंट होगा. बिहार में वामपंथ का अपना जनाधार है और आज भी उसका कैडर काम कर रहा है. जब भी चुनाव होता है इसका असर दिखता है. हालांकि तेजस्वी ने अब तक कन्हैया के साथ एक बार भी मंच शेयर नहीं किया है, ऐसे में माना जा रहा है कि तेजस्वी, कन्हैया से दूर ही रहना चाहते हैं.

तो वहीं राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए धुर विरोधियों का एक मंच पर आना कोई असंभव बात नहीं है, ऐसे में कन्हैया और तेजस्वी भी एक हो सकते हैं. दरअसल राजनीति का जो परिदृश्य है उसमें तो यही लगता है कि या तो मन- विचार मिले या फिर राजनीतिक बाध्यता हो, तभी ये एक होंगे. नहीं तो एनडीए के लिए बड़ा स्पेस छोड़ेंगे.

उधर बिहार की राजनीति के लिहाज से देखें तो भाजपा को हटाने के नाम पर तेजस्वी-कन्हैया एक हो सकते हैं. झारखंड में ये साफ दिखा कि अपने-अपने अहम को किनारे कर विरोधी दल इकट्ठे आए तो ही जीत पाए. इसी तरह की स्थिति बना पाए तो महागठबंधन के लिए एक बड़ा मौका होगा, नहीं तो एनडीए इस स्पेस का फायदा उठा लेगा.

इसके अलावा कुछ लोग कहते हैं कि कन्हैया बिहार की माटी का लड़का है. बेगूसराय से चुनाव लड़ा और गिरिराज सिंह जैसे कद्दावर नेता के खिलाफ अच्छी लड़ाई लड़ी. आरजेडी के तनवीर हसन नहीं होते और उनका वोट कन्हैया के वोट से जुड़ जाता तो वह कड़ी टक्कर देते. जाहिर है यही राजनीतिक बाध्यता बन रही है कि अगर भाजपा को हटाना है तो कन्हैया और तेजस्वी को साथ आना होगा.

उधर चिराग पासवान इस बार कुछ अलग करने को तत्पर हैं. अभी वह बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट यात्रा पर निकले हैं और ऐसी उम्मीद की जा रही है कि उसका लाभ मिलेगा. फिलहाल वह जनता से फीड बैक ले रहे हैं. उसे मेनिफेस्टो में लेंगे और सरकार पर दबाव बनाएंगे. जाहिर है कन्हैया-तेजस्वी के अकेले होने का लाभ उठाने का मौका चिराग के पास होगा. ऐसे में माना जा रहा है कि कन्हैया-तेजस्वी को साथ लाने में प्रशांत किशोर बड़ी भूमिका निभा सकते हैं. अक्सर पीके बिहार के लिए कुछ करने की बात कहते हैं. अगर पीके चुनावी रणनीति बनाएं, तेजस्वी व कन्हैया एक साथ लाएं तो जरूर बिहार में नया खेल होगा जो एनडीए के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर सामने आएगा.

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