बिहार की पहली फिल्म है ‘छठ मेला’ जो 1930 में बनी थी, लंदन से आये थे टेक्निशियन

PATNA : बिहार की पहली फिल्म का नाम क्या है ? बिहार के दादा साहेब फाल्के कौन हैं ? इन सवालों का जवाब बिहार के महान पर्व छठ से जुड़ा है। बिहार की पहली फिल्म का नाम ‘छठ मेला’ है जिसका निर्माण 1930 में हुआ था। यह मूक फिल्म थी। 16 mm की ये फिल्म केवल चार रील बनी थी। इस फिल्म को बनाया था देव (औरंगाबाद) के राजा जगन्नाथ प्रसाद सिंह किंकर ने। देव में प्राचीन सूर्य मंदिर है जहां छठ पूजा के समय भव्य मेला लगता है। राजा जगन्नाथ ने देव मंदिर और यहां के छठ मेला की महिमा को देश भर के लोगों तक पहुंचाने के लिए इस फिल्म का निर्माण किया था।

इस फिल्म के लिए उन्होंने लंदन से उपकरण खरीदे थे। फिल्म की एडिटिंग के लिए लंदन से जोसेफ ब्रूनो को पटना बुलाया गया था। फिर वे पटना से मोटर कार के जरिये देव पहुंचे थे। चूंकि मूक फिल्मों के दौर में राजा जगन्नाथ ने बिहार में पहली पिल्म बनायी थी इस लिए उन्हें बिहार का दादा साहेब फाल्के कहा जाता है। दादा साहेब फाल्के ने ही भारत की पहली फिल्म मूक फिल्म बनायी थी। फिल्म ‘छठ मेला’ एक तरह से डॉक्यूमेंट्री फिल्म थी। चार रील की इस फिल्म को बनाने में 32 दिन लगे थे। इस फिल्म के निर्माता, निर्देशक और लेखक राजा जगन्नाथ ही थे।

फिल्म में राजा जगन्नाथ के पुत्र, वे खुद और गया के अवध बिहारी प्रसाद ने अभिनय किया था। फिल्म बनने के बाद इसका पहला प्रदर्शन राजा जगन्नाथ के महल के मैदान में किया गया था। इसको देखने के लिए गया, जहानाबाद औरंगाबाद, नवादा, सासाराम और पटना से लोग वहां पहुंचे थे। सबसे खास बात ये थी कि राजा जगन्नाथ ने इस फिल्म को बनाने के लिए एक स्टूडियो भी बनाया था। इसमें लंदन से मंगाये उपकरण रखे गये थे। फिल्म ‘छठ मेला’ का निर्माण और प्रोसेसिंग इसी स्टूडियों में हुई थी। यानी 1930 में ही बिहार में ही फिल्म बनाने की शुरुआत हो चुकी थी। 1934 में बिहार में भयंकर भूकंप आया था जिसमें यह स्टूडियो तहस- नहस हो गया।

राजा जगन्नाथ प्रसाद सिंह किंकर साहित्य के अनुरागी थे। 1931 में जब बोलती फिल्म की शुरुआत हुई तो उन्होंने बोलती सिनेमा का भी निर्माण किया। उनकी बोलती फिल्म नाम था ‘विल्वमंगल’। यह एक धार्मिक फिल्म थी जिसमें भगवान शिव के प्रिय बेलपत्र का महत्व दिखाया गया था। देव का प्राचीन सूर्य मंदिर अपनी अभूतपूर्व स्थापत्य कला के लिए मशहूर है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इसका निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने खुद किया था। काले और भूरे पत्थरों से निर्मित मंदिर की बनावट उड़ीसा के पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर से मिलती-जुलती है।

देव मंदिर के बाहर लगे एक शिलालेख के मुताबिक, 12 लाख 16 हजार साल त्रेता युग के बीत जाने के बाद इला पुत्र ऐल ने इसका निर्माण शुरू कराया था। इस शिलालेख से पता चलता है कि इस पौराणिक मंदिर का निर्माण काल एक लाख पचास हजार साल से भी अधिक है। इस मंदिर के प्रति पूरे बिहार में बहुत श्रद्धा है। छठ पूजा के समय यहां बहुत बड़ी संख्या में व्रती आते हैं। इस मौके पर छठ मेला भी लगता है। राजा जगन्नाथ ने देव सूर्य मंदिर की इसी महत्ता को अपनी फिल्म में दिखाया था।

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