13 February 2025

एक स्कूल ऐसा भी, यहां टीचर के बदले बच्चों को पढ़ाते हैं पेरेंट्स, कोई इंजीनियर है तो कोई डॉक्टर

There is a school where parents teach children instead of teachers, some are engineers and some are doctors
There is a school where parents teach children instead of teachers, some are engineers and some are doctors

CHHATISGARH (BHILAI KA ANOKHA SCHOOL) : आज वसंत पंचमी है अर्थात सरस्वती पूजा. आज के दिन घर-घर में मां सरस्वती की पूजा की जाएगी. सरकारी स्कूलों से लेकर प्राइवेट स्कूलों में भी प्रतिमा स्थापित कर बच्चे विद्या की देवी की आराधना करेंगे. आज इस पावन अवसर पर हम आपको एक ऐसे स्कूल की कहानी बताने जा रहे हैं जहां बच्चों को पढ़ाने के लिए टीचर नहीं आते हैं. आपको आश्चर्य लगेगा कि जब स्कूल है तो बच्चों को पढ़ने के लिए टीचर क्यों नहीं आते हैं तो जवाब सुन लीजिए यहां बच्चों के पेरेंट्स टीचर बन इन्हें पढ़ते हैं. इनमें से कोई इंजीनियर है तो कोई डॉक्टर कोई चार्टर अकाउंटेंट है या तो कोई और.  इस स्कूल में टोटल 168 बच्चे पढ़ते हैं जो आपस में एक दूसरे को भाई-बहन कहते हैं. तो चलिए शुरू करते हैं उस स्कूल की कहानी…

भारत के छत्तीसगढ़ में भिलाई नामक एक शहर है. इस शहर से 26 किलोमीटर दूरी पर स्थित है वह गांव. नाम है अछोटी. इस गांव में एक विद्यालय है जहां 168 बच्चे पढ़ाई करते हैं और उनको पढ़ने के लिए बच्चों के परिजन आते हैं. इस स्कूल में टोटल 28 शिक्षक हैं जिनमें से 14 नियमित है और 14 विषय वार सप्ताह भर में अपनी सुविधा अनुसार क्लास लेने आते हैं. आश्चर्य की बात यह है कि यह सभी टीचर प्रोफेशनल टीचर नहीं है इनमें से कोई आईआईटी इंजीनियर है तो कोई वैज्ञानिक है कोई एमबीबीएस डॉक्टर है तो कोई चार्टर्ड अकाउंटेंट है.

बच्चों को पढ़ने के लिए यह लोग किसी तरह की सैलरी भी नहीं लेते हैं. मीडिया में प्रकाशित खबरों की माने तो यह लोग अपनी तरफ से स्कूल के संचालन में पैसा दान भी देते हैं. इस स्कूल में क्लास वन से लेकर क्लास 10th तक की पढ़ाई होती है. इस स्कूल की संचालन अभ्युदय नामक एक संस्था द्वारा किया जाता है. संस्था की प्रभारी सुचित्रा श्रीवास्तव का कहना है कि इस स्कूल को 2018 में मान्यता मिली थी. पिछले साल मैट्रिक परीक्षा में यहां की 100% बच्चों ने अच्छा परिणाम किया था. पांच बच्चों ने तो मोर देन 90% नंबर लाकर सफलता का परचम लहराया था.

यहां बच्चों को सिर्फ स्कूली सिलेबस नहीं बल्कि जीवन विद्या और मानवीय मूल्य भी पढ़ाया जाता है. यहां के बच्चे एक दूसरे को बहन जी या भैया जी कहकर बुलाते हैं. बच्चों को खेल और पीटी का भी ज्ञान दिया जाता है.

इस स्कूल का खर्चा कैसे चलता है तो वह भी जान लीजिए कि गांव और गांव के आसपास के 50 परिवार इस स्कूल के सदस्य हैं जो आपस में सहमति बनाकर स्कूल का संचालन करते हैं. वही स्कूल में पढ़ने वाले टैलेंटेड अभिभावकों का कहना है कि हम लोग किसी लाभ के लोभ में इस विद्यालय से नहीं जुड़े हैं बल्कि स्वेच्छा से अपना योगदान दे रहे हैं और आगे भी देते रहेंगे.

हम लोग यहां बच्चों को स्कूली सिलेबस तो पढ़ाते ही हैं इसके अतिरिक्त उन्हें इस बात को लेकर भी ट्रेनिंग देते हैं कि स्वरोजगार कैसे किया जाए. स्कील डेवलपमेंट को बढ़ावा देने के लिए उन्हें वुडन आर्ट, सलाद मेकिंग, कृषि, डेयरी और गो पालन से संबंधित विभिन्न बातों की जानकारियां दी जाती है

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