बिहार के किसानों के लिए राहत वाली खबर, टिड्डी दल ने बदला रास्ता, अब जा रहा मध्यप्रदेश की ओर

है। खबर है कि टिड्डियों का पहला दल रास्ता बदल दिया है। मिर्जापुर तक पहुंचने के बाद उस दल के मध्य प्रदेश की राह पकड़ने की सूचना कृषि विभाग को मिली है। लिहाजा अभी उनके बिहार आने की आशंका कम हो गई है। बावजूद विभाग विभाग के सचिव डा. एन सरवण कुमार ने सीमा पर पड़ने वाले दस जिलों के अधिकारियों को चौकस रहने का निर्देश दिया है।

पूरवा ने बदली राह: टिड्डियों के बिहार पहुंचने की संभावना कम उसी वक्त हो गई थी जब पूरवा यहां तेजी से चलने लगी। लेकिन उनके दल को राह बदलने में भी देर नहीं लगती है। संयुक्त निदेशक उमेश प्रसाद मंडल ने बताया कि जानकारी मिल रही है कि टिड्डियों ने मध्य प्रदेश की राह पकड़ ली है। फिर भी दल कब राह बदलकर बिहार की ओर रूख कर देगा कहा नहीं जा सकता ।

दूसरे दल की भी है चर्चा : टिडिड्यों के एक दूसरे दल के भी आने की चर्चा हो रही है। लेकिन औपचारिक पुष्टि कोई नहीं कर पा रहा है। जानकारी के अनुसार यह दल पहले दल से काफी बड़ा है। इसमें दस हजार करोड तक टिड्डियों की संख्या होने की बात बताई जा रही है।

पाकिस्तान होते हुए भारत में प्रवेश करने वाले प्रवासी कीट यानी टिड्डी दल का खतरा बिहार के कई जिलों पर भी मंडराने लगा है। यह फसलों के लिए कितना नुकसानदायक है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक वर्ग किलोमीटर में टिड्डी दल पहुंच जाय, तो प्रतिदिन हजार से दो हजार आदमी का खाना खा लेता है।

जिस क्षेत्र में टिड्डी दल पहुंचता है, वहां प्रजनन भी करता है। हालांकि, प्रजनन के लिए रेगिस्तानी भूमि ज्यादा उपयुक्त मानी जाती है। जानकारों का कहना है कि यह दुनिया के सबसे विनाशकारी प्रवासी कीटों में से एक है। अनुकूल परिस्थितियों में एक दल में करीब 8 करोड़ टिड्डियां होती हैं, जो हवा के रुख के साथ प्रतिदिन 150 किमी तक की यात्रा कर सकती हैं। टिड्डी दल अपने रास्ते में आने वाले सभी प्रकार की फसलों एवं गैर-फसलों को चट कर जाता है।

फसलों को नुकसान सिर्फ वयस्क टिड्डी ही नहीं, बल्कि शिशु टिड्डी भी पहुंचाती है। इस दल का आक्रमण भारत पर पहले भी हो चुका है। बिहार कृषि विश्वविद्यालय भागलपुर (बीएयू) में कीट विज्ञान विभाग के अध्यक्ष एसएन राय बताते हैं कि एक टिड्डी एक दिन में 2 ग्राम भोजन करती है लेकिन इसकी संख्या इतनी होती है कि कई लोगों के बराबर खाना खत्म हो सकता है। उनका यह भी कहना है कि यह रेगिस्तानी कीट है, इसलिए बिहार में ज्यादा प्रभाव होने की संभावना कम है।

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *