राजस्थान: गहलोत सरकार को बचाने में जुटी वसुंधरा, नहीं चाहती उभरे पायलट, चुप्पी की आड़ में बड़ा सियासी खेल

राजस्थान में पिछले कई दिनों से चल रहे सियासी संकट के बीच सूबे की कद्दावर भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की रहस्यमयी चुप्पी चर्चा का विषय बन गई है। राजधानी में इतनी जबर्दस्त राजनीतिक गहमागहमी के बावजूद वे अभी तक धौलपुर से जयपुर नहीं पहुंची हैं। इस बीच राजस्थान में भाजपा के सहयोगी दल राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (रालोपा) के सांसद हनुमान बेनीवाल ने वसुंधरा पर बड़ा हमला बोला है। उनका कहना है कि वसुंधरा गहलोत सरकार को बचाने में जुटी हुई हैं। इसके लिए उन्होंने राजस्थान कांग्रेस में अपने करीबी विधायकों को फोन तक किया है।

गहलोत सरकार को बचाने में जुटी हैं वसुंधरा

रालोपा सांसद बेनीवाल को राजस्थान में मजबूत नेता बना जाता है और अब उन्होंने वसुंधरा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। बेनीवाल ने ट्विटर पर लिखा है कि वसुंधरा ने सीकर और नागौर जिले के एक-एक जाट विधायकों से खुद बात करके उनसे पायलट से दूरी बनाने को कहा है। बेनीवाल का दावा है कि इस बात का उनके पास पुख्ता प्रमाण भी हैं। उन्होंने कहा कि वसुंधरा अल्पमत वाली गहलोत सरकार को बचाने की पुरजोर कोशिश में जुटी हैं।

सहयोगी पार्टी के सांसद का बड़ा आरोप

बेनीवाल का कहना है कि प्रदेश व देश की जनता वसुंधरा राजे और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बीच आंतरिक गठजोड़ की कहानी को समझ चुकी है। बेनीपाल के ट्वीट करने के बाद गहलोत वसुंधरा ट्विटर पर टॉप ट्रेंड में आ गया है।

भाजपा की बैठक में नहीं पहुंचीं वसुंधरा

दरअसल राजस्थान में सियासी संकट शुरू होने के बाद से ही इस पूरे मामले में वसुंधरा राजे की चुप्पी अब रहस्यमयी बन गई है। वे धौलपुर में अपने महल में बैठकर राजनीतिक घमासान का नजारा देख रही हैं। अभी तक उन्होंने राजस्थान के सियासी संकट पर कोई टिप्पणी नहीं की है। उन्हें पिछले मंगलवार को धौलपुर से जयपुर पहुंचना था मगर वे भाजपा की बैठक में शामिल होने के लिए जयपुर नहीं पहुंचीं। फिर भाजपा नेताओं की ओर से कहा गया कि वे बुधवार को होने वाली बैठक में हिस्सा लेंगी, लेकिन वे बुधवार को भी जयपुर नहीं आईं।

पूरे प्रकरण पर एक भी ट्वीट नहीं

जानकारों का कहना है कि इस पूरे मामले में वसुंधरा की चुप्पी काबिले गौर है। ऐसा भी नहीं है कि वे किसी मसले पर नहीं बोल रहे हैं। उन्होंने बुधवार को 6 ट्वीट किए और गुरुवार को भी वे अभी तक दो ट्वीट कर चुकी हैं। बुधवार को उन्होंने पीएम मोदी व उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू के ट्वीट को रीट्वीट भी किया मगर अभी तक उनका मुंह राजस्थान की सियासी उठापटक पर नहीं खुला है।

वसुंधरा को नहीं नजर आ रहा अपना फायदा

सियासी जानकारों का कहना है की वसुंधरा राजे इसलिए चुप्पी साधे हुए हैं क्योंकि मौजूदा घटनाक्रम से उन्हें अपना कोई फायदा नजर नहीं आ रहा है। यही कारण है कि कि उन्होंने चुप्पी साधने को ही बेहतर समझा है। जानकारों के मुताबिक यदि इनकार के बावजूद पायलट भाजपा में आते भी हैं तो इस बात की संभावना बहुत कम है कि उनके पार्टी में आते ही भाजपा उन्हें मुख्यमंत्री बना दे। वैसे अभी तक उनके पास इतने विधायक भी नहीं हैं कि भाजपा के साथ मिलकर उनके सरकार बनाने की कोई संभावना बन सके।

वसुंधरा नहीं चाहतीं पायलट की एंट्री

वसुंधरा की चुप्पी का एक कारण यह भी बताया जा रहा है कि वह यह भी नहीं चाहतीं कि पार्टी में उनका कोई नया विरोधी नेता तैयार हो। पायलट अभी युवा नेता हैं और उनकी राजस्थान में पकड़ भी मानी जाती है। इसलिए पायलट को लेकर अभी तक उन्होंने चुप्पी साध रखी है। दूसरी और राजस्थान की सियासत में वसुंधरा के विरोधी माने जाने वाले केंद्रीय जल शक्ति मंत्री व जोधपुर के सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत काफी मुखर हैं। जानकारों का कहना है कि अपने विरोधी गुट के शेखावत की सक्रियता के कारण भी वसुंधरा चुप्पी साधे हुए हैं।

भाजपा विधायकों पर वसुंधरा की मजबूत पकड़

प्रदेश में भाजपा विधायकों पर वसुंधरा की मजबूत पकड़ मानी जाती है। जानकारों का कहना है कि 72 में से 45 से अधिक विधायक वसुंधरा के समर्थक हैं। पीएम मोदी और अमित शाह ने वसुंधरा राजे को केंद्र की राजनीति में ले जाने का प्रस्ताव दिया था मगर उन्होंने मना कर दिया। वे अभी राजस्थान में ही सक्रिय रहना चाहती हैं। अभी उन्हें सीएम बनने की संभावना नहीं दिख रही है। इस कारण वे चुप्पी साधे हुए हैं।

शाह के करीबी व वसुंधरा के विरोधी हैं बेनीवाल

दूसरी ओर रालोपा सांसद हनुमान बेनीवाल को वसुंधरा राजे का विरोधी माना जाता है। वे अमित शाह के करीबी बताए जाते हैं। बेनीवाल ने भाजपा से ही राजनीति की शुरुआत की थी। 2008 में वे पहली बार भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। 2018 में उन्होंने राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी का गठन किया था। पिछले लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी भाजपा के साथ गठबंधन करके चुनाव मैदान में उतरी थी। राजस्थान के जाट मतदाताओं में उनकी मजबूत पकड़ मानी जाती है। भाजपा का सहयोगी दल होने के बावजूद बेनीवाल का वसुंधरा के खिलाफ सियासी मोर्चा खोलना काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

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