बड़ा सवाल- JNU खराब तो क्यों मिलता है बेस्ट यूनिवर्सिटी का अवॉर्ड…

मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से नेशनल इंस्टीट्यूट रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) पर आधारित देश के टॉप कॉलेज-यूनिवर्सिटी की रैंकिंग जारी की गई है. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इस रैंकिंग की घोषणा की है. इस रैंकिंग में अलग अलग कैटगरी में शिक्षण संस्थानों की रैंकिंग जारी की गई है. रैंकिंग में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी)-मद्रास को पहला स्थान दिया गया है. जानते हैं कि रैंकिंग में किस-किस कॉलेज को स्थान मिला है…विश्वविद्यालयों की कैटेगरी में भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी)-बंगलुरु को सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय चुना गया है. उसके बाद जेएनयू और बीएचयू हैं.

मेरे 130 करोड़ प्यारे देशवासियों, JNU का मौजूदा आंदोलन, सिर्फ जेएनयू के छात्रों का आंदोलन नहीं है।

ये आंदोलन उन किसानों का भी होना चाहिए, जिनका स्वेद जमीन में मिल कर सिक्का बनता है। तब कहीं जा कर उनकी संतान को क..ख..ग..नसीब होता है। दुखद ये की 6 हजार सालाना की चपत से वे चुप है। पढा लेना इतने में बेटे को गलगोटिया, एमिटी में।

ये आंदोलन उन माँओं का भी होना चाहिए, जो अपने बेटे को राजाबेटा बनाना चाहती है। लेकिन वो उज्जवला कनेक्शन की ब्लू रोशनी से ही खुश है।

ये आंदोलन उन दलितों का भी होना चाहिये, जिनमें से कुछ ने 70 साल में हाई एडुकेशन ले कर सदियों पुरानी सशक्त सामन्ती मानसिकता को चुनौती दी है। दुखद ये की उनके फ्रेंड, फिलॉसफर, गाइड ट्विटर से ब्लू टिक हासिल में उलझे है।

ये आंदोलन उन उन मुस्लिमों का भी होना चाहिए, जिनके इतिहास, वर्तमान और बहुत हद तक भविष्य का रेखाचित्र सच्चर कमेटी और रंगनाथ मिश्रा कमीशन खींच चुका है। दुखद ये की उनके रहनुमा 5 एकड़ ले या न ले के जाल में उलझ गए है। मूर्खो, ले लो जमीन और बना दो वहां जेएनयू से भी बड़ा एक विश्वविद्यालय। खैर, तुम बनाओगे नहीं।

ये आंदोलन उन आदिवासियों का भी होना चाहिए, जो कम से कम पढ़लिख कर ये तो समझ सके कि ट्राइबल सब प्लान आखिर होता क्या है। लेकिन वो नहीं समझेंगे। क्योंकि लाख स्वतंत्र धार्मिक पहचान का दावा कर ले, आखिरकार उनकी मति हर ली जाएगी, उसी हिंदुत्व के नाम पर जिसे कभी कभी कोई खतरा न था, न है, न रहेगा। जिसे खतरा हो ही जाए, वो सनातन कैसा?

ये आंदोलन उन दिमागी रूप से कमजोर हो चुके लोगों का भी होना चाहिए, जो ये मानते है कि जेएनयू को बंद कर देना चाहिए। मूर्खो, तुमने अपनी जिंदगी तो बर्बाद कर ही ली है, क्यों अपनी आने वाली पीढी को भी गुलाम बनाने की जमीन तैयार कर रहे हो। ऐसा गुलाम, जिसे सत्ता का हर निर्णय अनंतिम लगे, जो सिर्फ सहमति में सिर हिलाए।

ये आंदोलन उन गोबराधिपतियों का भी होना चाहिए, जो टैक्स भरने का दंभ दिखाते है। है गोबराधिपतियों, टैक्स देते हो तो हक भी लो।तुम्हारे दिमाग में गोबर था, नहीं पढ़ सके जेएनयू में। कोई बात नहीं। तुम्हारे बच्चे तो वहाँ पढे, इसलिए भी आंदोलन करो। जेएनयू के छात्रों का समर्थन करो।

अंत में,ये आंदोलन पूरे भारतवर्ष का होना चाहिए,क्योंकि उच्च गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सिर्फ मुफ्त न हो, ये सर्वसुलभ भी हो। ‘मुफ्त शिक्षा सबका अधिकार है।’

-शशि शेखर

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