‘हमारे गाँव में भी मु’स्लिम लोग हैं सर, कभी कोई दं’गा फ’साद नहीं हुआ’

Anindo Banerjee

12 दिसम्बर की शाम कलकत्ता में टैक्सी चला रहे बिहार के सीतामढ़ी जिला के ड्राइवर पांडे जी से हुई एक छोटी बातचीत के अंश –

पांडे जी – ‘सर, आपके पास टाइम है ना? आजकल एयरपोर्ट वाले रास्ते पर बहुत जाम लग रहा है।’ मैं – ‘जी, साढ़े पाँच तक पहुँच जायें तो चलेगा।’ ‘सर, टाइम का नहीं कह सकते! भीड़ बहुत बढ़ गया है। जब से दीदी आई हैं, पूरा कलकत्ता में घुसपैठी लोग भर गया है। जिधर गाड़ी घुमाओ, वहीं जाम!’

‘अच्छा? आप घुसपैठी को देखकर पहचान लेते हैं?’ ‘सुबह शाम देख रहे हैं, सर। हि’न्दू एकदम कम हो गया है।’ ‘कैसे पता चला?’ ‘न्यूज में देखे हैं सर। अब तो एन.आर.सी. लगेगा तबे सब ठीक होगा।’

‘आपके पास सब कागज है? इकहत्तर से पहले वाला?’ ‘हम हि’न्दू हैं, सर। हि’न्दू के पास कागज नहिंयो रहेगा तो चलेगा। सुने हैं सरकार ऐसा कानून ला रही है।’ ‘और अगर आप हि’न्दू नहीं होते तो?’ उन्हें यह सवाल शायद थोड़ा अजीब लगा। उन्होंने गाड़ी के शीशे से मुझे देखा। थोड़ी देर चुप रहने के बाद बोले –

‘आप किस धर्म के हैं, सर?’ ‘इस वक्त तो हम भी घुसपैठी ही हैं। पटना से कलकत्ता आये हैं।’ लगता है वह थोड़ा कन्फ्यूज़ हो गये । फिर बोले -‘हमारे गाँव में भी मु’स्लिम लोग हैं, सर। लेकिन कभी कोई दं’गा फ’साद नहीं हुआ।’

‘उन सबके पास सारा कागज है? एन.आर.सी. वाला?’‘नहीं पता, साहब। हमारे सीतामढ़ी जिला में हर साल बाढ़ आता है, ऐसे में कागज पत्तर का कौन जाने! लेकिन वह लोग घुसपैठी नहीं है। पुश्तों से हमारे गाँव में रह रहे हैं।’

‘कहीं बिना कागज का कोई फँस गया तो?’ उन्होंने फिर शीशे से मेरी तरफ देखा। थोड़ी देर चुप रहने के बाद बोले -‘कोई न कोई रास्ता तो निकालना पड़ेगा, साहब।’


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