76 साल के बालकृष्ण अइया ने चट्टानों को चीरकर गांव में पानी पहुंचाया – अब हर कोई कर रहा है उनके जज़्बे को सलाम

By Rajveer

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बालकृष्ण अइया

गोवा के कणकोण तालुका के लोलियम गांव में रहने वाले 76 वर्षीय बालकृष्ण अइया ने जो कर दिखाया, वो सुनने में भले ही फिल्मी लगे, लेकिन यह हकीकत है। जहां सरकारी अफसरों और इंजीनियरों ने हार मान ली थी, वहां एक बुजुर्ग ग्रामीण ने पत्थरों को काटकर पानी निकालने का रास्ता बना दिया। उनका गांव मड्डी-तोलोप हमेशा से पानी की किल्लत झेलता रहा है, लेकिन आज वहां हर घर तक पानी की पाइपलाइन पहुंच चुकी है – सिर्फ और सिर्फ अइया जी के कारण।

मड्डी-तोलोप: जहां पत्थर ही पत्थर थे
‘मड्डी-तोलोप’ कोंकणी भाषा में मतलब होता है – पत्थरों वाली जगह। वहां की जमीन बहुत कठिन है – ऊपर पत्थर, फिर मिट्टी और नीचे काली चट्टान। ऐसे इलाके में कुआं खोदना नामुमकिन माना जाता था। कई विशेषज्ञों ने साफ कह दिया था कि यहां पानी निकालना संभव नहीं है।

“मैंने जमीन को पढ़ा” – बालकृष्ण अइया
लेकिन बालकृष्ण अइया ने हार नहीं मानी। उन्होंने पहले जमीन की बनावट को समझा और फिर खुद एक तरीका निकाला, जो आज तक किसी ने नहीं सोचा था। वो बताते हैं,

“मैंने जमीन का ध्यान से अध्ययन किया। फिर मुझे एक ऐसा विचार आया जो किसी ने पहले नहीं किया था।”

उन्होंने एक ऐसा सीढ़ी वाला रास्ता तैयार किया जो सीधे मिट्टी की परत तक जाता था। इसका फायदा ये हुआ कि नीचे काम करने वाले लोगों के पास बाहर निकलने का सुरक्षित रास्ता था, अगर कभी जमीन खिसक भी जाए।

अब सिर्फ अपने लिए नहीं, पूरे गांव के लिए पानी
बालकृष्ण अइया सिर्फ खुद के लिए कुआं नहीं खोद रहे थे, उन्होंने उस जलस्रोत से 25 घरों तक पाइपलाइन से पानी पहुंचाया।
गांव वाले कहते हैं,

“अइया सिर्फ मेहनती नहीं हैं, वो हमारे गांव के मसीहा हैं।”

पुरस्कार और पहचान
उनकी मेहनत और नवाचार को सरकार ने भी पहचाना है। उन्हें गोवा स्टेट बायोडायवर्सिटी बोर्ड की ओर से सम्मान मिला है। साथ ही उन्हें कला गौरव पुरस्कार भी मिल चुका है।

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कलाकार, पंडित और झाड़ू बनाने वाले भी हैं अइया
अइया जी सिर्फ कुआं खोदने वाले नहीं हैं, वे एक कला शिक्षक, मूर्ति निर्माता, पंडित और झाड़ू बनाने वाले कारीगर भी हैं।
जब उन्होंने स्कूल में कला शिक्षक की नौकरी छोड़ी, तो घर चलाने के लिए भगवान गणेश की मूर्तियां बनाना शुरू किया। साथ ही पूजा-पाठ कराने लगे।

उनकी बनाई झाड़ू खास होती है। वो बताते हैं –

“यह चाकू मेरी खुद की डिजाइन है। इससे पत्तों को सही एंगल पर काटा जा सकता है।”

उनकी झाड़ू की पकड़ और बांधने का तरीका इतना खास है कि कणकोण में सबसे अच्छी झाड़ू के रूप में जानी जाती है। एक झाड़ू की कीमत ₹250 से ₹300 तक होती है। वे रोजाना 2 से 6 झाड़ू तैयार करते हैं।

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अब अगली पीढ़ी को सिखाना चाहते हैं हुनर
बालकृष्ण अइया का मानना है कि ज्ञान को सिर्फ अपने तक सीमित रखना गलत है।

“ज्ञान अगर साथ चला गया, तो उसका क्या मतलब? नवाचार का क्या फायदा, अगर वो पड़ोसी के काम न आए?”

इसलिए अब वे चाहते हैं कि युवा पीढ़ी भी यह काम सीखे।

निष्कर्ष
बालकृष्ण अइया की कहानी हमें सिखाती है कि अगर मन में ठान लें, तो पहाड़ जैसे मुश्किल हालात को भी काटा जा सकता है। उन्होंने यह साबित कर दिखाया कि बदलाव लाने के लिए डिग्री नहीं, दृढ़ निश्चय चाहिए।