खाने को कुछ नहीं था, जितने पैसे बचे थे, उससे साइकिल खरीद ली और घर की ओर निकल पड़े

न राशन बचा, न पैसा बचा, न काम बचा, जितना पैसा बचा था, उससे साइकिल खरीद ली और मुंबई से गोरखपुर चल पड़े हैं.

शुरू में कामगार लोग जब शहरों से भागने लगे तो उनको सुनने की जगह कहा गया है कि अफवाह के चक्कर में भाग रहे हैं. जाहिल हैं, इसलिए भाग रहे हैं. कुछ लोगों को जिम्मेदार ठहराने और बलि का बकरा बनाने की भी कोशिश हुई, लेकिन लोग देश भर से भाग रहे थे. अब लॉकडाउन को 30 दिन से ज्यादा बीत चुके हैं. लोग अब भी जैसे तैसे भाग रहे हैं.

क्योंकि लॉकडाउन जैसे जैसे आगे बढ़ रहा है, लोगों की परेशानी बढ़ रही है. लोगों के पास पैसा खतम है. राशन खतम है. उन्हें किसी तरह की मदद की आस नहीं है. सरकारें तमाम कुछ कर रही हैं, लेकिन यह मुझे पता है क्योंकि मैं दिनभर खबरों के बीच में हूं. जो आदमी मुंबई में दिहाड़ी मजदूरी करता है, उसे नहीं पता है कि प्रधानमंत्री ने आज ट्विटर पर कौन सा तीर मारा है.

फोटो में यह 20 मजदूरों का जत्था मुंबई से साइकिल से निकला है. ये लोग 1700 किलोमीटर साइकिल चलाकर गोरखपुर आ रहे हैं. ये वहां से इसलिए निकले हैं क्योंकि इनके पास राशन खतम हो गया था. उन्हें कोई मदद नहीं पहुंची, उनके पास अब पैसे बचे नहीं थे, न काम बचा है.

तर्क वही है जो पहले दिन भाग रहे मजदूरों का था कि यदि घर नहीं गए तो यहां भूख से मर जाएंगे.

(कृष्ण कांत फ़ेसबुक से साभार)

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