बिहार में सुशासन सरकार फेल, मोनीटरिंग बिना जमीन पर नहीं उतर पा रहीं सरकारी घोषणाएं

PATNA : लोकसभा चुनाव में बिहार की नीतीश सरकार इतनी मस्त रही कि हर तरह की विकास योजनाओं को हाशिये पर डाला जाता रहा तथा सरकार के मंत्री, अफसर से लेकर संतरी तक उसी में मस्त रहे। चुनाव के समय तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमर ने घोषणाओं की झड़ी सी लगा दी मगर पूर्व की घोषित योजनाओं का क्या हश्र हुआ उस पर गौर करने की उन्होंने जरूरत नहीं समझी।

नीतीश सरकार तरह-तरह की घोषणाओं का अंबार लगाती रही मगर वे कार्यान्वित नहीं हुईं क्योंकि उनका अनुश्रवण किया ही नहीं जाता। गरीब और कमजोर वर्ग के लिए विकास बाबू होने का दावा करने वाले नीतीश कुमार कहने को तो कई योजनाएं चलाते हैं मगर वंचित समाज को उनका लाभ नहीं मिल पाता। तकरीबन छह माह पूर्व केंद्र के निर्देश पर खुद राज्यपाल ने कार्यान्वयन में सुस्ती के लिए नौकरशाही को जिम्मेवार ठहराते हुए उन्हें तीखी फटकार लगाते हुए सभी विकासात्मक एवं कल्याणकारी योजनाओं की सख्त मानीटरिंग की व्यवस्था करने का निर्देश दिया।

नीतीश सरकार को बताना चाहिए कि जब केंद्र ने फूड पार्क के लिए सरकार को एक सौ करोड़ मुहैया करा दिये और दो साल में उसके निर्माण का लक्ष्य निर्धारित किया फिर भी तीन साल होने के बाद भी वह अपूर्ण क्यों रहा? उद्योग लगने से बीस-पचीस हजार युवाओं को नौकरी मिल सकती थी मगर उसके अनुश्रवण की कोई व्यवस्था क्यों नहीं की गई? नीतीश सरकार ने प्रसंस्करण उद्योग लगाने की दिशा में कोई दिलचस्पी क्यों नहीं ली ?

हद तो यह है कि राष्ट्रपति सचिवालय और गृह मंत्रालय के निर्देश के बाद राज्यपाल की फटकार का भी सरकार व उसके नौकरशाहों पर कोई असर नहीं पड़ा गोया वे चिकना घड़ा हों। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विकास की बात तो करते हैं मगर विकास संबंधी योजनाओं के क्रियान्वयन में दिलचस्पी नहीं ले रहे जबकि हर विभाग में उन्होंने अपने चहेते अफसरों को ही तैनात कर रखा है। ऐसे में सवाल लाजिमी है कि इसके बावजूद वे नौकरशाहों को सही तरीके से अपना दायित्व पूरा करने के लिए सख्त निर्देश क्यों नहीं दे रहे? जब तक कल्याणकारी योजनाओं और कार्यक्रमों का सही तरीके से संचालन नहीं होता तब तक गरीब और वंचित उसका लाभ भला कैसे उठा पाएंगे?

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