जयंती पर इंदिरा गांधी को शत-शत नमन, आपका सदैव ऋणी रहेगा भारत

” मेरे खू’न का एक-एक कतरा भारत को मजबूत करने में लगेगा”

इन्दिरा प्रियदर्शिनी गाँधी (जन्म उपनाम: नेहरू) (19 नवंबर 1917-31 अक्टूबर 1984) वर्ष 1966 से 1977 तक लगातार 3 पारी के लिए भारत गणराज्य की प्रधानमन्त्री रहीं और उसके बाद चौथी पारी में 1980 से लेकर 1984 में उनकी राजनैतिक ह’त्या तक भारत की प्रधानमंत्री रहीं। वे भारत की प्रथम और अब तक एकमात्र महिला प्रधानमंत्री रहीं।

इंदिरा गांधी सख्त शख्सियत के लिए जानी जाती थी, हालांकि यह उनके व्यक्तित्व का महज एक पक्ष था। वास्तव में उनका व्यक्तित्व बहुरंगी और बहुआयामी था। प्रशासन से लेकर प्रकृति, परवरिश से लेकर परिवार और पढ़ाई से लेकर पॉलिसी तक- सभी मोर्चे पर एक साथ उनके कई रंग देखने को मिलते हैं। कभी पिता नेहरू और गांधी की गोद में, तो कभी संभावनाएं और सरोकार तलाशती युवती की भूमिका में, तो कभी बी’मार मां और पति की तीमारदारी में, तो कभी अबूझ पहेलियों में उलझे उनके दार्शनिकता लिए चेहरे में, तो कभी बच्चों को दुलारती-पुचकारती मां और दादी की भूमिका में- उनका हर किरदार, हर रंग और हर छटा निराली है। हमारी इस फोटो गैलरी में आपको उनके ये सारे रंग और रूप मिल जाएंगे
विज्ञापन

जवाहरलाल नेहरू के लिए इंदिरा उम्मीद थी, परिवार में जब इंदिरा का जन्म हुआ तो बहुत लोग बेटी के जन्म पर निराश हुए मगर पिता जवाहरलाल नेहरू के लिए इंदिरा उनका सपना थी।

स्वतंत्रता आंदोलन का समय चल रहा था उस वक्त इंदिरा 12 साल की थीं, उन्होंने बच्चों की एक वानर सेना बनाई और उसका नेतृत्व किया, वानर सेना बनाने का विचार उनके मन में रामायण से आया जिस तरह रावण के साथ युद्ध करने के लिए प्रभु श्रीराम ने वानर सेना की मदद ली थी, इंदिरा की वानर सेना में बहुत सारे बच्चे शामिल थे।

इंदिरा गांधी हमेशा से ही महात्मा गांधी के करीब रही हैं, जब फिरोज से शादी को लेकर मुश्किलें आ रही थी तो महात्मा गांधी ने ही रास्ता निकाला था। महात्मा गांधी के साथ युवा इंदिरा हमेशा तस्वीरों में मुस्कुराती नजर आईं। 1937 में इंदिरा अपनी पढ़ाई के लिए ऑक्सफोर्ड चली गई

1937 में इंदिरा अपनी पढ़ाई के लिए ऑक्सफोर्ड चली गईं और 1941 में अपनी पढ़ाई पूरी करके भारत वापस लौट आईं। पिता जवाहर लाल नेहरू को उम्मीद थी इंदिरा विदेश से लौटकर उनके साथ राजनीति के सफर पर चलेंगी मगर उन्होंने भारत पहुंचते ही फिरोज के साथ अपनी शादी का प्रस्ताव उनके सामने रख दिया जिसको सुनकर जवाहरलाल नेहरू ने इसका विरोध किया।

लम्बें संघर्ष के बाद 26 मार्च 1942 को इंदिरा ने अपनी पसंद से फिरोज गांधी से इलाहाबाद में शादी कर ली।

फिरोज गांधी के साथ शादी करने के बाद इंदिरा कश्मीर घूमने गई और जब वहां से लौटकर आयीं तो उनको और फिरोज गांधी को अंग्रेज हुकूमत ने गिरफ्तार कर लिया और नैनी जेल में डाल दिया।

इंदिरा और फिरोज के रिश्तें बहुत सहज कभी नहीं रहे अक्सर पिता और पति के बीच इंदिरा की कश्मकश चलती रहती थी और घर के झगड़ों का असर बाहर भी जीवन में दिखने लगा था, फिरोज जवाहर लाल के साथ उनके घर रहना नहीं चाहते थे और इंदिरा को राजनीति के लिए जवाहर के साथ रहना पड़ता था, संजय और राजीव का ज्यादातर समय अपने नाना के साथ उनके घर पर ही गुजरा।

इंदिरा का जीवन संघर्षशील रहा और हमेशा वो अपने पिता के साथ खड़ी नजर आई, फिरोज से शादी के बाद भी वो ज्यादातर अपने बच्चों के को लेकर अपने पिता के साथ रहा करती थीं।
27 मई 1964 जवाहर लाल नेहरू की मौत

27 मई 1964 जवाहर लाल नेहरू की मौत के बाद इंदिरा को बहुत बड़ा धक्का लगा क्योंकि उनके सिर से पिता का साया तो उठ गया साथ ही उनके जीवन का सबसे बड़ा सहारा भी चला गया।

राजनीति में अपना कदम बढ़ाते हुए इंदिरा गांधी 1959-60 में कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं, और यही से शुरुआत हुई उनके बड़े राजनैतिक सपने की।

18 मार्च,1971 इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री बनी और को तत्कालीन राष्ट्रपति वीवी गिरी ने उनको प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई।

इंदिरा को आयरन लेडी भी बोला गया, वो मजबूत इरादों की महिला थी मगर भीतर से बहुत संवेदनशील भी,अपने परिवार को अपने राजनैतिक जीवन के साथ एक सूत्र में बांधकर रखती थी और पूरा प्रयास करती थी अपना वक्त परिवार के साथ गुजारने का।
राहुल और प्रियंका गांधी के साथ इंदिरा गांधी अक्सर अच्छा वक्त गुजारा करती थी। ऐसी तस्वीरें अक्सर देखने को मिल जाती हैं जिसमें उनके साथ संजय और राजीव गांधी के साथ गुजारे हुए समय की यादें ताजा हो जाती हैं।

1972 में भारत-पाकिस्तान शिमला शिखर बैठक हुई और उसमें पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जुल्फिकार भुट्टो अपनी बेटी बेनजीर भुट्टो के साथ शिमला आए थे, बेनजीर उस समय बेनजीर भुट्टो 19 साल की थी। यह तस्वीर उसी अवसर की हैं।

31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी ने ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में हुई एक चुनावी जनसभा में अलग अंदाज में भाषण दिया था। इस भाषण को लिखा था उनके सूचना सलाहकार एचवाई शारदा ने। उस दिन कुछ अलग हुआ था अचानक से इंदिरा गांधी अपना लिखा भाषण बीच में ही छोड़कर खुद से ही बोलने लगीं थी। उस दिन उन्होंने अपने भाषण में कहा था,
‘मैं आज यहां हूं। कल शायद यहां न रहूं। मुझे चिंता नहीं मैं रहूं या न रहूं। मेरा लंबा जीवन रहा है और मुझे इस बात का गर्व है कि मैंने अपना पूरा जीवन अपने लोगों की सेवा में बिताया है। मैं अपनी आखिरी सांस तक ऐसा करती रहूंगी और जब मैं मरूंगी तो मेरे ख़ून का एक-एक क़तरा भारत को मजबूत करने में लगेगा।’

अगले दिन 31 अक्टूबर को वह सुबह करीब 9 बजे इंदिरा गांधी तेजी में 1 अकबर रोड की ओर बढ़ीं। कुछ दूर चलने पर इंदिरा गेट के पास पहुंची और गेट के पास ही सब इंस्पेक्टर बेअंत सिंह ड्यूटी में तैनात थे, उसने गो’ली चला दी और इंदिरा गांधी ने अंतिम सांस ली ।

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *