सच बोलकर बुरे ‘फंसे’ पटना हाईकोर्ट के जस्टिस राकेश कुमार, सुप्रीम कोर्ट ने किया ट्रांसफर

-रविशंकर उपाध्याय
आखिरकार सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने पटना हाई कोर्ट के जज राकेश कुमार का आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में तबादला कर ही दिया. जस्टिस राकेश कुमार ने न्यायपालिका में भ्रष्टाचार को 28 अगस्त को सामने लाया था और कहा था कि न्यायिक प्रक्रिया में घोर खामियां हैं, इसके बाद अगले ही दिन पटना हाईकोर्ट की पूरी पीठ बैठी थी और उनके सभी आदेशों को रद्द कर दिया था। अब गुरुवार को यानी कल ही सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस एपी शाही और जस्टिस राकेश कुमार के तबादले की सिफारिश कर दी। ऐसे में क्या सुप्रीम कोर्ट को यह नहीं बताना चाहिए था कि जस्टिस राकेश कहां गलत थे और यदि बिना बताए उनका तबादला कर दिया गया तो सुप्रीम कोर्ट को भी इस पूरे खेल में हिस्सेदार नहीं मानना चाहिए? ये कुछ सामान्य सवाल हैं जिनके जवाब स्वस्थ लोकतंत्र में सब को जानने का अधिकार है.

28 अगस्त को जस्टिस राकेश ने क्या कहा था? : पटना हाईकोर्ट के इतिहास में पहली बार जस्टिस राकेश ने फैसले में लिख दिया कि हाईकोर्ट का प्रशासन भ्रष्ट जजों को संरक्षण देता है। वरिष्ठ वकील से स्थाई जज बने जस्टिस राकेश ने तीन सवालों को उठाया और उसमें ऐतिहासिक फैसले दिए थे।

महादलित विकास मिशन में हुए घोटाले मामले की सुनवाई करते हुए उन्होंने तीन सवालों को उठाया और उसमें फैसले देते हुए कहा कि आईएएस केपी रमैया हाईकोर्ट से अग्रिम जमानत की अर्जी खारिज होने और सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं मिलने के बावजूद वे निचली अदालत में नियमित जमानत लेने में कामयाब रहे। जस्टिस राकेश ने आश्चर्य जताते हुए कहा था कि इस दौरान रमैया खुलेआम घूमते रहे। अब पटना के जिला जज इस मामले की जांच करेंगे।

दूसरा सवाल यह था कि भ्रष्टाचार का केस साबित होने पर भी पटना के एडीजे को बर्खास्त नहीं किया गया। जस्टिस राकेश ने अपने लंबे चौड़े फैसले में लिखा है कि भ्रष्ट न्यायिक अधिकारियों को मिल रहे संरक्षण की यही बानगी है। जिस न्यायिक अधिकारी के खिलाफ आरोप साबित हो जाता है उसे बर्खास्तगी की बजाए मामूली सजा देकर छोड़ दिया जाता है। मैंने विरोध किया तो उसे भी नजरअंदाज कर दिया गया। लगता है कि अधिकारियों को संरक्षण देने की परिपाटी हाइकोर्ट की बनती जा रही है। उन्होंने आदेश की सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, कॉलेजियम, पीएमओ, कानून मंत्रालय और सीबीआई भेजने का निर्देश दिया कहा कि जजों के सरकारी बंगले पर क्यों करोड़ों खर्च किए जाते हैं जबकि यह टैक्सपेयर की गाढ़ी कमाई है।

तीसरा और अंतिम सवाल उठाते उन्होंने कहा था कि एक टीवी चैनल पर स्टिंग में दिखाया गया कि पटना सिविल कोर्ट में कर्मचारी सरेआम घूस मांगते हैं। लेकिन आज तक उन कर्मियों के खिलाफ एफआइआर आर दर्ज नहीं की गई जबकि हाईकोर्ट के वकील पीआईएल दायर कर पिछले डेढ़ साल से एफ आई आर दर्ज करने की गुहार लगा रहे हैं। इस मामले की जांच जस्टिस राकेश ने सीबीआई को दे दी थी।

-लेखक पत्रकार हैं और प्रभात खबर पटना में कार्यरत हैं(यह आलेख उनके फेसबुक टाइमलाइन से साभार है)

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