जयंती पर महान नेता कर्पूरी ठाकुर को शत-शत नमन, हे महात्मा हम बिहारवासी आपके सदैव ऋणी रहेंगे

कर्पूरी ठाकुर ने कहा था-जिस देश की बड़ी आबादी गरीबी में जी रही हो वहां सांसदों-विधायकों को पेंशन देना वाजिब नहीं

सामाजिक व्यवस्था परिवर्तन में कर्पूरी के आदर्श थे जेपी, लोहिया व आचार्य नरेन्द्र देव। कर्पूरी के पहले समाजवादी आंदोलन को खाद उच्च वर्ग से ही मिलती थी। कर्पूरी ने पूरे आंदोलन को उन लोगों के बीच ही रोप दिया जिनके बूते समाजवादी आंदोलन हरा होता था। वह 1970 में जब सरकार में मंत्री बने तो उन्होंने आठवीं तक की शिक्षा मुफ्त कर दी। उर्दू को द्वितीय राजभाषा का दर्जा दिया। पांच एकड़ तक की जमीन पर मालगुजारी खत्म कर दी। वह उस कतार के नेता थे जिन्होंने निजी व सार्वजनिक जीवन में आचरण के उच्च मानदंड स्थापित किए। उन्हें समर्थ लोगों का कोपभाजन बनना पड़ा। उत्पीड़न-प्रताड़ना सहनी पड़ी, फिर भी वे सत्य के लिए अडिग रहते हुए संघर्ष करते रहे।

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने स्वार्थ में सांसदों-विधायकों को प्रलोभन देते हुए मासिक पेंशन का कानून बनाया। इसकी कोई जरूरत नहीं थी। किसी ने ऐसी मांग नहीं की थी। कर्पूरी जी ने आक्रोशपूर्ण लहजे में कहा था कि मासिक पेंशन देने का कानून ऐसे देश में पारित हुआ है, जहां 60 में 50 करोड़ (तब की आबादी) लोगों की औसत आमदनी साढ़े तीन आने से दो रुपए है। यदि देश के दरिद्र लोगों के लिए 50 रुपए मासिक पेंशन की व्यवस्था हो जाती, तो बड़ी बात होती। जब इंदिरा जी ने संविधान संशोधन के जरिये लोकसभा का कार्यकाल एक साल के लिए बढ़ा दिया, तो कर्पूरी जी को बहुत बुरा लगा था।

समस्तीपुर के पितौंझिया (अब कर्पूरी ग्राम) में 1904 में सिर्फ 1 व्यक्ति मैट्रिक पास था। 1934 में 2 और 1940 में 5 लोग मैट्रिक पास किए। इनमें एक कर्पूरी जी थे। 1952 में विधायक बने। आॅस्ट्रिया जाने वाले डेलीगेशन में चुने गए। कोट नहीं था। एक दोस्त से मांगा। कोट फटा था। कर्पूरी जी वहीं कोट पहनकर चले गए। वहां युगोस्लाविया के मार्शल टीटो ने देखा कि उनका कोट फटा है। उन्हें नया कोट गिफ्ट किया गया।

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *