मिथिला का लोकपर्व मधुश्रावणी आज से शुरू, सज-धज कर फूल लोढ़ने​ निकली ​नव विवाहित महिलाएं

फुल तोड़ने के दौरान महिलाएं अपने गांव के मंदिर प्रांगण में शाम में एकत्रित होकर फूलडाली में आकर्षक ढंग से फूल को सजाएंगी और फिर वहां से नाग देवता एवं महादेव के गीत गाते हुए अपने अपने घर लौटेंगी। इस क्रम में पूरे दिन उपवास में रहेंगी। शाम को अनुना भात एवं दूध ग्रहण करेंगी।

मंगलवार को नहाय खाय के साथ सावन कृष्ण पक्ष के पंचमी से शुरू होनेवाले नवविवाहितों का मधुश्रावणी पर्व को लेकर तैयारियां लगभग सभी घरों में पूरा हो गया है। मिथिला का पारंपरिक, धार्मिक पर्व मधुश्रावणी मुख्य रूप से मैथिल ब्राह्मण एवं कायस्थ परिवारों में मनाया जाता है। अपने सुहाग की रक्षा के लिए करीब 13 दिनों तक होने वाली पूजा के दौरान नवविवाहिता पूरे नियम निष्ठा का पालन करती है। 28 जुलाई को नागपंचमी के दिन से प्रथम पूजा के साथ शुरू होने वाला मधुश्रावणी 11 अगस्त को नवब्याहता के अग्निपरीक्षा के साथ खत्म होगा। पूजा के प्रथम दिन पूजा व्रतियों के ससुराल से पूजन सामग्री, वस्त्र सहित पूजा के दौरान अरवा भोजन का सामान भेजा जाता है।

पूजा के अंतिम दिन नवब्याहता के पूजन सामग्री, वस्त्र के साथ कथकहनी व परिवार के छोटे बड़े सभी सदस्यों का वस्त्र सहित सुहागिनों के भोज की सामग्री ससुराल पक्ष से आने की प्रथा है, जिसका आज भी निर्वहन किया जाता है। पूजा के दौरान कथकहनी प्रत्येक दिन शिव पार्वती से जुड़ी कहानियां सुनाती है। पूजन देखने और मधुश्रावणी कथा सुनने आनेवाली आस पड़ोस की महिला मण्डली द्वारा पूजा के दौरान भगवती, विषहरा एवं शिव नचारी का लोकगीत गाया जाता है।

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