गरीबी के कारण छोड़ दिया IAS अफसर बनने का सपना, नौकरी के 10 साल बाद बना UPSC टॉपर, देश भर में रैंक 8

नौकरी व परिवार की थी जिम्‍मेदारी, ग्रेजुएशन के 10 साल बाद UPSC में पाई 8 वीं रैंक : ये कहानी है उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के सूर्य पाल गंगवार की. सूर्य पाल गंगवार का जन्म नवाबगंज तहसील के बिथरी गांव में हुआ. सूर्य पाल याद करते हैं कि कहते हैं कि मां बताती है कि बचपन में कई बार जब मैं रोता था तो वह दुलारते हुए कहती थीं- ‘चुप हो जा, मेरा बेटा कलक्टर बनेगा’. उस समय तो इसका मतलब समझ नहीं आता था, लेकिन जब मतलब समझ आया, तब से मुझे आईएएस बनने की धुन सवार हो गई, सूर्य पाल कहते हैं कि हालांकि एक सामान्य परिवार में जन्म लेने वालों की आंखें बड़े सपने देखने में सहज नहीं होतीं.

बहुत सारी बाध्यताएं होती हैं जो मेरे साथ भी रहीं. पिताजी शिक्षक रहे हैं. शिक्षक पिता का पुत्र होने के अपने फायदे भी हैं और नुकसान भी. घर में अनुशासन इतना कि क्या मजाल कि छुट्टी के दिन भी हम जरा सा अधिक सो लें. वह कहते हैं कि पिताजी से बड़ा लगाव था. पिताजी के साथ थोड़ा समय भी रहने को मिल जाता है तो अपने लिए भाग्यवान समझते थे. विशेष तौर पर जब कक्षा 9 और 11 की परीक्षाओं के बाद पिताजी सुबह 3 बजे उठकर जब रोज कॉपियां चेक किया करते थे, उस समय उनके द्वारा जैसे मार्क्स दिए जाते थे, वो देखते रहने में अच्छा लगता था. वो बहुत स्ट्रिक्ट टीचर रहे.

एक से पांच तक सूर्य पाल की पढ़ाई लिखाई नवाबगंज कस्‍बे के ही एक प्राइवेट स्कूल में हुई. वह कहते हैं कि नवाबगंज में कोई बड़ी शैक्षिक उप्लब्धि हासिल करने वाला रोल मॉडल तो नहीं था, किंतु छात्रों के लिये डॉ एम पी आर्या जरूर एक प्रेरणास्रोत थे, जिनसे पिता जी मिलवाने ले जाते थे. बरेली में वर्ष 1986 में ग्रामीण बच्चों के लिए नवोदय विद्यालय खुला, जिसके पहले बैच में उनका एडमिशन 6वीं हो गया. सूर्य पाल बताते हैं कि शुरुआत में स्कूल में सुविधाओं का अभाव था, हालांकि यह आवासीय स्कूल था. नवोदय के शिक्षकों जब्बार हुसैन, आर के चौधरी, जी एस अवस्थी, सरिता श्रीवास्तव के योगदान को वह आज भी याद करते हैं. सूर्य पाल कहते हैं कि इस स्कूल में अक्सर डीएम और अन्य प्रशासनिक अधिकारियों का आना-जाना लगा रहता था, जिससे डीएम बनने की प्रेरणा मिलती रही. बहरहाल, यहां से 12 तक की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद इंजीनियरिंग में करियर बनाने का निर्णय लिया, जिसके बाद यूनिवर्सिटी ऑफ रुड़की (IIT Roorkee) में एडमिशन हो गया.

सूर्य पाल बताते हैं कि उस समय पारिवारिक परिस्थितियां ऐसी नहीं थीं कि आईएएस की तैयारी करता. अतः ऐसे में नौकरी करना जरूरी था. इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग से बीटेक पूरा करने के बाद कोलकाता में उनकी नौकरी लग गई. यहां पर उन्‍होंने इलैक्ट्रिकल मैन्युफैक्चरिंग कंपनी लिमिटेड (ईएससी) तथा फिलिप्स इंडिया लिमिटेड जैसी कंपनियों में कई साल नौकरी की, लेकिन उनका मन यूपी वापस आने का था. इसी दौरान उनका सेलेक्शन मैनेजर प्लानिंग के तौर पर सेंचुरी लैमिनेटिंग कंपनी लिमिटेड हापुड में हो गया, इसके बाद उन्‍होंने थोड़े समय ओरकल इंडिया में हैदराबाद में भी काम किया. कॉरपोर्रेट में कार्य करते समय उन्होंने टाइम मैनेजमेंट और कार्य करने की उत्कृष्ट तरीके सीखे. अपने अन्य सहपाठियों की तरह ओरेकल में उन्‍हें अमेरिका जाने का भी अवसर था, लेकिन उन्होंने अपने देश में ही नौकरी करने का विकल्प चुना.

वर्ष 2003 की जुलाई में सूर्य पाल का सिलेक्शन एयर इंडिया लिमिटेड में बतौर इंजीनियर (इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग) हो गया, उन्होंने दिल्ली में ज्वाइन कर लिया. यहां पर वह दिसंबर 2008 तक कार्यरत रहे. वर्ष 2004 में पहली बार सूर्य पाल ने यूपीएससी की परीक्षा दी, लेकिन प्री में सफलता नहीं मिली. अगले साल 2005 में उन्होंने यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी. इस बार की परीक्षा में भी उनको सफलता नहीं मिली. सूर्य पाल बताते हैं कि उन्होंने नौकरी के बाद का पूरा समय और अपनी पूरी ताकत यूपीएससी की तैयारी में लगा दी.

पुराने दिनों को याद करते हुए सूर्य पाल बताते हैं कि नवम्बर 2004 में दिल्ली में कोचिंग ज्वाईन की थी, तब उन्‍हें टाइम मैनेजमेंट के अति कठिन पाठ वक्त ने सिखाए. सुबह 5 बजे घर छोड़ देते थे और दो घंटे की कोचिंग क्लास के बाद 9 बजे तक ऑफिस भी पहुंच जाते थे. एयर इंडिया की नौकरी के बाद शाम 6 बजे वह ऑफिस से निकलकर सीधे कोचिंग की दूसरी क्लास में पहुंचते थे, वहां से देर रात तक घर पहुंचते थे. सूर्य पाल कहते हैं कि उनकी इस दिनचर्या और जुनून को देखकर परिवार के लोग समझाते थे कि एयर इंडिया की सरकारी नौकरी ठीक तो है, सैलरी भी अच्छी है. जिंदगी में सेटल हो चुके हो, फिर क्यों इतनी मेहनत करते हो, लेकिंन औसत मैं 18 घन्टे मेहनत कर रहा था. मुझे विश्वास होने लगा था कि मैं आईएएस निकाल लूंगा. सूर्य पाल कहते हैं कि मैं एक चीज़ से आश्वस्त था कि जितने भी स्टूडेंट्स परीक्षा दे रहे हैं, उनमे से मैं सबसे इंटेलीजेंट नहीं हूं, लेकिन एक बात मैं दावे से कह सकता था कि कोई छात्र मुझसे अधिक मेहनत नहीं कर रहा होगा और मेरा यही विश्वास मुझमें कॉन्फिडेंस भरता रहा.

सूर्य पाल बताते हैं कि जब उन्होंने वर्ष 2006 में यूपीएससी की परीक्षा दी प्रीलिम्स क्वालीफाई हो गया, लेकिन यूपीएससी मेन्स में सफलता नहीं मिली. तब मैंने एक शेर लिखा था – मंज़िल तू इंतज़ार कर कि मैं आऊंगा जरूर, हारा हूँ रास्ते में मगर लौटा नहीं अभी. अगले साल 2007 में यूपीएससी की परीक्षा में सूर्य पाल ने 476 वीं रैंक के साथ यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली. जिसके बाद उनका सेलेक्शन आईआरएस (इंडियन रेवेन्यू सर्विस) में बतौर असिस्टेंट कमिश्‍नर हो गया. दिसंबर 2008 से अगस्त 2009 तक वह इस विभाग में कार्यरत रहे, लेकिन उन्होंने इसी साल फिर यूपीएससी की परीक्षा दी, जिसमें उन्होंने यूपीएससी 2008 की परीक्षा में 8वीं रैंक हासिल की और आईएएस बन गए. सूर्य पाल बताते हैं कि उन्होंने अपना रिजल्ट खुद नहीं देखा, दोस्तों ने देखा और फोन पर बताया तो मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि मेरा नाम टॉप 10 में आ गया है, और मैं ऐसे चीख रहा था. इतनी तेज आवाज में कि उनका गला बैठ गया. शायद मुझे वो मंज़िल मिली थी, जिसके लिए बरसों इंतज़ार लिया. संघर्ष की एक दास्‍तां समाप्त होने को थी.

सूर्य पाल गंगवार अपने शुरुआती दिनों में आजमगढ़, फूलपुर आदि जगहों पर एसडीएम रहे. इसके बाद सीडीओ बदायूं भी रहे. बाद में हापुड़ के डीएम बने. इसके बाद हाथरस, सीतापुर, रायबरेली, सिद्धार्थनगर, फिरोजाबाद के भी डीएम रहे. इससे पहले वह यूपी सरकार के सिविल एविएशन डिपार्टमेंट में बतौर डायरेक्टर, मध्यांचल विधुत वितरण निगम लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर भी रह चुके हैं. उत्तर प्रदेश को जेवर एयरपोर्ट समेत 18 एयरपोर्ट्स के प्रारम्भ करने में उनकी बहुत बड़ी भूमिका रही है.

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