मैं सांस नहीं ले पा रहा, प्लीज मुझे मत मा’रो, पुलिस वाले ने गला चा’पकर आखिरकार मा’र डाला

अगर आपने अभी तक इस तस्वीर की कहानी नहीं जानी तो आपको तत्काल गूगल करके पता कर लेना चाहिये। क्योंकि यह आजकी दुनिया की प्रतीकात्मक तस्वीर है।

इसका महत्व इसलिये नहीं है, क्योंकि इसके वजह से दुनिया का सबसे विकसित और सभ्यताओं का चौधरी माना जाने वाला मुल्क आज बुरी तरह जल रहा है। वहां के दृश्य ऐसे लग रहे हैं, जैसे किसी अफ्रीकी मुल्क की अराजकता के नजारे हो। इस तस्वीर का महत्व इससे बड़ा है। आप याद रखियेगा कि यह तस्वीर एक जमाने के बाद अमेरिका और दुनिया में वर्ल्ड ट्रेड टॉवर पर हुए आतंकी हमले की तस्वीर से अधिक याद रखी जायेगी। क्योंकि इस तस्वीर ने हमारी आधुनिक सभ्यता को नंगा कर दिया है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसकी बुनियाद समानता और सहअस्तित्व के सिद्धांतों पर रखी गयी है।

यह तस्वीर जिसमें एक श्वेत चमड़ी वाला पुलिसकर्मी एक अश्वेत चमड़ी वाले अमेरिकी नागरिक की गर्दन पर चढ़ा है। अश्वेत व्यक्ति बार-बार कह रहा है, आई कांट ब्रीथ, मैं सांस नहीं ले पा रहा। मगर श्वेत पुलिस वाला उसकी गर्दन पर आठ मिनट तक इसी तरह चढ़े रहता है और आखिरकार दम घुटने से उस अश्वेत नागरिक की मौ’त हो जाती है।

उस अश्वेत नागरिक के आखिरी वाक्य आई कांट ब्रीथ, मैं सांस नहीं ले पा रहा, आज पूरे अमेरिका के शोषित, दमित और समानता के समर्थक लोगों का नारा बन गए हैं। यह उस दमघोटू व्यवस्था का प्रतीक बन गया है, जहां आज भी चमड़ी के रंग के आधार पर भेदभाव होता है।

यह तस्वीर सिर्फ अमेरिका की नहीं, इन दिनों पूरी दुनिया में सर उठाये सत्ता पर काबिज दक्षिणपंथ की प्रतीकात्मक तस्वीर है, जिनकी निगाह में समानता, स्वतंत्रता और सह अस्तित्व कुछ फालतू शब्द हैं। जो ये केन प्रकारेण दुनिया को उस जमाने में ले जाना चाह रहे हैं, जब ताकतवर और सामर्थ्यवान लोगों को ही जीने का हक होता था। कमजोर, गरीब, वंचित और संख्या में कम होने वाले समूहों को दोयम दर्जे की जिंदगी जीने के लिए विवश किया जाता था। दक्षिणपंथी जिस स्वर्णिमकाल को लौटने के लिये प्रयासरत हैं, वह वही दौर है।

इस तस्वीर में मुझे मुजफ्फरपुर में डायन का आरोप झेलने वाली उस महिला का भी चित्र नजर आता है, जिसे पटक कर मल मूत्र पिलाया गया। उस गरीब व्यक्ति का चेहरा नजर आता है, जिसे चोर या गोमांस का व्यापारी बताकर पीट पीटकर मार दिया जाता है। उन करोड़ों मजदूरों का चेहरा नजर आता है, जो लॉक डाउन की वजह से दो महीने तक इस देश के उन राजमार्गों पर घिसटते रहे, जिन्हें उनके साथियों ने ही पसीने से तर बतर होकर बनाया था।

जबकि उसी वक़्त इस देश का एक जिलाधिकारी कजाकिस्तान से सुरक्षित लौट एक अमीर व्यक्ति के कुत्ते का स्वागत ओरियो बिस्कुट देकर कर रहा था। जब सड़कों पर गरीबों के बच्चे पैदा हो रहे थे तब हमारा पुलिस प्रशासन किसी अमीर बच्चे के जन्मदिन का केक उसके घर पहुंचा रहा था।

दक्षिणपंथ दरअसल दुनिया में इसी दौर को वापस लाने का सपना देखता है। जब अमीर लोगों को उनकी सुख सुविधाओं के साथ बेफिक्र होकर जीने का अधिकार मिल जाये। उसके तमाम शोषण और अपराध को माफ करने के लिये सत्ता कोई कानून बना दे और प्रशासन उन लोगों को पूरी ताकत से कुचलने में समर्थ हो, जिन्हें समानता, स्वतंत्रता और दूसरे अधिकार चाहिये। जो थोड़ी सी बेहतर जिंदगी जीने का हक चाहते हो।

जैसा इस वक़्त ट्रम्प कर पा रहे हैं, उन्होंने विरोधियों को कुचलने के लिये कुत्ते छोड़ने की धमकी दी है। भारत का साधन संपन्न दक्षिणपंथी तबका आज सत्ता में होने के बावजूद आज थोड़ा दुखी है। कि उनकी सरकार यह काम ठीक से नहीं कर पा रही। वह समानता, स्वतंत्रता और सह अस्तित्व यानी धर्मनिरपेक्षता की बात करने वाले लोगों को कुचल नहीं पा रही। आज ही सुबह मैंने एक वीडियो में सुना कि योगी जी अल्पसंख्यकों का तुष्टिकरण कर रहे हैं। एक स्टेटस पर पढ़ा कि प्रकाश जावड़ेकर मीडिया को ठीक से कंट्रोल नहीं कर पा रहे, मतलब यह कि सच को सामने लाने वाले जो थोड़े से लोग बचे हैं उन्हें भी यह सरकार कुचल दे।

आप समझ लीजिये दक्षिणपंथ की अपनी सरकार से अपेक्षाएं कितनी प्रबल हैं। अगर पहले लॉक डाउन के बाद आनंद विहार बस अड्डे पर घर जाने के लिये जुटी भीड़ पर सरकार बम गिरा देती तभी इस देश का दक्षिणपंथी सोच वाला नागरिक प्रसन्न होता। एक वीडियो में एक अस्पताल की प्रिंसिपल कह रही हैं कि जमाती रोगियों को जंगल में किसी बन्द कोठरी में छोड़ आना चाहिये। वे चाहते हैं कि इस देश के दलित और अल्पसंख्यक दोयम दर्जे के नागरिक बन कर रहें। औरतें सती अनुसूइया के आदर्शों पर चलें और इससे इतर सोच को फैलाने वाले तमाम लोगों को सीधे शूट कर दिया जाए।

आज का दक्षिणपंथ कोई सरकार नहीं, दुनिया के कुछ सुविधा भोगी, सम्पन्न और विचारहीन लोगों की कुंठित महत्वाकांक्षाएं हैं। जिनकी समानता सिर्फ और सिर्फ हिटलर के विचारों से की जा सकती हैं। जो जातीय श्रेष्ठता बोध से ग्रसित था और खुद से असहमत हर व्यक्ति को खत्म कर देना चाहता था। आज की दुनिया कोरोना से नहीं, इस आत्मकेंद्रित और विध्वंसक दक्षिणपंथी विचार के संक्रमण से बीमार है। इस दुनिया में अगर मानवता को बचे रहना है, तो सबसे पहले इस संक्रमण से निबटना पड़ेगा। नहीं तो, दुनिया अपनी बर्बादी का रास्ता भी खुद तैयार करती ही है।

-PUSHYA MITRA

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