रेमन मैग्सेसे अवार्ड मिलने पर भावुक हुए रवीश कुमार, कहा-आपको शुक्रिया, आपका होना ही मेरा होना है

आज आपको शुक्रिया कहने का दिन है. आपका होना ही मेरा होना है. मेरे जैसों का होना है. आज आप दिन भर बधाइयां भेजते रहे. मेरा कंधा कम पड़ गया है. आप सभी अच्छे दर्शकों का शुक्रिया. आपके जैसा दर्शक होना, आज के समय में दुर्लभ होना है. आपने मेरे कार्यक्रमों को देखने के लिए कितना कुछ छोड़ा होगा. हिन्दू मुस्लिम डिबेट नहीं देखते होंगे, एंकर की खूंखार भाषा से दूर रहते होंगे. जब भी सूचना गायब हो जाएगी, सूचना लाने की पत्रकारिता समाप्त हो जाएगी, तब भाषा में हिंसा ही बचेगी. इसलिए आप देखते होंगे कि एंकर ललकार रहे हैं. वो पूछ नहीं रहे हैं, बल्कि पूछने वाले को ललकार रहे हैं. जो पूछता है वह अपना सब कुछ दांव पर लगाता है. वह सत्ता के सामने होता है. ऐसे में पत्रकारिता का काम है उसे सहारा दे ताकि वह और पूछ सके और पूछने पर नुकसान न हो. लेकिन हो रहा है उल्टा. पूछने वाले को देशद्रोही बताया जाता है. आप देखेंगे कि बहुत से लोग इस डर के कारण पूछने से बचते हैं. यह अच्छा नहीं है. सत्ता में भी हमारे ही लोग बैठे हैं. आप चाहें जो कह लें, आज जो चैनलों में हो रहा है वो पत्रकारिता नहीं है. इसलिए कहने का मन कर रहा है कि आपको कोई गिन नहीं सकता है. मुझे ज़ीरो टीआरपी वाला एंकर कह सकता है मगर आप एक दर्शक हैं और आप ज़ीरो नहीं हैं. दर्शक को गिना नहीं जा सकता है. जब तक एक भी दर्शक ऐसा है जो किनारे खड़े होकर चीज़ों को देख रहा है, तब तक तथ्यों के बचे रहने की संभावना है. अगर आप एक भी हैं तो भी आपको बधाई. संख्या से दर्शक तय नहीं होता है. दर्शक बनता है देखने से. देखने के सब्र से. देखने की नज़र से. आप देखिए, कितने सारे चैनल हैं. सब का कटेंट एक सा है.

कभी मैंने प्राइम टाइम में टीवी का कुआं बनाया था. ईंट की जगह टीवी के स्क्रीन लगे हैं. हर चैनल पर एक ही कटेंट है. एक ही ख़बर है. आप चैनल बदल सकते हैं मगर चैनल के बदलने से डिबेट का टॉपिक नहीं बदल जाता है. अनगिनत चैनल का मतलब अनगिनत सूचना नहीं है. अब अनगिनत चैनलों पर एक ही सूचना है, एक ही बहस है. रिमोट से आप चैनल बदल सकते हैं मगर चैनल बदल कर आप नई सूचना हासिल नहीं कर सकते हैं. ऐसा क्यों है, कभी इस पर सोचिएगा. इस तरह एक दर्शक कुएं में घिर जाता है. वह बंद हो गया है. तभी कहता हूं कि आप ऐसे दर्शक नहीं हैं. हर तरफ एक ही कटेंट है. वही टॉपिक है जो बार बार लौट कर आता है. मगर आप लोगों ने अलग देखने का फैसला किया है. आज की भीड़ में अलग होना, अलग दिखना कितना मुश्किल है, मैं समझता हूं, इसलिए आपका शुक्रिया अदा करता हूं. आप चैनलों से घिरे दर्शक की तरह नहीं हैं. आप आज़ाद दर्शक हैं. इस कुएं से डरिए. बाहर निकलिए और देखिए.

फेसबुक पर ट्विटर पर और व्हाट्स एप में आए तमाम मेसेज के लिए शुक्रिया. आपकी खुशी का अंदाज़ा है मुझे. पुरस्कार मेरे नाम का भले है मगर मिला आपको है. उन तमाम हिन्दी पत्रकारों के लिए यह पुरस्कार है जो ज़िलों में कस्बों में पत्रकारिता का सपना देखते हैं. जिन्हें न मौका मिलता है और न पैसा. इसके बाद भी उनके पास जानकारियों का भंडार है. उनके अधूरे सपने भी आज पूरे हुए हैं. आज मुझे हिन्दी पत्रकारिता के कुछ नाम याद आ रहे हैं. प्रभाष जोशी, सुरेंद्र प्रताप सिंह, उदयन शर्मा, धर्मवीर भारती, मनोहर श्याम जोशी, रघुवीर सहाय, राजेंद्र माथुर, कमलेश्वर, आलोक तोमर, मेरे प्रिय अनुपम मिश्र, वेद प्रताप वैदिक और ओम थाणवी, शंभु नाथ शुक्ल, शेष नारायण सिंह. एनडीटीवी के तमाम नए पुराने साथियों का शुक्रिया. इस दफ्तर में 1996 से आ रहा हूं. टीवी का एक सबक सबको याद रखना चाहिए. आप अकेले नहीं बनते हैं. बहुत सारे लोग मिलकर आपको बनाते हैं. बहुत से लोग अब हमारे साथ नहीं हैं मगर जो भी जहां हैं कुछ न कुछ जोड़ कर गया है. सबका नाम तो संभव नहीं है मगर लेना चाहूंगा, मनोरंजन भारती, राजदीप सरदेसाई, शिखा त्रिवेदी, राधिका बोर्डिया, आनिंद्यो चक्रवर्ती, सुनील सैनी, नताशा जोग, चेतन भट्टाचारजी, प्रियदर्शन, सुशील बहुगुणा, सुशील महापात्रा, सर्वप्रिया सांगवान, कर्मवीर, मुन्ने भारती, वृंदा और बानी, शारिक ख़ान, मनहर, रजनीश, दीपक चौबे, मनीष कुमार, रूबीना खान शापू, शिबानी शर्मा, स्मिता चक्रवती, रेणु राव, सुपर्णा सिंह, सोनिया सिंह, वासु, आलोक कुमार, कमाल खान, निहाल किदवई, राजीव पाठक, उमाशंकर सिंह, कादंबिनी शर्मा, निधि कुलपति, अदिती, जया त्रिपाठी, बसंत, भरत, जसबीर, अजय शर्मा, सौमित, परिमल, आशीष भार्गव, मुकेश सिंह सेंगर, शशांक सिंह, रवीश रंजन शुक्ला, अजय सिंह, अनुराग द्वारी, सोहित मिस्र, अभिषेक शर्मा, सुनील कुमार सिंह,हर्षा कुमारी सिंह, विमल मोहन, संजय किशोर, प्रशांत सिसोदिया. देवना द्विवेदी, वंदना, नवनीत, विपुल, दिव्या मट्टू, स्वरलिपि सेनगुप्ता, शिबानी, एहतेशाम, प्रवीण कुमार, रमा रमन दास, प्रवीण अरोड़ा, संजय प्रताप, कुलदीप, अमित, जतिन, धनपाल, नरेंद्र गोडावली, नताशा बधवार, मोहम्मद मुर्सलिन, मनोज कुमार, और दिवंगत जितिन भूटानी. आज जितिन की याद बहुत आ रही है मगर उसके साथ बहुत शूट किया है. एक स्टोरी की तलाश में रात रात भर भटका हूं. अनिल सेठी, प्रदीप चौधरी सुनील कुमार, शाहिद अमीन, सुमित सरकार, चारू गुप्ता, सुव्रिता खत्री, पार्थसारथी गुप्ता, रविकांत ये सभी मेरे बेहतरीन शिक्षक हैं. अपने टीचर को याद रखना चाहिए. आपको याद रहेगा कि आप छात्र हैं. अभी सीखना है. आप सभी को बधाई. आपसे जो प्यार मिला है वो अनमोल है. दुनिया भर में फैले एनडीटीवी के दर्शक आप लाजवाब हैं.

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