समय पर चुनाव कराने की जिद ने बिहार को किया बर्बाद, नीतीश राज में न डॉक्टर, न अस्पताल, न वेंटिलेटर

वे छह कारण जिनकी वजह से बिहार में बेकाबू हो गया कोरोना

इस बुधवार, 22 जुलाई को कोरोना को लेकर बिहार में सुबह से ही परेशान करने वाली खबरें आती रहीं. कोरोना की वजह से पहली बार एक बड़े राजनेता विधान पार्षद सुनील कुमार सिंह की मौ’त हो गई, समस्तीपुर के सिविल सर्जन आरआर झा अकाल कवलित हो गए. बेहद कम टेस्ट के साथ ही कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा 30 हजार के पार चला गया. दोपहर में NMCH, पटना के एक वायरल वीडियो में एक व्यक्ति अपने कोरोना संक्रमित परिजन का शव ऑटो में ले जाता नजर आया.

पिछले कुछ दिनों से बिहार में कोरोना संक्रमण की स्थिति अलार्मिंग हो चली है. सोशल मीडिया पर लगातार ऐसी पोस्ट और वीडियोज वायरल हो रहे हैं. भागलपुर में कोरोना संक्रमित की मौ’त दवा की दुकान पर खड़े-खड़े हो गई, तो दूसरे मरीज की अंत्येष्टि के लिए परिजनों से डेढ़ लाख रुपये मांगे गए. पटना एम्स में अंडर सेक्रेटरी स्तर के अधिकारी को बेड नहीं मिला. खगड़िया में EVM ट्रेनिंग के दौरान प्रधानाध्यापक COVID-19 पॉजिटिव हुए और उनकी जान चली गई. शिवहर में कोरोना संक्रमित दो महिलाओं को होम-आइसोलेशन का आदेश दिया गया, लेकिन मकान मालिक ने उन्हें आधी रात घर से बाहर कर दिया. ऐसी खबरों और कोरोना टेस्ट में लापरवाही से बिगड़ते हालात को देख राज्य में दोबारा लॉकडाउन लगाना पड़ा. केंद्रीय टीम को बिहार की बिगड़ती स्थिति को नियंत्रित करने के लिए हस्तक्षेप करना पड़ा है.

अनलॉक के बाद तेजी से बिगड़े हालात : कोई विश्वास नहीं कर सकता है कि 31 मई को इसी राज्य में सिर्फ 3692 कोरोना संक्रमित थे और इस महामारी से सिर्फ 23 लोगों की मौ’त हुई थी. 16 जुलाई को जब राज्य में दोबारा लॉकडाउन लगाया गया तो कोरोना संक्रमितों की संख्या 20173 हो गई थी और 157 लोगों की इससे मौ’त हो चुकी थी. 22 जुलाई के आंकड़ों के हिसाब से पिछले एक हफ्ते में राज्य में 10 हजार मरीज बढ़ गए हैं, कुल संख्या 30066 हो गई है, जबकि इसी दौरान 51 मरीजों की मृत्यु हो गई है. ऐसे में यह विचार करना जरूरी हो गया है कि आखिर पिछले 50 दिनों में बिहार में कोरोना की स्थिति बेलगाम क्यों हो गई.

मिनिमम टेस्टिंग, मिनिमम ट्रेसिंगलॉकडाउन के पहले चरण में कोरोना संक्रमण के खतरों से जूझने के लिए कोई तैयारी नहीं की गई. न तो टेस्टिंग बढ़ी और न लचर स्वास्थ्य व्यवस्था को कोरोना से लड़ने के लायक बनाया गया. राज्य में अभी भी टेस्टिंग की दर देश में सबसे कम है. आज की तारीख में प्रति 10 लाख लोगों पर 3086 टेस्ट हुए हैं, जबकि जम्मू-कश्मीर जैसा राज्य काफी पहले प्रति 10 लाख लोगों पर 10 हजार से अधिक टेस्ट कर चुके हैं. 13 मई को ही सीएम ने रोजाना 10 हजार टेस्ट करने के लिए कहा था, मगर यह लक्ष्य हासिल करने में स्वास्थ्य विभाग को दो महीने लग गए. 14 जुलाई को यह लक्ष्य हासिल किया गया. एक हफ्ते पहले नीतीश कुमार फिर से रोजाना 20 हजार सैंपल लिए जाने का निर्देश दे चुके हैं. मगर अभी विभाग 10 हजार सैंपल प्रति दिन लेने में ही बेबस है. ऐसे में बड़ी संख्या में मरीज बिना पहचान के बीमार होकर मर रहे हैं और अक्सर मरीजों की मौ’त के बाद सैंपल लिए जा रहे हैं और उन्हें कोरोना संक्रमित बताया जा रहा है. ऐसे में केंद्रीय टीम को भी अधिक से अधिक टेस्टिंग के लिए कहना पड़ गया.

न डॉक्टर, न अस्पताल, न वेंटिलेटर : बिहार में स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति जगजाहिर है. अस्पतालों की व्यवस्था बदहाल है, डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों के 60 फीसदी से अधिक पद खाली हैं, वेंटिलेटरों की बात कौन पूछे, अस्पतालों में ऑक्सीजन तक की समुचित व्यवस्था नहीं है. पिछले दिनों बिहार आई केंद्रीय टीम के सामने राजधानी पटना के एनएमसीएच के अधीक्षक ने साफ-साफ कह दिया था कि हमारे अस्पताल के 447 बेड में से सिर्फ 166 पर ऑक्सीजन की सुविधा है. हम क्या कर सकते हैं.

दुखद यह है कि 13 मार्च से ही कोरोना को लेकर सचेत होने और स्कूल-कॉलेज बंद कराने वाली बिहार सरकार ने अपनी लचर स्वास्थ्य व्यवस्था को सुधारने के लिए पिछले 4 महीने में कुछ भी नहीं किया. इसी वजह से आज भी हम वहीं के वहीं हैं. पर्याप्त सुरक्षा उपकरणों के अभाव में अब तक 50 से अधिक डॉक्टर और सैकड़ों स्वास्थ्यकर्मी संक्रमित हो चुके हैं, इनमें तीन सिविल सर्जन भी हैं. तीन डॉक्टरों की मौ’त हो चुकी है. ऐसे में अब डॉक्टर भी कोरोना मरीजों का इलाज करने से डरते हैं.

समय पर चुनाव कराने की जिद : ऐसा लगता है कि बिहार सरकार की प्राथमिकताओं में कोरोना से लड़ाई के बदले समय से चुनाव कराने की जिद कहीं ऊपर थी. इसलिए लॉकडाउन खत्म होते ही राज्य में ऑनलाइन रैलियां शुरू हो गईं और आज भी बड़े पैमाने पर जारी है. इस वजह से राज्य भाजपा के अध्यक्ष समेत पार्टी के लगभग 125 नेता संक्रमित हो चुके हैं. दूसरे दलों के राजनेता भी बड़ी संख्या में संक्रमित हो रहे हैं. मगर अभी भी सरकार का फोकस समय पर चुनाव कराने पर ही है. इस वजह से बार-बार सोशल डिस्टेंसिंग टूट रही है और संक्रमण बढ़ रहा है. चुनाव आयोग भी तैयारियों में जुटा है, सरकारी कर्मियों की ईवीएम ट्रेनिंग बड़े पैमाने पर हो रही है और इसमें कर्मी संक्रमित हो रहे हैं, उनकी जान जा रही है. अभी भी राज्य के सत्ताधारी दल इस वक्त चुनाव न कराने की अपील करने वालों की खिल्लियां उड़ाते हैं.

शादियां, सामाजिक उत्सव और भोज-भात : राज्य में तेजी से बढ़े संक्रमण के लिए जनता भी कम कसूरवार नहीं है. लॉकडाउन खत्म होते ही ऐसा लगा कि लोगों के सब्र का बांध टूट गया. पूरे राज्य में हर जगह शादियां-मुंडन और श्राद्ध आदि के आयोजन खुलेआम होने लगे. हर जगह सैकड़ों की भीड़ जुटने लगी. ऐसे में संक्रमण भी तेजी से बढ़ने लगा. इस मामले में पटना जिले के एक गांव में हुई एक शादी ने तो तबाही ही ला दी. इस शादी में संदिग्ध होने के बावजूद दूल्हे को लेकर बारात लड़की वाले के यहां पहुंच गई. शादी के अगले दिन दूल्हे की मौ’त हो गई और बाद में बारात में 125 लोग संक्रमित पाए गए. ऐसे मामले राज्य में हर जिले में हुए.

पारदर्शिता का अभाव : कोरोना संक्रमण की लड़ाई में आंकड़ों की पारदर्शिता का बड़ा महत्व है. मगर बिहार में कोरोना संक्रमण को लेकर सरकारी आंकड़े आज भी पारदर्शी नहीं हैं. ऐसा लगता है कि स्वास्थ्य विभाग लगातार आंकड़ों को छिपा रहा है. टेस्ट की रिपोर्ट मिलने में आठ-दस दिन तक लग जाते हैं. संक्रमितों के आंकड़ों के साथ अब मरीज के लोकेशन की जानकारी नहीं दी जाती. राज्य स्तर से लेकर जिला स्तर तक आंकड़ों का बड़ा कंफ्यूजन रहता है. स्वास्थ्य विभाग से जुड़ा कोई भी अधिकारी अब मीडिया से बातचीत करने के लिए तैयार नहीं है. पूरे दिन में एक लिस्ट जारी की जाती है. उसी के आधार पर खबरें बनती हैं. 21 मई से पहले तक स्वास्थ्य विभाग के पूर्व प्रधान सचिव संजय कुमार अपने टि्वटर हैंडर पर लगातार आंकड़े पोस्ट करते थे. मगर उन्हें अचानक हटा दिया गया और अब बिहार में कोरोना से संबंधित आंकड़े पाना टेढ़ी खीर हो गई है.

लीड नहीं लेते मुख्यमंत्री : राज्य में कोरोना संक्रमण के खिलाफ लड़ाई को कौन लीड कर रहा, यह पता नहीं चलता. मुख्यमंत्री कभी इसे फ्रंट से लीड करते नहीं नजर आए. उन्हें कभी किसी अस्पताल की व्यवस्था का निरीक्षण नहीं करते देखा गया. पूरे चार महीने में वो नाम मात्र के लिए बाहर निकले. एक बार जलजमाव की तैयारियां देखने के लिए तो दूसरी दफा विधान परिषद के शपथ ग्रहण कार्यक्रम के लिए. शपथ ग्रहण कार्यक्रम के बाद परिषद के अध्यक्ष के सपरिवार संक्रमित होने की खबर आई तो वो फिर से अपने आवास में कैद हो गए. इस बीच उनके आवास में एक हाईटेक कोविड अस्पताल खोले जाने का भी आदेश जारी हुआ, जो सोशल मीडिया में हुई खिंचाई के बाद निरस्त हो गया. अगर वो खुद इस मामले में फ्रंट पर आकर लीड नहीं लेंगे और सब कुछ अधिकारियों के हाथ में छोड़ देंगे तो हालात बिगड़ेंगे ही. स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय का भी कमोबेश यही हाल है. वो इन दिनों सोशल मीडिया पर लगातार आलोचनाओं का शिकार हो रहे हैं.

PUSHYA MITRA(डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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