दर्जनभर मंत्रियों के सीधे संपर्क में था विकास दुबे, कई नेताओं के बेडरूम तक थी पहुंच

विकास दुबे की राजनीतिकि संपर्कों और नौकरशाही दोनों जगह ही अच्छी पैठ थी। इसी के जरिए वह नौकरशाही पर दवाब बनाता था और अपने काम निकालता था। विकास के पूरे साम्रज्य की यह दो प्रमुख हथियार रहे। कुछ बड़े कद वाले नेताओं के बेडरूम तक विकास की सीधी एंट्री थी। अब उसका एनकाउंटर होने के बाद से यह सभी राज दफन हो गए हैं।

एसटीएफ उसके फोन और कॉल डीटेल रिपोर्ट की बारीकी से जांच करने में लगी है। इसमें जानकारी मिली है कि विकास एक दर्जन से ज्यादा मंत्रियों के सम्पर्क में था जो अलग-अलग राज्यों में स्थापित है। इसके अलावा कुछ उद्यमियों के नम्बर भी मिले हैं। इसी में पुलिस को एक मध्य प्रदेश के एक बड़े नेता का भी नम्बर मिला है।

जब एसटीएफ ने इस नम्बर की पड़ताल शुरू की तो यह भी जानकारी मिली कि उसकी नेता के यहां बेरोकटोक एंट्री थी। नेता को ग्रामीण इलाके में अपना वर्चस्व कायम करना था इसके लिए वह विकास दुबे की मदद भी ले रहा था। हालांकि नाम ज्यादा बड़ा होने के कारण एसटीएफ ने इस मामले में चुप्पी साध ली है और लखनऊ में मौजूद उच्च अधिकारियों को इसकी जानकारी दे दी है।

आपराधिक मामलों पर ज्यादा ध्यान दे
इस मामले में आईजी समेत अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने जांच करने वाली टीम को निर्देशित किया है कि वह आपराधिक गतिविधियों के अलावा जमीन, पैसों से संबंधित जितने मामले हो उन्हें आय से संबंधित विभागों और प्रशासन को रिपोर्ट सौंपी जाए। इकोनॉमिक ऑफेंस में पुलिस ज्यादा हस्ताक्षेप न करे।

विकास दुबे प्रकरण पर हाईकोर्ट ने पीआईएल खारिज की
हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने गैंगस्टर विकास दुबे के पुलिस एनकाउंटर की जांच के लिए न्यायिक आयोग बनाने तथा एनकाउंटर के संबंध में सरकार को दिशानिर्देश जारी करने की माँग वाली पीआईएल खारिज कर दी है।

न्यायामूर्ति पीके जायसवाल और न्यायामूर्ति के एस पवार की खंडपीठ ने सोमवार को यह फैसला एक स्थानीय वकील की जनहित याचिका पर सुनाया। प्रदेश सरकार के अपर महाधि वक्ता विनोद कुमार शाही ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि राज्य सरकर ने पहले ही न्यायिक आयोग गठित कर दिया है और एसआईटी पूरे प्रकरण की जांच कर रही है। ऐसे में यह जनहित याचिका महत्वहीन हो गयी है। उन्होंने इससे संबंधित सरकार की अधिसूचना भी पेश की, जिसका कोर्ट ने अवलोकन किया। इस पर याची नन्दिता भारती ने याचिका को यह कहते हुए वापस लेने की गुजरिश की कि उसे नई याचिका दाखिल करने की इजाजत दी जाय। कोर्ट ने इस आधार पर याचिका खारिज कर दी और कहा कि अगर भविष्य में मौका पड़े तो वे नयी याचिका दाखिल कर सकेंगी।

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