मांझी का महागठबंधन से नाता तोड़ते ही सुलझा सीट शेयरिंग फॉर्मूला! लेफ्ट पार्टी की हुई एंट्री

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बिहार विधानसभा चुनाव का भले ही औपचारिक ऐलान न हुआ हो, लेकिन सियासी समीकरण किए जाने लगे हैं. जीतन राम मांझी के अलग होते ही महागठबंधन के सहयोगी दलों की तस्वीर साफ हो गई. आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन में कांग्रेस, आरएलएसपी, वीआईपी पार्टी पहले से हैं और अब वामपंथी दलों के भी शामिल होने की पटकथा लिखी जा चुकी है. इस तरह से सीट शेयरिंग का फॉर्मूला भी महागठबंधन में करीब-करीब तय माना जा रहा है.  

महागठबंधन पिछली बार की तुलना में इस बार काफी अलग है. 2015 के चुनाव में आरजेडी और कांग्रेस के साथ-साथ जेडीयू महागठबंधन का हिस्सा थी. जेडीयू-आरजेडी 101-101 सीटों पर तो कांग्रेस 41 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. इस बार समीकरण बदल चुका है. जेडीयू अब एनडीए का हिस्सा है और मांझी भी फिर नीतीश कुमार के साथ खड़े हैं. वहीं, महागठबंधन में उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी और मुकेश सहनी की वीआईपी की एंट्री हो चुकी है और वामपंथी दलों को शामिल करने की रणनीति भी तय हो गई है.   

जीतन राम मांझी के अलग होते ही बिहार वामपंथी दल सीपीआई, सीपीएम और सीपीआई (माले) महागठबंधन के सहयोगी के तौर पर चुनावी मैदान में उतरेंगे. वामपंथी दलों के नेताओं ने आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह से मुलाकात की थी. जगदानंद सिंह को तेजस्वी यादव ने अन्य दलों के साथ गठबंधन से संबंधित बातचीत के लिए अधिकृत किया. सीपीआई और सीपीएम पहले भी आरजेडी के साथ मिलकर चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन सीपीआई (माले) पहली बार गठबंधन का हिस्सा होगी. 

दरअसल, महागठबंधन में जीतन राम मांझी के रहते हुए वामपंथी दलों को सीट देने का फॉर्मूला तय नहीं हो पा रहा था. कांग्रेस और आरजेडी अपने-अपने कोटे की सीट कम करने को तैयार नहीं थे. ऐसे में अब मांझी के जाने के बाद महागठबंधन में सीटों के बंटवारे की अड़चनें कम हो गई हैं, क्योंकि मांझी कोटे को दी जाने वाली सीटें अब वामपंथी दलों को देकर साधने की कवायद की जा सकती है. 

सीट शेयरिंग का फॉर्मूला महागठबंधन में कांग्रेस की तरफ से ज्यादा सीटों की मांग की जा रही है. कांग्रेस विधायक दल के नेता सदानंद सिंह ने इस बार 80 सीटों की डिमांड रखी है. दूसरी तरफ आरजेडी भी 150 से 160 से सीटों पर लड़ने का मन बना रखा है. ऐसे में यह भी माना जा रहा है कि बिहार में कांग्रेस और आरजेडी के बीच सीट बंटवारा होगा और उसके बाद फिर दोनों अपने-अपने फ्रेंडली सहयोगी दलों को अपने-अपने कोटे से सीट देंगे. 

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