मैथिली फिल्म नमोनारायण पर लगा स्क्रीप्ट चोरी का आरोप, आपत्ति करने वालों को किया जा रहा ट्रोल

PATNA : किसी भी भाषा के समृद्धि के आकलन का एक मानदंड है उसका साहित्य। साहित्य विभिन विधा के लेखकों के द्वारा सृजित होकर भाषा-भाषियों के गौरव और लेखक के लिए सम्मान एवं आय का संसाधन भी होता है। स्पष्टत: जो कॉपीराइट एक्ट से नियमवद्ध भी है। अतएव, लेखक की रचना का प्रकाशन, वितरण, अनुवाद अन्य विधा जैसे फिल्म में रुपांतरण के लिए लेखक अथवा उसके वारिश से लिखित अनुमति आवश्यक है। अन्यथा यह लेखकीय अधिकार का हनन है जो अनैतिक अनुचित होने के साथ साथ कापीराइट एक्ट का उल्लंघन है, अवएव अवैध है।

वारिस रूपा झा का कहना है कि- विकास जी अमूमन एक कलाकार से ऐसी अपेक्षा रहती है कि वह दूसरे कलाकार के मौलिक अधिकारों का हनन नहीं करेगा. अपने लाभ के लिए दूसरे कलाकार की कृति का बिना अनुमति लिए प्रयोग नहीं करेगा. आपसे एक साल पहले हमारी मौखिक व लिखित बातचीत हो चुकी थी कि आप अनुमति लिए बिना, और रायल्टी दिए बिना , मेरे दादाजी हरिमोहन झा की किसी भी रचना का, किसी भी प्रकार से, कहीं भी प्रयोग नहीं कर सकते हैं. आप पहले भी हरिमोहन झा की कहानी “कवि जी ” पर बिना अनुमति लिए कवि कल्पना लघु फिल्म बना चुके हैं. और अब आदर्श भोजन पर नमोनारायण.! आपने मेरी भलमनसाहत का अनुचित फायदा उठाया और मुझे कानूनी उपाय अपनाने को बाध्य किया हैं. ये कैसी मैथिली सेवा है जिसका आप दावा कर रहे हैं.?? आप केवल अपनी सेवा कर रहे हैं, वो भी हरिमोहनझा की रचनाऐं चुरा कर. क्यों आप हर बार हरिमोहन झा की ही रचनाऐं चुराना चाहते हैं.???? क्योंकि आप जानते हैं कि केवल इनकी रचनाऐं आपको आसानी से मैथिल समाज में लोकप्रियता दिला सकती हैं. लेकिन आप लेखक को न इसकी कीमत, न इसका श्रेय देना चाहते हैं. और तो और, फिल्म के आरंभ में हरिमोहन झा को हरिमोहन झा की ही रचना Dedicate कर के अपनी चोरी के भार से मुक्त होना चाहते हैं..?? तेरा तुझ को अर्पण ..क्या लागे है मोरा… शायद यही सोच रहे होंगे आप ?!

maithili movie namo narayan

हरिमोहन झा मैथिली भाषा के लोकप्रिय रचनाकार हैं। कुछ माह पहले उनकी कहानी ‘कविजी’ पर विकास झा ने कवि कल्पना नामक लघु फिल्म बनाई जो यू ट्यूब पर अपलोडेड है। फिल्म में निर्माता निर्देशक ने कथा क उतर्राद्ध को विषय बनाया है। फिल्म में चरित्रों के नाम उनका शील, कथानक, राइमंग एवं निष्कर्ष कथा से ही लिए गए हैं। फिर भी फिल्म के क्रेडिट में हरिमोहन झा का नाम नहीं है। जाहिर है अनुमति भी नहीं ली गई है।

अब उसी निर्देशक ने हरिमोहन झा की दूसरी कहानी आदर्श भोजन पर आधारित नमो नारायण नाम से लघु फिल्म बनाई है। जिसका टीजर सोशल मीडिया पर प्रसारित है। अनुमति इस बार भी नहीं ली गई है। हरिमोहन झा की वारिस उनकी पौत्री है जो उनकी रचनाओं की रायल्टी साहित्य अकादेमी, राजकमल प्रकाशन, अंतिका प्रकाशन…से प्राप्त करती रही है। उन्होने निर्देशक विकास झा को कानूनी नोटिकस किया तो एक समूह ने उन्हें ट्रोल करना आरम्भ कर दिया कि उसका यह आचरण भले घर की महिला के विपरीत है, कि वह अपने दादा की वरसी नहीं मनाती है, कि वह हरिमोहन झा की अप्रकाशित रचनाओं को नहीं छपवाती है, कि वह भाषा के विकास में रोड़े अटकाती है, कि लेखक की रचना उनकी बपौती नहीं सारे समाज की ह। मैने वारिस के अधिकार का समर्थन किया तो एक आमंत्रित पक्षकार, भोज खाकर समर्थन करने वाला कठपिंगल कहा गया। निर्देशक विकास झा ने तो मैं कितने पानी में हूं इसकी पैमाइश तक कर डाली।

Maithili movie Kavi Kalpna

खैर मुद्दा मैं नहीं मुद्दा लक का अधिकार है और प्रश्न है कि क्या भाषा की संवद्धना लेखक को नजरअंदाज करके, बिना अनुमति के उसकी रचना का उपयोग करके, उसे क्रेडिट तक ना देकर और वारिस के आपत्ति करने पर उसकी लानत मलानत कर के दिया जाता है? क्या कोई भाषा अपने लेखक के सम्मान और अधिकार का हनन करके समुन्नत भी हो सकता है? दलील यह भी दी जा रही है कि विकास झा की यह दोनो लघु फिल्में व्यावसायिक नहीं है। परंतु इसे जिस प्लेट फार्म पर अपलोड किया गया है। वह कामर्शियल है। यह कितने व्यवसाय करती है यह सवाल बेमानी है। आप की फिल्मों पर आपकी कापीराइट है, लेकिन जिस रचना के आधार पर आपने फिल्में बनाई उसका कोई एक्ट नहीं। क्रेडिट तक राइट नहीं। यानी लेखक की रचना तो बाबाजी की फूलवारी है। आखिर क्यों?

लेखक : कुणाल, वरिष्ठ रंगकर्मी, कई लघु मैथिली फिल्मों का निर्माण कर चुके हैं(इस मुद्दे पर अगर आपमे से कोई अपना विचार रखना चाहे तो उनका स्वागत है [email protected])

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