रिक्शा चालक के बेटे को घर में घुसने नहीं देता था कोई, मेहनत कर बने IAS अफसर

ये एक ऐसे बच्चे की कहानी है जिसके दिल में ऐसी चोट लगी कि बड़े होकर वह IAS अधिकारी बन गए। इनकी कहानी हर किसी को जरूर पढ़नी चाहिए। दरअसल, कहानी बनारस की सड़क से शुरू होती है। यहां सड़क पर एक बच्चा खेल रहा था। वह अपनी धुन में व्यस्त था। खेलते-खेलते वह बच्चा अपने ही एक दोस्त के घर में चला गया। लेकिन यहां इस बच्चे के साथ जो हुआ उस घटना से पूरी जिंदगी बदल गई। ये बच्चा आज IAS अधिकारी है…कभी इसे दोस्त के पिता ने घर से धक्के मारकर बाहर निकाल दिया था।

बच्चा जब अपने दोस्त के घर पहुंचा तो जैसे ही उस दोस्त के पिता ने इस बच्चे को घर में देखा वो गुस्से से लाल-पीले हो गए। दोस्त के पापा बच्चे पर चीखने चिल्लाने लगे। वह जोर-जोर से चीखने लगे कि तुम हमारे घर में कैसे घुस आए? तुमने अपनी औकात देखी है? तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे घर में आने की? तुम जानते हो तुम्हारा बैकग्राउंड क्या है ? तुम्हारा बैक-ग्राउंड अलग है और हमारा अलग। दोस्त के पिता ने बच्चे को ऊंची आवाज में कहा कि तुम अपने बैक-ग्राउंड वालों के साथ उठा-बैठा करो…. ये कहकर दोस्त के पिता ने उस बच्चे को बाहर निकाल दिया।

दोस्त के पिता की ये हरकत बच्चे को समझ ही नहीं आई। वह समझ ही नहीं पा रहा था कि आखिर उसने ऐसा क्या गलत कर दिया। उसे लगा कि दूसरे बच्चों की तरह ही वो भी अपने एक दोस्त के साथ खेलते-खेलते दोस्त के घर में चला गया था। दोस्तों के घर में तो हर बच्चा जाता है , फिर उसने क्या गलत किया ? बच्चे के मन में दोस्त के पिता द्वारा कही गई बैकग्राउंड वाली बात याद आई।

उसने ये बात जानने के लिए अपने ही घर के एक पड़ोसी के पास गया, जो काफी पढ़ा-लिखा था। किसी बड़ी परीक्षा की तैयारी भी कर रहा था । उस पड़ोसी ने बच्चे को वो सारी बात बताई जो वह जानना चाहता था। लड़के को अब उसका जवाब मिल चुका था। उसे समझ आ गया था कि वह गरीब है, उसके पिता रिक्शा चलाते हैं और उसका दोस्त अमीर है। उस लड़के के मन में एक सवाल और था, उसने पूछा- इस बैक-ग्राउंड को बदलने के लिए क्या करना होगा? पड़ोसी ने कहा- IAS अफसर बन जाओ।

शायद मजाक में या फिर बच्चे का उस समय दिल खुश करने के लिए ये बात कही थी। लेकिन , इस बात को बच्चे ने काफी गंभीरता से लिया था। उसके दिलोदिमाग पर इस बात ने गहरी छाप छोड़ी । 6वीं क्लास में पढ़ रहे उस बच्चे ने IAS बनने की ठान ली। उसने ठान लिया कि वह हर हाल में IAS ऑफिसर बनेगा। इके बाद से बच्चे ने जीतोड़ मेहनत शुरू की। और आखिरकार उसने IAS बनकर सबके मुंह पर चमाचा मारा। ये सच्ची कहानी है कि IAS गोविन्द जायसवाल की। जिनके साथ बचपन में हुए इस घटना ने एक अफसर बना दिया। रिक्शा चलाने वाले एक गरीब परिवार में जन्मे गोविन्द जायसवाल ने अपने पहले प्रयास में ही आईएएस की परीक्षा पास कर ली थी। आज वो एक कामयाब और जानेमाने अफसर है।

गोविन्द के पिता नारायण जायसवाल बनारस में रिक्शा चलते थे। रिक्शा ही उनकी कमाई का एक मात्र साधन था। रिक्शे के दम पर ही सारा घर-परिवार चलता था। गरीबी ऐसी थी कि परिवार के सारे पांचों सदस्य बस एक ही कमरे में रहते थे। पहनने के लिए ठीक कपडे भी नहीं थे । गोविन्द की मां बचपन में गुजर गई थीं। तीन बहनें गोविन्द की देखभाल करती पिता सारा दिन रिक्शा चलाते , फिर भी ज्यादा कुछ कमाई नहीं होती थी। बड़ी मुश्किल से दिन कटते थे। बड़ी-बड़ी मुश्किलें झेलकर पिता ने गोविन्द की पढ़ाई जारी रखी। चारों बच्चों की पढ़ाई और खर्चे के लिए पिता ने दिन-रात मेहनत की । कड़ाके की सर्दी हो, तेज़ गर्मी, या फिर ज़ोरदार बरसात, पिता ने रिक्शा चलाया और बच्चों का पेट भरा। एक दिन जब गोविन्द ने ये देखा कि तेज बुखार के बावजूद उसके पिता रिक्शा लेकर चले गए तब उसका ये संकल्प और भी मजबूत हो गया कि उसे किसी भी कीमत पर आईएएस बनना है। बचपन से ही गोविन्द ने कभी भी पिता और बहनों को निराश नहीं किया। भले ही उसके पास दूसरे बच्चों जैसी सुविधाएं ना हो उसने खूब मन लगाकर पढ़ाई की और हर परीक्षा में अव्वल नंबर लाए।

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