जिस यूनिवर्सिटी में वशिष्ठ बाबू Phd करने पहुंचे वहां के लोग नहीं जानते कि उसका एक होनहार छात्र चला गया

बर्कली को नहीं पता कि उनका एक प्रतिभाशाली छात्र दुनिया से चला गया है। दरअसल साठ के दशक का कोई नहीं बचा है। गणित विभाग में पीढ़ियों का बदलाव आ गया है। आज वशिष्ठ नारायण सिंह के गुज़र जाने का दुखद समाचार सुना तो उनके गणित विभाग में चला गया। हो सकता है तब यह इमारत ही नहीं हो और गणित की पढ़ाई कहीं और होती हो। पर मुझे अच्छा लगा। उनकी आत्मा को शांति मिलेगी। पहली तस्वीर में जो बड़ी से इमारत दिख रही है उसी में गणित विभाग। शानदार विभाग है। यहाँ के लोगों से पूछा तो उनके बारे में कोई जानकारी नहीं थी। पढ़ाने वालों की तस्वीरों में दो भारतीय भी दिखे।

संतोष कुमार सिंह के पोस्ट से पता चला कि वशिष्ठ नारायण सिंह नहीं रहे। उनका पार्थिव शरीर काफ़ी देर तक अस्पताल के गलियारे में पड़ा रहा। एंबुलेंस नहीं मिला।

1960 के दशक में जिस यूनिवर्सिटी से वशिष्ठ नारायण सिंह ने पी एच डी की थी, वहाँ आज ही पहुँचा हूँ। यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया बर्कली।

1861 में यह यूनिवर्सिटी शुरू हुई थी जिस साल ग़ुलाम भारत में भारतीय दंड संहिता शुरू हुई थी। वशिष्ठ नारायण सिंह की यूनिवर्सिटी दुनिया की श्रेष्ठ यूनिवर्सिटी में से एक है। वहाँ पर साठ के दशक में कोई भोजपुर के बसंतपुर गाँव से पहुँच कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहा होगा, यह बात अभिशप्त हिन्दी प्रदेश बिहार के लिए किसी काल्पनिक कहानी से कम नहीं है।

इस यूनिवर्सिटी की भव्यता आज भी क़ायम है। सरकारी है। दुनिया भर के मुल्कों के छात्र नज़र आ रहे हैं। यहाँ पढ़ने का अनुभव ही शानदार होगा।

वशिष्ठ नारायण सिंह की यूनिवर्सिटी से उन्हें श्रद्धांजलि ।

रविश कुमार, NDTV

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