बटुकेश्वर दत्त के नाम पर रखा जाएगा वर्द्धमान रेलवे स्टेशन का नया नाम, मोदी सरकार ने किया ऐलान

बिहार के लाल और स्वतंत्रता सेनानी बटुकेश्वर दत्त के नाम पर वर्द्धमान रेलवे स्टेशन का नया नाम रखा जाएगा। इसको लेकर केंद्र की मोदी सरकार ने प्रस्ताव पारित किया है। बटुकेश्वर दत्त का जीवन आजादी के बाद लगभग पटना में बीता।

स्टेशन के नामकरण पर भैरव लाल दास कहते हैं कि खुशी सबको है। मुझे कुछ अधिक है। विप्लवी बटुकेश्वर दत्त के नाम पर पश्चिम बंगाल का वर्द्धमान रेल स्टेशन का नामाकरण होगा। 20 जुलाई, 2019 को, उनकी पुण्य तिथि के अवसर पर, भारत सरकार द्वारा इसकी घोषणा की गई है। देश भर के समाचार पत्रों में इसे स्था‍न दिया गया है। दो घटनाओं का वर्णन आवश्यक है क्योंकि आज भारत सरकार ने भगत सिंह के अनन्य सहयोगी बटुकेश्वर दत्त को प्रतिष्ठित किया है। जब मैं ‘विप्लवी बटुकेश्वर दत्त’ किताब लिख रहा था, दत्त साहब के पैतृक गांव ‘ओआड़ी’ जाने का अवसर मिला था। वहां के इतिहास के बारे में फिर कभी।

batukeswar dutt

ओआड़ी में एक हाई स्कूल है और मैं वहां गया। जिज्ञासा थी कि यहां के बच्चे बटुकेश्वर दत्त के जीवन और संघर्ष से क्या‍ प्रेरणा ले रहे हैं। सभी छात्र और सभी शिक्षक बांग्लाभाषी थे। प्रधानाध्यापक कक्ष में गया। भारत के महान लोगों की तस्वीरों से कक्ष भरा हुआ था। मैंने पूछा कि इसी गांव के बटुकेश्वर दत्त थे और उनकी फोटो आपके कक्ष में नहीं है? शुरू में बांग्ला में कुछ बोले। फिर टूटी-फूटी हिन्दी्में कि यदि कोई देगा तो लगा देंगे। एक हिन्दी जाननेवाले शिक्षक के सहयोग से मैं बारहवीं कक्षा में गया। छात्र-छात्राओं से जानना चाहा कि उपस्थित लोग दत्त साहब के बारे में पांच वाक्य बोलें। कई छात्रों ने शुरू किया- दत्त साहब इसी गांव के थे, भगत सिंह के सहयोगी थे और सेंट्रल असेम्बली में बम फेंका था। इसके आगे कुछ नहीं और कोई नहीं। मैंने इतिहास किताब के पृष्ठ संख्या का उल्लेख करते हुए कहा कि आपलोग क्यों नहीं पढ़ते हैं, इसमें बहुत कुछ लिखा हुआ है। वहां से चलकर वर्द्धमान के कमिश्नर से मिलने आया। बिना अनुमति के और बिना समय लिए पहुंच गया था।

कागज पर नाम लिखकर दिया और कुछ देर बाद बुलावा भी आ गया। मैंने दत्त साहब के जन्म स्थली को विकसित करने का अनुरोध किया। साथ ही, बंगाल विभाजन के बाद हुए विद्रोह में इस गांव की भूमिका और तीन दिन-तीन रात तक भगत सिंह के इस गांव में छिपने का इतिहास बताया। कमिश्नर साहब सुने। मुझे लगा बेमन से सुन रहे हैं। लेकिन तीर निशाने पर लगी थी। एक और इतिहास बन गया। वर्द्धमान स्टेशन का नाम बटुकेश्वर दत्त के नाम पर। कितने लोगों को पता है और किसे अभिरुचि है कि साण्डर्स मर्डर के बाद भगत सिंह कलकत्ता आए थे। जब उन्हें लगा कि यहां भी खतरा है तो भगत सिंह को साथ लेकर बटुकेश्वर दत्त वर्द्धमान स्टेशन तक आए। लेकिन यहां उतरे नहीं। क्योंकि यहां पर लोगों की आवाजाही अधिक रहती थी। वे बाद के ‘खाना’ नामक स्टेशन पर उतरे जहां यात्री सुविधा नहीं थी। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त वहां से 35 किलोमीटर पैदल चलकर ओआड़ी पहुंचे थे। भारत सरकार को धन्यवाद। और मैं यहां पटना से बैठे-बैठे ही गुरुजी मालविंदरजीत सिंह वड़ाईच साहब को सलाम भेजता हूं।

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