जयंती पर शहीद भगत सिंह को शत-शत नमन, आपका सदैव ऋणी रहेंगे भारत के लोग

28 सितंबर 1907 को जन्मे भारत की आजादी के अमर नायक भगत सिंह को सुखदेव और राजगुरु के साथ लाहौर जेल में फांसी पर लटका दिया गया था। भगत सिंह के क्रांतिकारी जीवन के बारे में हम काफी-कुछ जानते हैं। इसलिए आज हम उनके निजी जीवन के बारे में बात करेंगे। जब एक हिन्दी फिल्म में भगत सिंह के प्यार के काल्पनिक सीन दिखाए गए तो उस पर काफी विवाद हुआ था। इस बात का कोई ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं मिलता कि भगत सिंह की कोई प्रेमिका थी। कुछ इतिहासकार ये जरूर मानते हैं कि भगत सिंह के परिवार वालों ने 16 साल की उम्र में ही उनकी शादी तय करने की कोशिश की थी। इतना ही नहीं इस बात से नाराज होकर भगत सिंह अपने घर से भागकर कानपुर चले गए थे।

भगत सिंह के संपूर्ण दस्तावेज के संपादक प्रोफेसर चमन लाल लिखते हैं, “भगत सिंह ने 1923 में एफए की परीक्षा सोलह वर्ष की उम्र में पास कर ली थी वो बीए में दाखिल हुए। तभी परिवार ने उन पर विवाह करवाने का दबाव डाला, विशेषतः दादी जय कौर द्वारा जिनके मन में पोते के प्रति बहुत लाड़ था। संभवतः मानांवाला गांव का एक समृद्ध परिवार भगत सिंह को देखने आया और सगाई के लिए तारीख भी निश्चित कर दी गई।” भगत सिंह के पिता किशन सिंह, चाचा अजीत सिंह और स्वर्ण सिंह क्रांतिकारी थे। गदर पार्टी के करतार सिंह सराभा को भगत सिंह अपना आदर्श मानते थे। वो किशोरावस्था में ही तय कर चुके थे कि वो अपना जीवन देश की आजादी की लड़ाई को समर्पित करेंगे।

भगत सिंह ने शादी किए जाने के बात से नाराज होकर घर छोड़ दिया। घर से जाते समय उन्होंने अपने पिता को पत्र लिखकर कहा, “मेरी ज़िन्दगी बड़े मकसद यानी आज़ादी-ए-हिन्द के असूल के लिए समर्पित हो चुकी है। इसलिए मेरी ज़िन्दगी में आराम और दुनियावी ख्वाहिशों और आकर्षण नहीं हैं।” भगत सिंह ने अपने पत्र में घर छोड़ने के लिए अपने पिता से माफी मांगते हुए लिखा है, “उम्मीद है कि आप मुझे माफ फरमाएंगे।”

भगत सिंह कानपुर जयचंद्र विद्यालंकार से “प्रताप” के संपादक और स्वतंत्रता सेनानी गणेश शंकर विद्यार्थी के नाम परिचय पत्र लेकर गये थे। कानपुर प्रवास के दौरान भगत सिंह ने अन्य कार्यों के साथ ही “प्रताप” के संपादकीय विभाग में भी काम किया था। वो बलवंत उपनाम से अखबार में लेख भी लिखते थे। इस बीच उनके घरवाले उनके गायब होने से परेशान हो गए। खासकर उनकी दादी की तबीयत उनके जाने के बाद बीमार पड़ गयीं। भगत सिंह के पिता किशन सिंह ने लाला लाजपत राय के अखबार ‘बंदे मातरम’ में पत्र छपवाकर भगत से घर लौट आने का अनुरोध किया। चमन लाल लिखते हैं, “जब किशन सिंह को भगत सिंह के दोस्तों से पता चला कि वो कानपुर में हैं तो उन्होंने अपने मित्र व कांग्रेसी नेता हसरत मोहानी को पत्र लिखा और भगत सिंह को विवाह का आग्रह न करने का आश्वासन दिया, तब कई महीने बाद भगत सिंह घर लौटे।”

घर लौटने के बाद भी भगत सिंह ने क्रांतिकारी गतिविधियां जारी रखीं। इस दौरान ही भगत सिंह राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खां, रोशन, चंद्रशेखर आजाद के हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन पार्टी के सदस्य बन गए। बिस्मिल, अशफाक और रोशन को फांसी दिए जाने के बाद संगठन का पूरा जिम्मा आजाद और भगत पर ही आ गया था। 8 अप्रैल 1929 में को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली स्थित सेंट्रल एसेंबली में एक कम क्षमता वाला बम फेंका। भगत और बटुकेश्वर पब्लिक सेफ्टी बिल का प्रतीकात्मक विरोध करना चाहते थे। इसीलिए हल्के बम को भी एसेंबली में ऐसी जगह फेंका जहां कोई सदस्य नहीं बैठा था। बम फेंकने के साथ ही भगत और बटुकेश्वर ने “इंकलाब जिंदाबाद” का नारा लगाते हुए पर्चे फेंके। दोनों ने बगैर किसी प्रतिरोध के गिरफ्तारी दे दी। भगत सिंह को एसेंबली बम कांड में आजीवन कारावास की सजा हुई थी लेकिन जेल में रहने के दौरान ही उन पर सांडर्स हत्या से जुड़े लाहौर षडयंत्र कांड का भी मुकदमा चला। आखिरकार ब्रिटिश अदालत ने भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सुनायी। भगत सिंह और साथियों को 24 मार्च 1931 को फांसी दी जानी थी लेकिन ब्रिटिश प्रशासन ने तय तारीख से पहले ही 23 मार्च 1931 को शाम 7.30 बजे फांसी दे दी।

चमन लाल द्वारा संपादित भगत सिंह की जेल डायरी में उन्होंने फ्रेडरिक एंगेल्स की किताब “परिवार राज्य और निजी संपत्ति” से भी नोट्स ले रखे थे। अपनी डायरी में भगत ने एंगेल्स किताब के हवाले से लिखा है, “विवाह के दोष- ख़ासतौर से एक दीर्घकालिक लगाव, दस मामलों में से नौ में, व्यभिचार का एक पक्का प्रशिक्षण स्कूल होता है। (पृष्ठ 91)।”

भगत सिंह ने अपनी डायरी में नोट्स लिया है, “समाजवादी क्रान्ति और विवाह संस्था – अब हम एक ऐसी सामाजिक क्रान्ति की ओर अग्रसर हो रहे हैं जिसके परिणामस्वरूप एकनिष्ठ विवाह का वर्तमान आर्थिक आधार उतने ही निश्चित रूप से मिट जायेगा, जितने निश्चित रूप से एकनिष्ठ विवाह के अनुपूरक का, वेश्यावृत्ति का आर्थिक आधार मिट जायेगा। एकनिष्ठ विवाह की प्रथा एक व्यक्ति के – और वह भी एक पुरुष के – हाथों में बहुत-सा धन एकत्रित हो जाने के कारण और इस इच्छा के फलस्वरूप उत्पन्न हुई थी कि वह यह धन किसी दूसरे की सन्तान के लिए नहीं, केवल अपनी सन्तान के लिए छोड़ जाये। इस उद्देश्य के लिए स्त्री की एकनिष्ठता आवश्यक थी, पुरुष की नहीं। इसलिए नारी की एकनिष्ठता से पुरुष के खुले या छिपे बहुपत्नीत्व में कोई बाधा नहीं पड़ती थी।

परन्तु आने वाली सामाजिक क्रान्ति स्थायी दायाद्य धन.सम्पदा के अधिकतर भाग को – यानी उत्पादन के साधनों को – सामाजिक सम्पित्त बना देगी और ऐसा करके सम्पत्ति की विरासत के बारे में इस सारी चिन्ता को अल्पतम कर देगी। पर एकनिष्ठ विवाह चूँकि आर्थिक कारणों से उत्पन्न हुआ था, इसलिए क्या इन कारणों के मिट जाने पर वह भी मिट जायेगा?”

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