बिहार का एक स्कूल ऐसा भी, प्रणाम करने के बाद प्रवेश करते हैं बच्चे, इसके सामने PVT स्कूल फेल

PATNA/BEGUSARAI : स्कूल में घुसने के पहले छात्र करते हैं प्रणाम, बेगूसराय के एक विद्यालय में ज्ञान के साथ मिलता है संस्कार और अनुशासन, हर दिन आते है छह सौ बच्चे : बेगूसराय विभिन्न स्कूलों में शिक्षा व्यवस्था में जबरदस्त बदलाव हो रहा है। विद्यालयों में अब प्रार्थना के बदले चेतना सत्र होती है। जिसमें अलग-अलग दिन में प्रार्थना के साथ बिहार गीत का आयोजन और सारी गतिविधि होता है।

दूसरी ओर कई विद्यालय में ना सिर्फ गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जाती है। बल्कि संस्कार और अनुशासन भी दिखाए जाते हैं। स्कूल के बच्चे विद्यालय को सिर्फ शिक्षा ग्रहण का केंद्र नहीं, बल्कि शिक्षा का मंदिर मानते हैं। प्रवेश करने से पहले मंदिर की तरह झुक कर प्रणाम करते हैं।ऐसा ही नजारा आज दिखा मटिहानी प्रखंड के उत्क्रमित माध्यमिक विद्यालय बदलपुरा में। टीम 8:50 बजे उत्क्रमित माध्यमिक विद्यालय बदलपुरा के द्वारा मुख्य गेट पर पहुंची तो लगभग सभी शिक्षक आ चुके थे, बच्चे भी काफी तेजी से आते दिखे।

जो भी बच्चे आ रहे थे, वह मुख्य द्वार पर ही रुक कर पहले नमन कर रहे थे। इसके बाद ही कैंपस में प्रवेश करते थे। कैंपस में प्रवेश करने पर भी जो शिक्षक सामने मिले उन्हें पैर छूकर प्रणाम किया जा रहा था। इसके बाद ही वर्ग कक्ष में एंट्री होती थी।विद्यालय के प्रिंसिपल छुट्टी पर थे। लेकिन 9 बजे तक ही सभी शिक्षक विद्यालय आ गए थे। करीब 30 मिनट तक सफाई एवं बच्चों की अन्य गतिविधि चली 9:30 बजते ही जब प्रार्थना की घंटी बजी तो सभी बच्चे कतारबद्ध होकर खड़े हो गए।

प्रार्थना और गौरव गान के बाद बच्चों ने संविधान की प्रस्तावना का पाठ और शारीरिक गतिविधि की। प्रार्थना और प्रस्तावना के पाठ में सभी शिक्षक-शिक्षिका भी शामिल हुए। ठीक 9:50 बजे बच्चे अपने वर्ग कक्ष की ओर गए और शिक्षण गतिविधि शुरू हो गई।बड़ी बात है कि 824 नामांकित बच्चों में से छह सौ अधिक बच्चे प्रत्येक दिन विद्यालय आते हैं। विद्यालय में जहां अलग रसोई कक्ष बनाए गए हैं। वहीं, गर्ल एवं बॉयज के लिए अलग-अलग शौचालय की व्यवस्था है। बच्चे बर्तन विद्यालय में ही लगे मोटर के पानी से धोते हैं तो पीने के लिए भी स्वच्छ पानी की व्यवस्था है।

ऑन द रिकॉर्ड बच्चे और शिक्षक तो कुछ बोलने के लिए तैयार नहीं थे। लेकिन ऑफ द रिकॉर्ड इन लोगों का कहना है कि हमारा विद्यालय सिर्फ विद्यालय नहीं, शिक्षा का मंदिर है। अपने देवता के मंदिर में प्रवेश करने से पहले नमन करते हैं। फिर शिक्षा के मंदिर को क्यों नहीं नमन करें। यह विद्यालय के.के. पाठक के आने के बाद नहीं, बल्कि यह आदर्श व्यवस्था बहुत पहले से है।

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