मनचाहा वरदान देती है मुज़्ज़फरपुर की माँ छिन्नमस्तिका, सिद्ध पीठ के रूप में विश्व विख्यात है

मुज़फ़्फ़रपुर के मुख्यालय से 14 किलोमीटर दूर कांटी में एनएच 28 के किनारे स्थित मां छिन्नमस्तिका मंदिर सिद्ध पीठ के रूप में विख्यात है। यह मुजफ्फरपुर ही नहीं, विभिन्न सुदूर क्षेत्रों के लोगों की भी आस्था का केंद्र है। यहां सालों भर भारत और नेपाल के भक्तों का तांता लगा रहता है। यहां दूर-दूर से लोग श्रद्धा के साथ अपनी मुरादें लेकर आते हैं। ऐसा कहा जाता है कि सच्चे मन से जो भी मां की उपासना व साधना करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

तंत्र विज्ञान पद्धति पर हुआ मंदिर का निर्माण

कहते हैं कि मंदिर का निर्माण पूरी तरह तंत्र विज्ञान पद्धति पर आधारित है। इसके गुंबज नवग्रहों के तथा ऊपर की आठ सीढि़यां पांच तत्व व तीन गुणों की प्रतीक हैं। यह मंदिर देश का दूसरा व राज्य का पहला मां छिन्नमस्तिका का मंदिर है। मंदिर का भूमि-पूजन वर्ष 2000 में और प्राण-प्रतिष्ठा 2003 में हुई। यहां रजरप्पा से पूजित त्रिशूल की स्थापना की गई है।

देवी की वैष्णव रूप में होती पूजा

लोग बताते हैं कि मंदिर की कई विशेषताएं हैं। वाम स्वरूपा व बलि प्रधान होते हुए भी यहां देवी की विशुद्ध वैष्णव स्वरूप में पूजा-अर्चना होती है। यहां दूर-दूर से साधक साधना व तंत्र-सिद्धि के लिए आते हैं। प्रत्येक अमावस्या को होने वाली निशा पूजा का यहां विशेष महत्व है। ऐसा कहा जाता है कि मां छिन्नमस्तिका सृष्टि के उत्पत्ति बिन्दु से जुड़ी हुई हैं। ये दशो महाविद्या में प्रमुख महाविद्या हैं। शास्त्रों के अनुसार, सृष्टि की रचना के समय देवी ने अपना सिर काटकर दोनों योगिनियों को खून पिलाकर सृष्टि को विनाश से बचाया था। महर्षि यमदाग्नि, शुक्राचार्य, परशुराम आदि इनके प्रमुख उपासक रहे।

लगती है भीड़

लोग बताते हैं कि मां छिन्नमस्तिका मंदिर में शारदीय व वासंतिक नवरात्र में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है। नवरात्र में यहां जिले के कई क्षेत्रों व आसपास के विभिन्न जिलों से लोग मां के पूजा-दर्शन के लिए आते हैं।

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