शिवरात्रि 21 FEB को, 117 साल बाद बनेगा अद्भुत संयोग, भूलकर भी न करें ये 7 गलतियां

PATNA ; शुक्रवार 21 तारीख को फाल्गुन कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि सायंकाल 5.21 बजे तक है, उसके बाद चतुर्दशी है। इसी दिन सायंकाल 6.35 बजे तक उत्तराषाढ़ा नक्षत्र है, फिर श्रवण नक्षत्र है। ‘कामिक’ नामक ग्रन्थ में कहा गया है कि सूर्य के अस्त समय यदि चतुर्दशी हो, तो उस रात्रि को ‘शिवरात्रि’ कहते हैं। गुरुवार को चन्द्र प्रधान नक्षत्र की युति होने से यह दिन शिव जी की कृपा प्राप्ति और ऐश्वर्य प्राप्ति का दुर्लभ अवसर बन गया है। सर्वार्थ सिद्धि और आनंद योग इस अवसर को और ज्यादा शुभ बना रहे हैं। प्रात:कालीन गोचर में सूर्य, बुध व चंद्र का लग्नस्थ होना शिव का शुभ आशीष मिलने का संकेत भी दे रहा है। यह पर्व सत्य और शक्ति दोनों को ही पोषित करने वाला पर्व भी है।

शिवरात्रि को रात्रि के चारों पहरों में पृथक पूजन का भी विशेष विधान है: प्रथम पहर में दूध से स्नान तथा ‘ॐ ह्रीं ईशानाय नम:’ का जाप करें। द्वितीय पहर में दधि स्नान करके ‘ॐ ह्रीं अघोराय नम:’ का जाप करें। तृतीय पहर में घृत स्नान एवं मंत्र ‘ॐ ह्रीं वामदेवाय नम:’ का जाप करें। चतुर्थ पहर में मधु स्नान एवं ‘ॐ ह्रीं सद्योजाताय नम:’ मंत्र का जाप करें।

यदि आप की कुंडली में कालसर्प दोष के लक्षण हैं, तो इस छोटी-सी क्रिया को शिवरात्रि के दिन प्रात:, मध्याह्न और सायंकाल करें और इस क्रिया को प्रत्येक सोमवार को करें। जो भगवान शंकर की पांच मंत्रों से पंचोपचार विधि पूर्वक सफेद चंदन, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य चढ़ाते हुए पूजा करता है, वह कालसर्प दोष से मुक्त हो जाता है। ये मंत्र हैं: ‘ॐ सद्योजाताय नम:।’ ‘ॐ वामदेवाय नम:।’ ‘ॐ अघोराय नम:।’ ‘ॐ ईशानाय नम:।’ ‘ॐ तत्पुरुषाय नम:।’

शिवपुराण में लिखा है कि देवाधिदेव महादेव की अष्टमूर्तियों से ही यह विश्व संचालित हो रहा है। यानी शिव के आठ स्वरूप आठों दिशाओं में आपकी प्रगति को सुनिश्चित करते हैं। अपनी सार्वभौम प्रगति के लिए भगवान शिव की इन अष्टमूर्तियों को इन्हीं आठ मंत्रों से पुष्पांजलि दें- ‘ॐ शर्वाय क्षितिमूर्त्तये नम:।’ ‘ॐ भवाय जलमूर्त्तये नम:।’ ‘ॐ रुद्राय अग्निमूर्त्तये नम:। ‘ॐ उग्राय वायुमूर्त्तये नम:।’ ‘ॐ भीमाय आकाशमूर्त्तये नम:।’ ‘ॐ पशुपतये यजमान मूर्त्तये नम:।’ ‘ॐ महादेवाय सोममूर्त्तये नम:।’ ‘ॐ ईशानाय सूर्यमूर्त्तये नम:।’

शुभ मुहूर्त- महाशिवरात्रि 21 फरवरी 2020 को शाम को 5 बजकर 16 मिनट से शुरू होकर अगले दिन यानी 22 फरवरी दिन शनिवार को शाम 07 बजकर 9 मिनट तक रहेगी। जो श्रद्धालु मासिक शिवरात्रि का व्रत करना चाहते है, वह इसे महाशिवरात्रि से शुरू कर सकते हैं।

शिव पूजा के दौरान भूलकर भी न करें ये 7 गलतियां : 1-शंख जल- भगवान शिव ने शंखचूड़ नाम के असुर का वध किया था। शंख को उसी असुर का प्रतीक माना जाता है जो भगवान विष्णु का भक्त था इसलिए विष्णु भगवान की पूजा शंख से होती है शिव की नहीं। 2-पुष्प- भगवान शिव की पूजा में केसर, दुपहरिका, मालती, चम्पा, चमेली, कुन्द, जूही आदि के पुष्प नहीं चढ़ाने चाहिए। 3-करताल- भगवान शिव के पूजन के समय करताल नहीं बजाना चाहिए।


4-तुलसी पत्ता- जलंधर नामक असुर की पत्नी वृंदा के अंश से तुलसी का जन्म हुआ था जिसे भगवान विष्णु ने पत्नी रूप में स्वीकार किया है। इसलिए तुलसी से शिव जी की पूजा नहीं होती है। 5-तिल-यह भगवान विष्णु के मैल से उत्पन्न हुआ माना जाता है इसलिए इसे भगवान शिव को नहीं अर्पित किया जाना चाहिए। 6-टूटे हुए चावल- भगवान शिव को अक्षत यानी साबुत चावल अर्पित किए जाने के बारे में शास्त्रों में लिखा है। टूटा हुआ चावल अपूर्ण और अशुद्ध होता है इसलिए यह शिव जी को नहीं चढ़ाया जाता है। 7-कुमकुम- यह सौभाग्य का प्रतीक है जबकि भगवान शिव वैरागी हैं इसलिए शिव जी को कुमकुम नहीं चढ़ता।

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