प्रधानमंत्रीजी देश के लिए काला क़ानून है नागरिकता संशोधन विधेयक 2019, प्लीज इसको पारित मत कीजिये

गृहमंत्री अमित शाह आज लोकसभा में जिस नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 (CAB) पेश करने वाले हैं वह एक काला कानून है. यह ऐसा विधेयक था जो भारत के पिछले 70 सालों के संसदीय इतिहास में काले दाग की तरह से याद किया जाएगा क्योंकि यह विधेयक भारतीय संविधान की मूल अवधारणाओ के खिलाफ है. यह हमारी संविधान की प्रस्तावना की मूल भावना के विपरीत है.

अगर यह बिल कानून बन जाता है तो पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक उत्पीड़न के कारण वहां से भागकर आए गैर मुस्लिमों यानी हिंदू, ईसाई, सिख, पारसी, जैन और बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों को CAB के तहत भारत की नागरिकता दी जाएगी.

सबसे बड़ी बात तो यह है कि जिस नागरिकता के नए लाभार्थियों का समूह बनाने के लिए सिर्फ ओर सिर्फ ‘धार्मिक उत्पीड़न’ का जिक्र किया गया है उसके लिए न कोई आधार है न कोई रिसर्च!

जिस हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई को इसमे लाभार्थी बनाया गया है ओर ये कहा गया है कि ‘ये समूह धार्मिक उत्पीड़न या धार्मिक उत्पीड़न के डर से भारत में शरण लेने को मजबूर हैं.’ इसकी व्याख्या इस बिल में कहीं नहीं की गई है कि किस आधार पर, किन आंकड़ों या विश्लेषणों के सहारे यह निष्कर्ष निकाला गया कि कुछ निश्चित देशों के निश्चित धार्मिक समूह धर्म के आधार पर प्रताड़ित किए जा रहे हैं और दूसरे प्रताड़ित नहीं किए जा रहे हैं?

रोहिंग्या बांग्लादेश से नही आए हैं वह म्यामांर से आते हैं जहाँ उन्हें धार्मिक आधार पर प्रताड़ित किया जा रहा है, पाकिस्तान में अहमदिया, बांग्लादेश में शिया और अफगानिस्तान में हजारा मुस्लिम धार्मिक प्रताड़ना झेल रहे हैं. भारतीय मुसलमान जो बंटवारे के समय मुहाजिर के रूप में पाकिस्तान गए थे. आज वे भी वहां धार्मिक उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं. तो धार्मिक उत्पीड़न तो उनका भी हो रहा है तो उनका भारत मे शरण मांगें जाने को किस आधार पर गलत बताया जा रहा है?

केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरेन रिजिजू ने स्वीकार किया था कि नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन से किसे लाभ मिलेगा, इस बारे में कोई प्रामाणिक सर्वे या सही आंकड़ा उपलब्ध नहीं है. हालांकि, उन्होंने कहा कि संबंधित अल्पसंख्यक समूहों से करीब 30,000 लोग हैं जो भारत में लंबी अवधि के वीजा पर रह रहे हैं, उन्हें लाभ मिलेगा. जेपीसी की रिपोर्ट भी इस तथ्य की पुष्टि करती है. यह इंटेलीजेंस ब्यूरो (IB) के हवाले से कहती है कि संशोधन के बाद जो नागरिकता चाहते हैं, उन्हें साबित करना होगा कि वे धार्मिक उत्पीड़न के चलते भारत आए हैं.

70 सालो के संसदीय इतिहास में यह पहला ऐसा विधेयक सदन में रखा जा रहा है और पास कराने की कोशिश की जा रही हैं जिसमें न तो पुष्टि योग्य डेटा है, न न्यायसंगत उद्देश्य और न ही नागरिकों के बीच विभाजन का कोई उचित आधार.

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